2022 में पाँच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। हिमाचल प्रदेश भी उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण राज्य है। राज्य में विधानसभा की 68 और राज्य सभा की तीन सीटें हैं। हिमाचल भाजपा का गढ़ रहा है। हिमाचल में भाजपा की जीत पहाड़ी राज्यों का मोदी सरकार के प्रति विश्वास के साथ-साथ राज्य सभा में भी भाजपा को बहुमत के प्रति आश्वस्त करेगा। हिमाचल बीजेपी और संघ में इसको लेकर हलचल तेज हो गयी है। संघ पदाधिकारियों के साथ भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने राज्य के बड़े और क्षेत्रीय नेताओं को भी सक्रिय कर दिया है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा आयोजित बैठकों में भाग लेने के लिए चंडीगढ़ भी गए थे। राज्य सचिव पवन राणा के अलावा, बैठक में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप और तीन महासचिव त्रिलोक कपूर, पवन राणा और राकेश जामवाल भी शामिल थे।
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हिमाचल प्रदेश के भाजपा पार्टी प्रभारी अविनाश राय खन्ना और सह प्रभारी संजय टंडन भी अगले साल होने वाले चुनावों के लिए भाजपा के संगठनात्मक ढांचे को पहले से मजबूत करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। सत्तारूढ़ भाजपा बुधवार को मंडी और धर्मशाला में हुए नगर निगम चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, परंतु एक सीट से बहुमत कम हो गई। महत्वपूर्ण बात यह है कि मंडी और धर्मशाला दोनों जयराम ठाकुर के राजनीतिक पैठ वाले इलाके हैं जबकि कांग्रेस पालमपुर और सोलन एमसी को जीतने में सफल रही।
नगर निगम के चुनाव परिणाम को 2022 हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए बैरोमीटर के रूप में देखा जा रहा है और यह आम तौर पर भाजपा और विशेष रूप से पहली बार मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए एक गंभीर सीख के रूप में सामने आया है। लेकिन, हिमाचल प्रदेश में तीन चरणों में हुए पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव के बाद जिला परिषद की 239 सीटों में से 106 पर भाजपा समर्थित उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की जो कि संतोषप्रद है।
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बहुत सारे राजनीतिक उठापटक के बावजूद हिमाचल भाजपा के लिए अभेद्य किले की तरह है। समाज के सभी वर्गों को अनुपातिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व, विकास और मोदी-नड्डा की जोड़ी हिमाचल जीत के प्रति आश्वस्त करती है। राज्य में लगभग 33 प्रतिशत मतदाता राजपूत जाति के हैं और लगभग 18 प्रतिशत ब्राह्मण हैं। राज्य की वोटिंग आबादी में दलितों की संख्या 25.2 फीसदी है। इस बीच भाजपा ने सुरेश कश्यप को राज्य की संगठनिक कमान सौपीं हैं जो कि एक मास्टरस्ट्रोक साबित होगा। कश्यप ठाकुर और ब्राह्मण नेताओं के वर्चस्व वाली राज्य इकाई का नेतृत्व करने वाले पहले दलित नेता हैं। कश्यप की नियुक्ति अब मुख्यमंत्री को पार्टी के आधार को बढ़ाने के लिए राज्य में विभिन्न जाति संयोजनों पर काम करने का मौका देगी, जो ज्यादातर नकारात्मक रही है। कांग्रेस नेता और भूतपूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की दुखद मृत्यु के बाद राजपूत समाज में काँग्रेस की पकड़ कमजोर हुई है। जयराम-अनुराग की जोड़ी ने इस स्थिति में खुद को इस वर्ग के सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित किया है। रही बात 18% ब्राह्मण वोटों की तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा ब्राह्मण है और हिमाचल से ही आते हैं। जातीय और सामाजिक समीकरण पूर्ण रूप से भाजपा के पक्ष में दिखते है।
भाजपा ने हिमाचल प्रदेश के विकास और आधारभूत संरचनाओं पर भी ध्यान दिया है। केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की सरकार ने हिमचाल को चहुंमुखी विकास के पथ पर अग्रसर किया है। राज्य सरकार द्वारा शुरू किए गए जनमंच कार्यक्रम की राजनीतिक विरोधियों ने भी सराहना की है। इस कार्यक्रम के दौरान 35,000 से अधिक मुद्दों का समाधान किया गया। केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत योजना शुरू की थी और राज्य के 22 लाख लोगों को इस योजना के तहत कवर किया गया है। गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीजों को सहारे के तहत हर महीने दो हज़ार देने की योजना भी शुरू की गयी है। इसके साथ ही ’अटल टनल’ का निर्माण आधारभूत संरचनाओं के प्रति सरकार की संजीदगी को दिखाता है। सबका साथ और सबका विकास के इसी नीति के सहारे भाजपा का भविष्य हिमचाल में उज्जवल प्रतीत होता है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि आने वाले समय में यहां भाजपा की जीत अवश्यंभावी है।
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