भारत अब मध्य एशिया में अपनी उपस्थिति और प्रभाव का विस्तार कर रहा है। ET की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य एशियाई गणराज्यों में मौजूद सोवियत युग के रक्षा कारखानों के माध्यम से भारत और रूस मध्य एशियाई देशों के लिए रक्षा उपकरणों का उत्पादन करने जा रहे हैं। भारत ने रूस के साथ इस बातचीत को आगे बढ़ाकर स्पष्ट कर दिया है कि वह चीन और पाकिस्तान को मध्य एशियाई देशों पर प्रभाव नहीं जमाने देगा। भारत और रूस के बीच इस परियोजना से रूस को उस क्षेत्र में एक विश्वसनीय भागीदार मिलेगा, जो परंपरागत रूप से मॉस्को के विशेषाधिकार प्राप्त प्रभाव क्षेत्र का हिस्सा रहा है।
ET ने दावा किया है कि भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय संबंध को बढ़ाने एवं मध्य एशिया में संयुक्त परियोजनाओं को लेकर एक बातचीत हुई है। इस बातचीत में दोनों देशों ने स्थानीय मांग और भारत की मांग को पूरा करने के लिए संयुक्त उत्पादन स्थापित करने के बारे में भी विचारों का आदान-प्रदान किया। इससे इतर भारत ने पांच मध्य एशियाई गणराज्यों के नेताओं को अगले साल 26 जनवरी को अपने गणतंत्र दिवस समारोह के लिए मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है।
मध्य एशिया क्यों महत्वपूर्ण है?
आज भी देखा जाये तो मध्य एशिया दुनिया का ऐसा क्षेत्र है, जिस पर सभी की नजरें टिकी हुई है और भारत इसके महत्व को अच्छे से समझता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह क्षेत्र दुर्लभ तत्वों जैसे खनिजों से भरा हुआ है, जो स्वच्छ प्रौद्योगिकी को अपनाने और Fossil Fuel को डंप करने की दुनिया की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
दूसरी बात, यह क्षेत्र रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र 19वीं शताब्दी में रूसी साम्राज्य और ब्रिटिश साम्राज्य के बीच ‘ग्रेट गेम‘ का केंद्र है। आज भी इसी के लिए रेस हो रहा है और भारत के लिए इस रेस में आगे रहना महत्वपूर्ण है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे भारत के विस्तारित पड़ोस का हिस्सा बताया है।
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पाकिस्तान-चीन नेक्सस
पाकिस्तान की भौगौलिक स्थिति मध्य एशियाई देशों के पास होने के कारण चीन, पाकिस्तान के माध्यम से उन्हें घेरने की कोशिश में है। पाकिस्तान तालिबान के साथ अपने प्रभाव का इस्तेमाल युद्ध से तबाह अफगानिस्तान राष्ट्र को नियंत्रित करने के लिए करता है। अब वह अफगानिस्तान के जरिए पूरे मध्य एशिया पर कब्जा करना चाहता है। अंतत: पाकिस्तान मध्य एशिया को कट्टरपंथी बनाना चाहता है, ठीक उसी तरह जैसे उसने अफगानिस्तान को कट्टरपंथी बनाने और उसके समृद्ध खनिज संसाधनों को हथियाने के लिए तालिबान का इस्तेमाल किया। पाकिस्तान यह भी सोचता है कि वह मध्य एशिया में अपने आतंकी नेटवर्क का विस्तार कर सकता है, जिससे भारत और दुनिया के लिए एक नया आतंकी खतरा पैदा कर सके!
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दूसरी ओर, चीन मध्य एशिया को अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) निवेश के लिए एक प्रमुख गंतव्य के रूप में देखता है। चीन का उद्देश्य है कि वह किसी भी तरह मध्य एशिया की संपत्ति को अपने नियंत्रण में कर ले। यही नहीं, चीन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र का उपयोग दूसरों को धमकाने के लिए कर सकता है। चीन के पास पैसा है और पाकिस्तान के पास ‘आतंक’ है, जो एक तरह का गठजोड़ बनाता है।
पाकिस्तान-चीन गठजोड़
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समझते हैं कि तालिबान पाकिस्तान की सहायता से अफगानिस्तान की सत्ता में आया है और इस्लामाबाद मध्य एशिया में भी कुछ ऐसा ही करना चाहता है। हालांकि, पीएम मोदी यह भी जानते हैं कि सोवियत संघ के टूटने के बाद भी मध्य एशियाई गणराज्य मॉस्को के साथ अच्छे संबंध बनाए रखते हैं। वहीं, दूसरी ओर अब मध्य एशिया के देशों ने इस्लामाबाद और बीजिंग दोनों को खारिज कर दिया है। तमाम कोशिशों के बावजूद मध्य एशियाई देश रूस के साथ नई दिल्ली से दोस्ती को भविष्य का आधार मानते हैं। यही नहीं, मध्य एशियाई देश अपने धर्मनिरपेक्ष समाज को पाकिस्तान के कट्टरपंथी इस्लाम से बचाना चाहते हैं और यही कारण है कि वे भारत के साथ मित्रता को बनाए रखना चाहते हैं।
ध्यान देने वाली बात है कि मध्य एशियाई देश अपने क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव से अब सावधान हो चुके हैं। इन देशों ने BRI परियोजनाओं के तहत चीन की अनुचित नीतियों के खिलाफ आवाज उठाना आरंभ कर दिया है। वे आईटी, शिक्षा, फार्मेसी और स्वास्थ्य सेवा जैसे कई क्षेत्रों में भारत के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हैं।
इससे स्पष्ट है कि भारत चीन और पाकिस्तान के खिलाफ मध्य एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को कूटनीति के साथ आगे बढ़ा रहा है। इससे रूस को भी फायदा होगा, जो भारत को चीन-पाकिस्तान गठजोड़ के खिलाफ एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में देखता है। भारत और रूस एक साथ मिलकर अब मध्य एशियाई देशों में रक्षा उपकरणों का उत्पादन करने जा रहे हैं, जो न सिर्फ चीन के बढ़ते प्रभाव का काउंटर है, बल्कि इससे इन देशों का भारत के लिए समर्थन भी बढ़ता जाएगा।
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