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मध्य एशिया में चीन के प्रभाव को खत्म करने का प्रयास कर रहा है भारत

मध्य एशिया में भारत की जीत से चीन है भयभीत!

Shikhar Srivastava द्वारा Shikhar Srivastava
27 January 2022
in विश्व
मध्य एशिया में चीन
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मुख्य बिंदु
  • आज (27 जनवरी 2022) भारत और मध्य एशिया के शीर्ष नेता वर्चुअल कॉन्फ्रेंस के माध्यम से एक-दूसरे के साथ जुड़ेंगे
  • 73 वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत आने वाले मध्य एशियाई देशों के राष्ट्र प्रमुखों की भारत यात्रा स्थगित कर दी गई थी
  • कनेक्टिविटी से लेकर सुरक्षा समीकरणों और रणनीतिक साझेदारी के लिहाज से अहम है ये बैठक
  • इस वर्चुअल कॉन्फ्रेंस से दो दिन पहले (25 जनवरी) चीन ने पांचों मध्य एशियाई देशों के राष्ट्रप्रमुख के साथ की थी बैठक

मध्य एशिया में भारत के बढ़ते प्रभाव ने चीन को चिंतित कर दिया है। गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत ने कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान और किर्गिस्तान के राष्ट्र प्रमुखों को भारत आने का निमंत्रण दिया था। हालांकि, कोरोना वायरस के नए संस्करण ओमिकॉर्न के फैलाव के कारण मध्य एशियाई देशों के राष्ट्र प्रमुखों की भारत यात्रा स्थगित कर दी गई है किंतु आज (27 जनवरी) भारत और मध्य एशिया के शीर्ष नेता वर्चुअल कॉन्फ्रेंस के माध्यम से एक-दूसरे के साथ जुड़ेंगे। मध्य एशिया के देशों के साथ भारत की बढ़ती विश्वसनीयता के जवाब में इस बैठक के आयोजन से दो दिन पहले (25 जनवरी) चीन ने पांचों मध्य एशियाई देशों के राष्ट्रप्रमुख के साथ बैठक की थी। इस बैठक में स्वयं कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव शी जिनपिंग भी उपस्थित थे।

और पढ़ें: भारत कैसे मध्य एशियाई देशों में पाकिस्तान और चीन की भयावह योजना को कुचल रहा है

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मध्य एशियाई देशों की भारत के साथ बढ़ रही है साझेदारी 

दरअसल, चीन ने मध्य एशियाई देशों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों के 30 वर्ष पूर्ण होने पर यह बैठक बुलाई थी। वहीं, चीन द्वारा बुलाई गई बैठक की सूचना केवल 24 घंटे पूर्व ही दी गई थी। इस प्रकार अचानक बैठक बुलाने का चीन का निर्णय हास्यास्पद था क्योंकि इससे यह बात स्पष्ट होती है कि चीन भारत के बढ़ते प्रभाव से भयभीत है। बता दें कि इस शिखर बैठक में रूस और यूक्रेन के बीच बढ़ते तनाव के मुद्दे पर भी चर्चा हो सकती है क्योंकि भारत रूस का करीबी दोस्त है।

पिछले वर्ष नवंबर माह में भारत ने अफगानिस्तान के मुद्दे को लेकर एक बैठक बुलाई थी, जिसका चीन और पाकिस्तान ने बहिष्कार किया था। हालांकि, इस बैठक में मध्य एशिया के देशों ने इस बैठक में सम्मिलित होने का निर्णय लिया था। इसके बाद दिसंबर महीने में भारत ने पांचों मध्य एशियाई देशों के साथ एक बैठक बुलाई जिसका मुख्य उद्देश्य भारत और मध्य एशिया के बीच रणनीतिक आर्थिक साझेदारी को बढ़ावा देना था किंतु इस बैठक में चर्चा का केंद्र अफगानिस्तान की समस्या थी। लिहाजा, मध्य एशियाई देशों ने अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत की नीति को अपनाया।

मध्य एशियाई देशों का भारत के साथ बढ़ता आर्थिक सहयोग

मध्य एशियाई देशों का यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इसी समय पाकिस्तान ने भी अफगानिस्तान मुद्दे पर OIC सम्मेलन आयोजित कर तालिबान को मान्यता दिलवाने का प्रयास किया था किंतु मध्य एशियाई देशों ने इस सम्मेलन को असफल कर दिया। भारत अफगानिस्तान समस्या के कारण मध्य एशियाई देशों के अधिक नजदीक आ चुका है क्योंकि भारत तालिबान के साथ किसी प्रकार के औपचारिक संबंधों का विरोधी रहा है एवं यही नीति मध्य एशियाई देशों की है। वहीं, आतंकवाद और ड्रग्स पर दोनों पक्ष एकमत हैं।

दोनों पक्ष रणनीतिक रूप से जुड़े हैं और रणनीतिक साझेदारी के साथ आर्थिक पक्ष भी जुड़ा होता है। यही कारण है कि मध्य एशियाई देशों के साथ भारत अपना आर्थिक सहयोग भी बढ़ा रहा है। मध्य एशिया तेल और प्राकृतिक गैस का प्रमुख निर्यातक क्षेत्र है। वहीं, भारत इन देशों को दवाइयों से लेकर एडिबल आयल, तकनीकी वस्तुओं आदि का निर्यात करता है। दोनों पक्षों के बीच व्यापार अधिक नहीं बढ़ पाया है, इसका कारण है कि भारत और मध्य एशिया के देश भूमिगत रूप से एक-दूसरे से नहीं जुड़े हैं।

इस साझेदारी से भयभीत है चीन

भारत द्वारा नॉर्थ साउथ कॉरिडोर बनाने के प्रयास को पाकिस्तान विफल करता रहा है। ईरान के चाहबार पोर्ट का प्रयोग करके अफगानिस्तान के माध्यम से व्यापार की योजना बनाई गई किंतु इस योजना को ट्रम्प शासन में ईरान पर लगे प्रतिबंध और उसके बाद तालिबान की विजय के कारण रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, इस योजना को लेकर दोनों पक्षों ने अपने प्रयास बंद नहीं किए हैं क्योंकि भारत अपने कूटनीतिक और आर्थिक हितों के कारण प्रयासरत है जबकि मध्य एशियाई देश चीन पर से अपनी आर्थिक निर्भरता समाप्त करना चाहते हैं।

और पढ़ें: “आधा तजाकिस्तान हमारा है”, दक्षिण चीन सागर और हिमालय के बाद चीन की निगाहें मध्य एशिया पर

बताते चलें कि चीन अपनी बेल्ट एंड रोड परियोजना के जरिए पहले ही मध्य एशिया में पैर पसार चुका है और उसका लक्ष्य क्षेत्रीय कारोबार को 2030 तक 70 अरब डॉलर के आंकड़े तक पहुंचाना है। मध्य एशिया के देश चीन की आर्थिक रणनीति से परिचित हैं, ऐसे में उनके पास एशिया महाद्वीप में भारत के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है, जो चीन के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है। भारत और मध्य एशिया की कोशिश द्विपक्षीय व्यापार को मौजूदा दो अरब डॉलर से आगे ले जाने की है। वहीं, चीन जानता है कि आज नहीं कल भारत इन देशों के साथ अपने व्यापारिक संबंध मजबूत कर लेगा और इनकी सहायता से क्षेत्रीय रणनीतिक समीकरण अपने पक्ष में कर लेगा। चीन की जल्दबाजी दिखाती है कि चीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मध्य एशिया के साथ संबंधों में दिखाई जा रही सक्रियता के कारण पूरी तरह से भयभीत है।

Tags: चीनभारतमध्य एशियामध्य एशियाई देश
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