मानवीय इतिहास में हुई हिंसाओं को तारीख और शहरों के से नाम याद रखा जाता है। लेकिन भारत में इस दौर में जो हिंसा हो रही है वो तारीख या फिर शहर के नाम से याद नहीं रखी जाएगी बल्कि इस बात से याद रखी जाएगी कि कैसे इस्लामिस्टों ने हिंसा में बच्चों को उतार दिया। कैसे इस्लामिस्टों ने बच्चों को ढाल बनाकर इस्तेमाल किया। कैसे इस्लामिस्टों ने अपने ही बच्चों को हिंसा की आग में झोंक दिया। जी हां, भारत में हो रही हिंसाओं को इसी तरह से याद रखा जाएगा।
भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के बयान को लेकर कट्टरपंथी इस्लामिस्ट पूरे देश में आग लगाने पर उतारू हैं। शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद देश के कई हिस्सों में हिंसा देखने को मिली। उत्तर-प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड समेत दूसरे राज्यों में इस्लामिस्टों ने हिंसा फैलाई।
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इस हिंसा में सबसे महत्वपूर्ण बात जो निकलकर सामने आती है- वो यह है कि इस दौरान बच्चों को ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया गया। पहले तो बच्चों को हिंसक प्रदर्शन में लाया गया- उनसे नारेबाजी करवाई गई- उनके हाथों में झंडे और बैनर थमा दिए गए- इसके बाद जब पुलिस ने कार्रवाई की तो उन्हीं बच्चों को आगे कर दिया गया।
नीचता की हद तो तब हो गई जब इस्लामिस्टों ने उन्हीं बच्चों से नूपुर शर्मा के पोस्टर पर पेशाब भी करवाया। प्रयागराज के एसएसपी अजय कुमार ने कहा, “कुछ लोगों ने नाबालिग बच्चों को आगे कर पुलिस पर पथराव किया।’’ अब आप अंदाजा लगा लीजिए कि इन कायर इस्लामिस्टों ने किस तरह से बच्चों को ढाल बनाकर उनकी आड़ में छिपकर हिंसा फैलाई।
झारखंड के रांची में भी यही हो रहा था। वहां भी प्रदर्शन में युवा लड़कों को आगे करके नारेबाजी की जा रही थी। लड़कों की आड़ में प्रदर्शनकारी खड़े थे और पत्थरबाजी कर रहे थे। ऐसे में हिंसा और कार्रवाई के दौरान 2 युवा लड़कों की मौत हो गई। मौत होने के बाद अब उन लड़कों के पिता कह रहे हैं कि हमें नौकरी चाहिए- हमें मुआवजा चाहिए।
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ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि किस बात का मुआवजा मांग रहे हैं महोदय? क्या आपको नहीं पता था कि प्रदर्शन हिंसक हो सकता है, बच्चों को वहां ना भेजा जाए? क्या आपको नहीं पता था कि प्रदर्शन में ही बच्चों को ना भेजा जाए? क्या आप अपने बच्चों का ध्यान नहीं रख रहे थे? क्या आप अपने बच्चों को नहीं सिखा रहे थे कि इस तरह के प्रदर्शनों में नहीं जाना चाहिए? क्या एक पिता के तौर पर यह आपकी ग़लती नहीं है कि आपने अपने बच्चों को वहां जाने दिया?
यह तो हो गई हाल की घटनाएं, जिनमें छोटे-छोटे बच्चों को ढाल बनाया गया- उनसे नारेबाजी करवाई गई। लेकिन ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हो रहा हो। इससे पहली भी कई बार इस्लामिस्टों ने ऐसा किया है। शाहीन बाग का धरना-प्रदर्शन यह देश कभी भूलेगा नहीं। जब महीनों तक सड़क को बंद करके रखा गया।
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जब महीनों तक वहां के स्थानीय लोगों के आम जन-जीवन को नर्क बनाकर रख दिया गया! शाहीन बाग में भी इस्लामिस्टों ने महिलाओं और बच्चों का इस्तेमाल किया। शाहीन बाग में भी बच्चों को धरना प्रदर्शन में सबसे आगे बैठाया गया था। वहां भी बच्चों का इस्तेमाल ढाल के तौर पर किया गया। शाहीन बाग भी कोई इकलौता मामला नहीं था, सीएए को लेकर जो प्रदर्शन हुए उनमें भी ऐसी कई घटनाएं हमारे सामने आईं। ऐसे में अगर यह कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा कि इस्लामिस्टों ने बच्चों को आगे करके हिंसा फैलाने का मॉडल अपना लिया है।
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