राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद NCERT भारत सरकार द्वारा स्थापित संस्थान है जो विद्यालयी शिक्षा से जुड़े मामलों पर केंद्र एवं राज्य सरकार को सलाह देता है। इसी संस्थान की प्रशिक्षण नियमावली पर देश भर में पिछले कुछ दिनों से बवाल मचा हुआ है। NCERT द्वारा प्रकाशित शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण नियमावली अड़चन का विषय बन गई है। इस प्रशिक्षण मैनुअल को लेकर सोशल मीडिया पर हंगामा खड़ा हो गया। लोगों ने सरकार से जवाब मांगा कि इस तरह की चीज को कैसे मंजूरी दी गई? लेकिन इसी बीच अब खबर आ रही है कि उस maunal को NCERT
अन्य सुझावों के अलावा, NCERT प्रशिक्षण नियमावली ने सुझाव दिया था कि शिक्षक बच्चों के लिए यौवन अवरोधक (बच्चों में यौवन को स्थगित करने के लिए उपयोग की जाने वाली दवाएं हैं) की सिफारिश करें। यौवन अवरोधक दवाएं बच्चों के प्राकृतिक विकास को रोकने का काम करती हैं। इसके प्रभाव अक्सर स्थायी होते हैं और इससे अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है।
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NCERT की प्रशिक्षण नियमावली में क्या गलत है
शिक्षक प्रशिक्षण नियमावली विभिन्न तौर पर जैविक आवश्यकताओं के लिए बच्चों को समान अधिकारों से वंचित करेगी। इस संबंध में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने एनसीईआरटी (NCERT) को दस्तावेज़ में ‘‘विसंगतियों” को ठीक करने की मांग की है। NCPCR ने दावा किया है कि मैनुअल का पाठ बच्चों के लिए जेंडर न्यूट्रल बुनियादी ढांचे का सुझाव देता है जो उनकी लिंग वास्तविकताओं और बुनियादी जरूरतों के अनुरूप नहीं है।
इस प्रशिक्षण नियमावली का उद्देश्य “शिक्षकों को लैंगिक मामलों के पहलुओं के बारे में संवेदनशील बनाना है, जो ट्रांसजेंडर बच्चों को केंद्र स्तर पर रखते हैं।” इस दस्तावेज़ में, NCERT ने बच्चों को लिंग रूढ़ियों के साथ बढ़ने से रोकने के लिए स्कूलों में लिंग आधारित बुनियादी ढांचे के उपयोग की भी वकालत की गई है।
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इस नई प्रशिक्षण नियमावली में अचंभित कर देने वाली बात कही गई है, प्रशिक्षण नियमावली में शौचालयों को लेकर भी विचित्र सिद्धांत सुझाए गए हैं, जिसमें कहा गया है कि शौचालयों का उपयोग बच्चों को जेंडर में बदल देने के लिए किया जाता है। इसके अनुसार, महिलाओं और बच्चियों को लड़कियों वाले शौचालय का उपयोग और पुरुषों को लड़कों के लिए चिन्हित किए गए शौचालय का उपयोग करने के लिए बाध्य किया जाता है, जो कि गलत है।
NCERT की प्रशिक्षण नियमावली पर बनी कमेटी का था ये भद्दा एजेंडा
अब जबकि यह मुद्दा देश व्यापी बन चुका है, तो हम उस कमेटी पर एक नज़र डालेंगे जो प्रशिक्षण नियमावली में शामिल थी। नई प्रशिक्षण नियमावली पर बनी कमेटी में कुल छह सदस्य हैं। सोशल एक्टिविस्ट और प्रसिद्ध लेखक विक्रमादित्य सहाय, जो कि एक ट्रांसजेंडर हैं, इस कमेटी के सक्रिय सदस्यों में से एक हैं। फिलहाल ये दिल्ली के हिन्दू कॉलेज के डिपार्टमेंट ऑफ सोशियोलॉजी में कार्य करते है। वहीं इस कमेटी के अन्य सदस्यों में डॉ राजेश वयस्क एवं सतत शिक्षा और विस्तार विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं, जबकि डॉ बिट्टू कावेरी राजारमन अशोक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं।
साथी की वेबसाइट के अनुसार, “साल 2018 तक, उनके पोर्टफोलियो में डिजिटल स्वास्थ्य पहल, LGBTIQ + विस्तारा, प्रोजेक्ट संभुया और प्रोजेक्ट स्वेताना का समर्थन शामिल था। उन्होंने पहले एचआईवी/एड्स सेवाओं की मुख्यधारा और स्वास्थ्य हस्तक्षेपों के कार्यान्वयनकर्ताओं की क्षमता निर्माण पर कार्यक्रमों का नेतृत्व पहले भी किया है।”
ऐसा प्रतीत होता है कि SAATHII ने प्रशिक्षण नियमावली के प्रकाशन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह बात संस्थापक-अध्यक्ष साईं सुभाश्री राघवन ने Linked.in पर एक पोस्ट में भी कही। इससे साफ़ जाहिर होता है कि प्रशिक्षण नियमावली तैयार करने के लिए बनी कमेटी और इसमें शामिल सदस्य पूर्णतः जिम्मेदार हैं और इसके लिए नौकरशाह को जवाबदेह ठहराना गलत नहीं होगा।
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एनसीपीसीआर और लोगों के दबाव में आकर NCERT को हटानी पड़ी ये नियमावली
चूंकि इस नियमावली को लिंग अध्ययन विभाग द्वारा प्रकाशित किया गया था, इसलिए यह समझा जा सकता है कि टीम का नेतृत्व करने वाले एक ही विभाग से हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा दस्तावेज़ में “विसंगतियों” को ठीक करने की मांग के बाद NCERT के अधिकारियों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई थी। हालाकिं, देश के लोगों द्वारा इस पर कड़ी आपत्ति जताई गई और अब यह मैनुअल NCERT की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है। NCERT ने इस नियमावली को हटा कर अपनी गलती में सुधार किया है।