यूरोपीय देश ग्रीस के सुप्रीम कोर्ट ने देश में हलाल वध पर रोक लगा दी है। इसके अलावा कोषेर पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। कोर्ट ने पशु वध की इन दोनों प्रक्रियाओंं को अमानवीय करार दिया है। हलाल मुख्य रूप से इस्लामी परंपरा और कोषेर यहूदी परंपरा से संबंधित है। कोर्ट ने यह आदेश वहां के पर्यावरण और पशु प्रेमी संगठनों की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है। हलाल और कोषेर दोनों प्रक्रियाओं में जानवरों को बेहोश किए बिना ही उन्हें धीरे-धीरे मार दिया जाता है। यह पशु वध का सबसे दर्दनाक तरीका माना जाता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कोर्ट में याचिका दायर करने वाले समूह पैनहेलेनिक एनिमल वेलफेयर एंड एनवायरनमेंटल फेडरेशन (The Panhellenic Animal Welfare and Environmental Federation) ने वध से पहले जानवरों के लिए एनेस्थीसिया देने की मांग की थी, जिससे जानवर बेहोश हो सकें।
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धार्मिक संगठनों ने किया विरोध
अपने आकलन में ग्रीस के सर्वोच्च प्रशासनिक न्यायालय हेलेनिक काउंसिल ऑफ स्टेट ने पशु अधिकारों के समर्थन में तर्कों को सही पाया। अदालत ने यह भी माना कि किसी की धार्मिक मान्यताएं पशु अधिकारों की अनदेखी नहीं कर सकती हैं। कोर्ट ने सरकार से पूरे देश में जानवरों के अधिकारों और धार्मिक मान्यताओं के बीच लड़ाई में जानवरों के अधिकारों को सुरक्षित करने को कहा है। न्यायालय ने सरकार से समायोजन करने के साथ-साथ ग्रीस के स्लॉटर हाउस में हो रही गतिविधियों पर भी नजर रखने को कहा। कोर्ट के आदेश के मुताबिक अब किसी भी जानवर को मारने से पहले उसे बेहोश करना जरूरी है।
ग्रीक कोर्ट के इस फैसले का वहां के कुछ धार्मिक संगठनों ने विरोध किया है। यहूदियों के यूरोपीय संघ के अध्यक्ष रब्बी मेरगोलिन ने इस आदेश को यहूदियों की धार्मिक स्वतंत्रता में न्यायिक हस्तक्षेप बताया है। उनके अनुसार पूरे यूरोप में यहूदियों की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमले हो रहे हैं और इस तरह के आदेश इसे न्यायिक मान्यता प्रदान करेंगे।
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इससे पहले 17 दिसंबर 2020 को बेल्जियम की एक अदालत ने भी ऐसा ही फैसला सुनाया था। बेल्जियम के फ्लेमिश क्षेत्र में एक नियम लागू किया गया था, जिससे जानवरों को मारने से पहले बेहोश करना अनिवार्य हो जाएगा। पशु अधिकारों के आधार पर बिना बेहोश किए पशुओं की हत्या पर रोक लगाई जाएगी। यूरोपीय संघ के सर्वोच्च न्यायालय ने इस नियम का समर्थन किया।
गौरतलब है कि हलाल को भारत में बैन करने की मांग लंबे समय से की जा रही है। दिल्ली में ऐसे होटल या मीट की दुकानें, जो दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के अंतर्गत आते हैं, उन्हें अब हलाल या झटका बोर्ड लगाना होगा। एसडीएमसी के नगर निकाय की स्थायी समिति ने 24 दिसंबर 2020 को यह प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव में यह भी लिखा है कि हिंदुओं और सिखों के लिए हलाल मांस खाना मना है।
क्या है हलाल?
वध की हलाल पद्धति को दर्दनाक और क्रूर माना जाता है, क्योंकि इसमें जानवर के गर्दन कि नस को अपूर्ण रूप से काट दिया जाता है और उसके बाद खून से सने हुए जानवर को धीरे-धीरे और दर्द से मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस्लामी कानून और रीति-रिवाजों के अनुसार हलाल को मुख्य रूप से मांस उत्पादों का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है। इस प्रकार से जानवरों को मारने कि परंपरा अब्राहम ने शुरू की थी। जब वो ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए अपने बेटे इस्माइल कि बलि दे रहे थे, तब ईश्वर ने प्रसन्न होकर उन्हें इस दर्दनाक तरीके से एक भेड़ की बलि देने का आदेश दिया, जो कुर्बानी के समरूप या हलाल मानी गई ।
हलाल मीट बाज़ार और मैक्डॉनाल्ड्स का उदाहरण
TFI की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में बहुराष्ट्रीय फास्ट-फूड चेन मैकडॉनल्ड्स द्वारा घोषित किया गया था कि वो भारत में केवल इस्लामी हलाल-प्रमाणित खाद्य पदार्थ ही परोसते हैं। खाद्य श्रृंखला से आने वाली इस घोषणा ने कई समुदायों के उपभोक्ताओं को परेशान कर दिया था, जिनके पास या तो दर्दनाक और स्वाभाविक रूप से बहिष्करणवादी हलाल तकनीक के खिलाफ आरक्षण था या अन्य धार्मिक मजबूरियां थी।
यहां यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि भारत में मैकडॉनल्ड्स की यात्रा दो दशक से भी अधिक समय से जारी है। इस अवधि के दौरान भारत के लोगों ने इस फास्ट-फूड ब्रांड के साथ एक गहरा भावनात्मक जुड़ाव विकसित किया है। मैकडॉनल्ड्स भारतीय बाजार में आने वाली पहली फास्ट-फूड श्रृंखलाओं में से एक थी और आज भी फास्ट फूड ब्रांडों में सबसे लोकप्रिय विकल्प बनी हुई है, फिर भी कंपनी खाद्य पदार्थ हेतु एक जानवर को मारने के लिए पुरातन और अमानवीय प्रक्रियाओं को छोड़ने से इंकार कर रही है।
एड्रोइट मार्केट रिसर्च के एक अध्ययन के मुताबिक वैश्विक हलाल बाजार 4.54 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का है। तुलना करने कि दृष्टि से देखा जाए तो यह जर्मनी, भारत या यूनाइटेड किंगडम के सकल घरेलू उत्पाद से भी अधिक है। साल 2025 तक वैश्विक हलाल मांस उद्योग के 9.71 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जिस पर मुसलमानों का एकाधिकार है।
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निष्कर्ष
बताते चलें कि जानवरों का भक्षण करना ना तो प्रकृति के अनुरूप है, ना ही खाद्य श्रृंखला के अनुरूप और ना ही आपके शरीर के लिए उपयुक्त है। परंतु सामी परंपराऔर धर्म का उदय ही ऐसे प्रकृति और वातावरण के गोद में हुआ, जहां उन्होंने इसे अनिवार्य रूप दे दिया। कालांतर में लोग अपनी जिह्वा और पेट के आनंद के लिए मांसाहारी भोजन का भक्षण करने लगे। इस भोजन की शुचिता के लिए जानवरों की दर्द को आनंद बना देना और इसे ही मान्यता देना क्रूरता का चरमोत्कर्ष है। ऐसा करने के पीछे इस क्रूर व्यापार पर सिर्फ मुसलमानों का एकाधिकार सुनिश्चित करना है। यह संवैधानिक रूप से भी गलत है, क्योंकि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार संविधान हमसे और शासन से पशु पक्षियों के संवर्धन और संरक्षण की अपेक्षा करता है। मुसलमान इस पद्धति को त्यागने के लिए उद्दत नहीं है और हमारी सरकार में शायद ग्रीस जैसा रीढ़ नहीं है!