भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेई जी का एक प्रसिद्ध कथन है कि आप अपना दुश्मन बदल सकते हैं पर, पड़ोसी नहीं. अभी श्रीलंका में व्याप्त घनघोर आर्थिक संकट और हालात में भी यह कथन पूर्ण रूप से प्रासंगिक और उचित बैठता है. कांग्रेस के शासन में भारत श्रीलंका के संदर्भ में अपनी कूटनीति और विदेश नीति को लेकर सदा सर्वदा से गलतफहमी का शिकार रहा है. जब लिट्टे अपने चरमोत्कर्ष पर था और श्रीलंका में सर्वत्र सिविल वॉर व्याप्त था तब राजीव गांधी की गलत विदेश नीति ने न सिर्फ श्रीलंका को भारत के पाले से दूर कर दिया बल्कि स्वयं उनकी मौत का कारण भी बना.
राजीव गांधी यह कभी नहीं समझ पाए कि सरकार और वहां के अलगाववादी संगठनों के बीच में पड़कर शांति सेना भेजने से और अशांति ही फैलेगी. वह यह कभी अंदाजा नहीं लगा पाए कि उनके इस कृत्य से कोई एक पक्ष तो अवश्य नाराज होगा और अंततः हुआ भी वही. श्रीलंकाई सरकार को लगा कि राजीव अपने तमिल जनता के दबाव में शांति सेना भेज लिट्टे की मदद कर रहे हैं तो वही लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण को लगा कि राजीव गांधी हारती हुई श्रीलंकाई सेना के लिए सैन्य मदद भेज रहे हैं. अब श्रीलंका में भी पुनः वैसे ही हालात उभर कर सामने आ रहे हैं. घनघोर आर्थिक संकट, चीनी कर्ज का जाल, मुद्रास्फीति, महंगाई, मूलभूत सुविधाओं और आजीविकाओं का अभाव तथा राजनेताओं के कुल भ्रष्टाचार ने जनता को उद्वेलित कर दिया है.
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श्रीलंकाई सरकार को मिल रही है चुनौती
पहले जिस पाले में प्रभाकरण खड़ा होता था अब उस पाले में श्रीलंका की जनता खड़ी हो गई है और अपने हक के लिए सीधे सरकार को चुनौती दे रही है. जनता विरोध प्रदर्शन करते हुए जब सड़कों पर उतरी तब राजपक्षे ने अपने समर्थकों से ऐसे राष्ट्र विरोधी लोगों पर हमले करवाए. इससे जनता और भड़की. सरकारी नेताओं और कर्मचारियों के घरों और निजी संपत्तियों को आग लगा दी गई. ऐसे में श्रीलंका के प्रति भारत के पुराने रुख को देखते हुए अफवाहों का उड़ना लाजमी है. कभी कहा गया कि भारत ने श्रीलंका को वाटर कैनन खरीदने के लिए और अधिक लाइन ऑफ क्रेडिट दी है.
किसी ने कहा कि राजपक्षे परिवार और श्रीलंकाई सांसद अपनी जान बचाने के लिए भारत में भागकर शरण ले चुके हैं. उड़ते-उड़ते खबर तो यहां तक फैली कि लंका में बिगड़े आर्थिक हालातों को देखते हुए भारतीय सरकार सेना को भेजने वाली है. हालांकि, भारत के विदेश विभाग और श्रीलंका में भारत के राजदूत कार्यालय ने इस खबरों का पूर्ण रूप से खंडन कर दिया. उन्होंने कहा, वाटर कैनन खरीदने के लिए लाइन ऑफ क्रेडिट देने की बात और इसके साथ-साथ किसी भी श्रीलंकाई जनप्रतिनिधि को शरण देने की तथ्य पूर्ण रूप से निराधार और गलत है. यह महज एक अफवाह है. जहां तक रही सैन्य मदद भेजने की बात तो वह भाजपा के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी के निजी विचार हैं. आधिकारिक तौर पर भारत श्रीलंका के संविधान और उसके लोगों के सहयोग के लिए सदैव तत्पर खड़ा है. भारत हमेशा चाहता है कि श्रीलंकाई जनता स्वयं अपना भविष्य तय करें.
भारत ने जताया श्रीलंकाई जनता पर विश्वास
भारत ने इन सभी मुद्दों पर अपना स्पष्टीकरण देकर एक बात तो साबित कर दिया है कि अब वह श्रीलंका में राजीव गांधी के कूटनीतिक दोषों को नहीं दोहराने वाला है. चाहे कुछ भी हो भारत श्रीलंकाई शासकों और भ्रष्ट लोगों की मदद करके वहां की जनता को नहीं छलेगा. हाल के दिनों में कर्ज जाल में फंसने के कारण श्रीलंका ने चीन को दुत्कार दिया है. पर, एक बात तो साफ सिद्ध हो जाती है- माननीय राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी अंतरराष्ट्रीय संबंधों को लेकर अज्ञानता और संवेदनहीनता के शिकार हैं. उन्होंने इसी तरह के बयान मालदीव में मचे राजनीतिक उथल-पुथल के समय भी दी थी. जब उन्होंने कहा था कि अगर मालदीव के चुनावों में धांधली होती है तो भारत को अपनी सेना भेज देनी चाहिए. पर, यह बात संतुष्टि प्रदान करने वाली है कि भारत ने इन सभी भ्रामक तथ्यों का खंडन करते हुए श्रीलंकाई जनता पर अपना विश्वास जताया है और उनके भविष्य को चुनने के अधिकार को संरक्षित और संवर्धित करते हुए सेना भेजने वाले अफवाह को सुब्रमण्यम स्वामी का निजी विचार बता दिया है.