जब देश पर कोरोना महामारी का साया छाया, तो गरीब लोग भूखे पेट न सोएं, इसलिए मोदी सरकार द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) की शुरुआत की गई थीं। यह योजना उस वक्त की आवश्यकता थीं। परंतु अब धीरे-धीरे यह योजना सरकार पर ही बोझ बनती चली जा रही है। ऐसा मानना हमारा नहीं बल्कि वित्त मंत्रालय का है।
वित्त मंत्रालय के द्वारा गरीबों को मुफ्त में राशन देने वाली इस योजना को लेकर सरकार को चेतावनी दी है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार मंत्रालय के व्यय विभाग द्वारा सरकार को आगाह किया गया कि योजना का अब और विस्तार न किया जाए। बता दें कि पहले ही मार्च में सरकार योजना को छह महीनों तक बढ़ाकर इसकी अवधि सितंबर 2022 तक कर चुकी हैं। मंत्रालय द्वारा इसे सितंबर 2022 से आगे बढ़ाने पर आपत्ति जताई गई है। इसके अलावा सरकार से कोई टैक्स राहत भी नहीं देने की अपील की है। व्यय विभाग के अनुसार सरकार अगर ऐसा करती है, तो इससे राजकोषीय घाटा बढ़ जाएगा, जो देश की वित्तीय सेहत के लिए सही कदम साबित नहीं होगा।
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प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना पर इतना खर्च
रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष में केंद्र सरकार के द्वारा फूड सब्सिडी पर सरकार ने कुल 2.07 लाख रुपये आवंटित किए हैं। सितंबर तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) लागू रहने पर सब्सिडी बिल बढ़कर 2.87 लाख करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। वहीं अगर इसके बाद भी PMGKAY योजना को मार्च 2023 तक बढ़ाया जाता है, तो फूड सब्सिडी 3.7 लाख करोड़ रुपये पहुंचने के आसार हैं।
इन वजहों से बिगड़ी सरकारी खजाने की स्थिति
व्यय विभाग के एक नोट के अनुसार मुफ्त राशन स्कीम बढ़ाने, उर्वरकों पर सब्सिडी, रसोई गैस पर सब्सिडी वापस लाने, पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कम और खाने के तेल पर कस्टम ड्यूटी घटाने जैसे सरकार के कई हालिया फैसलों से वित्तीय स्थिति गंभीर हो गई। ऐसे में सब्सिडी आगे बढ़ाने या टैक्स कटौती सरकार के आय व्यय की गणित को डामाडोल कर सकती है। विभाग ने कहा कि खाद्य सुरक्षा हो या खजाने की स्थिति दोनों ही आधारों पर PMGKAY योजना को सितंबर से आगे बढ़ाने का सुझाव नहीं दिया जा सकता।
वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग द्वारा सही समय पर दी जा रही यह एकदम सही चेतावनी है। देश के 80 करोड़ लोग इस वक्त मुफ्त राशन योजना का लाभ उठा रहे हैं। यह योजना अब सरकार पर महज एक बोझ के सिवाए कुछ और नहीं बनकर रह गई। मोदी सरकार द्वारा योजना तब लाई गई थी जब कोरोना के चलते सरकार को देशभर में लॉकडाउन लगाने को मजूबर होना पड़ा था। तब सरकार की यह जिम्मेदारी भी थी कि लॉकडाउन के दौरान कोई गरीब भूखे पेट न सोए। परंतु अब हालात सुधर चुके हैं। लोगों की जिंदगी पटरी पर लौट आई। अपने कामों पर लोग वापस लौट चुके हैं। ऐसे में अब यह योजना मुफ्तखोरी के सिवाए और किसी चीज को बढ़ावा नहीं देगी।
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मुफ्तखोरी का परिणाम है श्रीलंका का हाल
मुफ्तखोरी की आदत कैसे बुरी होती है और यह देश को किस तरह बर्बाद कर देती है, यह श्रीलंका के हालातों से स्पष्ट हो ही जाता है। श्रीलंका दिवालिया हो चुका है और इसके पीछे की प्रमुख वजह मुफ्तखोरी ही रहीं। श्रीलंका की सरकार ने करों में कटौती और विभिन्न मुफ्त वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण जैसे कई कदम उठाए थे, जो ही श्रीलंका की बर्बादी का कारण बने। मुफ्तखोरी में बर्बाद हो चुके देशों की सूची में एक नाम वेनेजुएला का भी आता है। एक समय ऐसा था जब वेनेजुएला कच्चे तेल का सबसे बड़ा निर्यातक देश था। परंतु फिर वहां की सरकार ने देश की जनता को कई सुविधाएं मुफ्त में उपलब्ध कराईं, जिससे वहां की अर्थव्यवस्था चरमरा गई।
भारत में भी चुनावों के दौरान मुफ्तखोरी की खूब राजनीति की जाती हैं। जनता को लुभाने के लिए पार्टियों द्वारा कई चीजें मुफ्त में दिए जाने के बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं। ऐसे में जरूरत है श्रीलंका और वेनेएजुला जैसे देशों से सबक लेने का। क्योंकि मुफ्तखोरी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद ही घातक साबित हो सकती है।
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