सामाजिक कार्यकर्ता के नाम पर एजेंडा चलाने वालों को अब जनता खदेड़ना शुरू कर चुकी है। जन सरोकार के लिए आंदोलन करने के लिए भीड़ जुटाने वाली सोच को अब जनता पहचानना शुरू कर चुकी है। हाल ही में कथित सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले के ढिंकिया गांव में बड़े पैमाने पर विरोध का सामना करना पड़ा। यहां हाल ही में एक JSW स्टील परियोजना को लेकर हड़कंप मच गया था और स्थानीय लोगों ने पाटकर को “वापस जाने” के लिए कहा था।
मेधा पाटकर को जनता ने सिरे से नकार दिया
इस लेख में जानेंगे कि कैसे कथित सामाजिक कार्यकर्ता और नौटंकी के मामलों में नंबर 1 मेधा पाटकर को जनता ने न केवल सिरे से नकार दिया बल्कि घनघोर बेइज्जती का उत्कृष्ट उदाहरण देते हुए विरोध प्रदर्शन वाले स्थल से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया।
दरअसल, मेधा पाटकर को पूर्व पंचायत सदस्य देवेंद्र स्वैन के परिवार से मिलने नहीं दिया गया। देवेंद्र, ढिंकिया में JSW के प्रस्तावित स्टील प्लांट के विरुद्ध अभियान का नेतृत्व कर रहे थे और उन्हें उस चक्कर में जेल तक जाना पड़ा। ज्ञात हो कि, 14 जनवरी को ओडिशा पुलिस की 12 प्लाटून द्वारा सैकड़ों लोगों पर नकेल कसने के बाद परियोजना के विरोध ने हिंसक रूप ले लिया था, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं और बच्चों सहित 20 से अधिक लोग घायल हो गए थे। दो अलग-अलग जनहित याचिकाओं के बाद, ओडिशा उच्च न्यायालय ने राज्य को निर्देश दिया था कि सरकार महीने के अंत तक स्थिति पर रिपोर्ट सौंपेगी।।
इसके अलावा, अदालत ने तीन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए वकीलों के पैनल का गठन किया था, जिसमें ढिंकिया में प्रस्तावित स्टील प्लांट का विरोध कर रहे लोगों के मानवाधिकारों की सुरक्षा की मांग की गई थी। कोर्ट ने जगतसिंहपुर जिला प्रशासन को सभी आवश्यक व्यवस्था करने का आदेश दिया था ताकि पंचायत के लोग बिना किसी भय और दबाव के समिति के समक्ष जेएसडब्ल्यू परियोजना पर अपने विचार व्यक्त कर सकें।
मेधा पाटकर, पहले कुजंगा उप-जेल में देवेंद्र से मिलीं, उसके बाद वह देवेंद्र के परिवार से मिलने के लिए ढिंकिया चली गयीं। बस, बात गांव वालों और अन्य लोगों समेत जब जेएसडब्ल्यू परियोजना के समर्थकों को पता चली वैसे ही मेधा पाटकर का विरोध शुरू हो गया।
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विरोध स्थल से खाली हाथ लौटना पड़ा
ऐसे में मेधा पाटकर को उनके साथ आए लोगों के साथ, सोमवार को विरोध स्थल से लौटना पड़ा क्योंकि ग्रामीणों ने ढिंकिया में उनके प्रवेश को रोक दिया, जो दक्षिण कोरियाई स्टील प्रमुख पोस्को के खिलाफ विस्थापन विरोधी आंदोलन का केंद्र भी है। विस्थापन की चिंताओं को लेकर JSW स्टील परियोजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वाले कार्यकर्ता देवेंद्र स्वैन को जनवरी में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पों के बीच गिरफ्तार किया गया था। जिसके बाद से मेधा के आने के बाद मामला तूल पकड़ गया। यही नहीं दोनों पक्ष जो इस आंदोलन के हिमायती हैं या विरोधी दोनों ही पक्षों ने मेधा पाटकर को लताड़ दिया। उन सभी का यही कहना था कि, “हम अपना देख लेंगे, आप अपना काम करिये।”
यह घनघोर बेइज़्ज़ती यूंही नहीं मेधा के हिस्से आई है बल्कि पूर्व में किए गए कर्मकांड मेधा पाटकर की ऐसी छवि बना चुके हैं कि अब कोई भी आंदोलन मेधा की उपस्थिति चाहता ही नहीं है। चूंकि नर्मदा बचाओ आंदोलन की संस्थापक इन्हीं मेधा पाटकर के कारणवश “सरदार सरोवर बांध” के पानी को सही समय पर लोगों तक नहीं पहुंचने दिया। सरदार सरोवर बांध से बहुत लोगों का जनजीवन प्रभावित था पर एजेंडाधारी सामाजिक कार्यकर्ता के कारण लोग बांध के पानी से लंबे समय तक वंचित रहे।
ऐसे में यदि ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले के ढिंकिया गांव में मेधा पाटकर का विरोध हुआ है तो इसके पीछे की तस्वीर यही है कि मेधा पाटकर का पुराना रिकॉर्ड आंदोलनों के मामले में कतई सही नहीं रहा है।
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