भारत ने अरबों से लेकर अंग्रजों तक सभी लुटेरों के आक्रमण को सहन किया और एक लंबे संघर्ष के बाद जब स्वतंत्रता मिली तो उसके साथ हमें सौगात के रूप में बंटवारा भी मिला, जिसके परिणामस्वरूप एक इस्लामिक कट्टरपंथी देश पाकिस्तान का जन्म हुआ जोकि आए दिन भारत के लिए समस्याएं खड़ी करने का प्रयास करता है। परन्तु समस्या यही पर खत्म नहीं होती, भारत को अपने आंतरिक दुश्मनों से ज्यादा खतरा है। जो देश को अंदर से खोखला करने का प्रयास तो करते ही हैं और साथ ही विदेश में बैठकर भारत के विरूद्ध षड़्यंत्र भी रचते रहते हैं। जी हां, हम खालिस्तानियों की ही बात कर रहे हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे खालिस्तानियों का गढ़ कनाडा अब खालिस्तान बनने की राह पर काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है और लेबनान इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
और पढ़ें: आखिरकार खालिस्तानियों की गोद में बैठ ही गए केजरीवाल और भगवंत मान
कनाडा और खालिस्तानियों का गठजोड़
कनाडा पूर्ण रूप से खालिस्तानियों का केंद्र बन चुका है और वहीं से खालिस्तानी भारत विरोधी एजेंडा चलाने के प्रयास में जुटे हुए हैं। भारत सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद कनाडा सरकार खालिस्तानियों पर कुछ सख्त कदम उठाते नहीं दिख रही है। भारत में खालिस्तान बनाने की खालिस्तानियों की मांग तो पूरी होने से रही लेकिन यह जरूर हो सकता है कि खालिस्तानियों को समर्थन देना कनाडा सरकार पर भारी पड़ सकता है और वो कनाडा को ही खालिस्तान बना सकते हैं। यह कैसे होगा, हम आगे बताएंगे उससे पहले खालिस्तानी और कनाडा के गठजोड़ पर एक नजर डाल लेते हैं।
दरअसल, भारत में खालिस्तान की मांग के दैरान आर्थिक रूप से पंजाब के लोग बहुत कमजोर हो चुके थे, इसलिए उन्होंने रोजगार के लिए कनाडा की ओर पलायन करना शुरू कर दिया परन्तु इन लोगों में बहुत सारे लोग खालिस्तान का समर्थन करने वाले भी थे। जिन्होंने बाद में सिख फॉर जस्टिस जैसा आंतकी संगठन बनाया और उसके द्वारा समय-समय पर खालिस्तान की मांग उठाने लगे। सिख फॉर जस्टिस का पूरा कामकाज आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू देखता है। यह पाकिस्तान के इशारे पर भारत विरोधी काम करता है और आए दिन कोई न कोई नौटंकी करता ही रहता है।
अभी हाल ही में पंजाब को भारत से काटकर खालिस्तान बनाने के लिए कनाडा में जनमत संग्रह का आयोजन किया गया था, जिसमें इसका बहुत बड़ा हाथ था। परन्तु ध्यान देने वाली बात यह है कि कनाडा की ट्रूडो सरकार ने इसे ‘शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक प्रक्रिया’ बताते हुए जनमत संग्रह पर रोक लगाने से ही इनकार कर दिया था। दरअसल, अवैध जनमत संग्रह को लेकर भारत ने कनाडा के समक्ष अपनी आपत्तियां जाहिर की थी और ट्रूडो सरकार से इसे रोकने के लिए भी कहा गया था। जिस पर उनकी तरफ से ट्रूडो सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कनाडा में व्यक्तियों को इकट्ठा होने और अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, इसलिए हम इस पर रोक नहीं लगा सकते हैं।
लेबनान उदाहरण है
परन्तु ‘जस्टिन ट्रूडो’ भूल रहे हैं कि लेबनान में भी कुछ इसी प्रकार से शुरुआत हुई थी और आज वहां की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। स्थिति यह है कि वहां इस्लामिक कट्टरपंथी पूर्ण रूप से हावी हो चुके हैं और वहां के मूल निवासी अल्पसंख्यक बन कर रह गए हैं। यहां पर लेबनान का नाम सुनने के बाद आप सोच रहे होंगे कि कनाडा औऱ लेबनान दोनों अलग-अलग देश हैं, इनका आपस में क्या संबंध हो सकता है? तो जानकारी के लिए आपको बता दें कि लेबनान मध्यपूर्व एशिया में एक छोटा सा देश है, जोकि 1943 में आज़ाद होने से पहले फ़्रांस के अधीन हुआ करता था। इसकी आबादी ईसाई, सुन्नी मुसलमानों, शिया मुसलमानों, द्रुज और कई अन्य तबक़ों में बंटी हुई है।
आजादी के समय लेबनान में एक अलिखित समझौता किया गया कि देश का राष्ट्रपति मरोनाइट ईसाई, संसद का स्पीकर शिया मुस्लिम, प्रधानमंत्री सुन्नी मुस्लिम और डिप्टी स्पीकर ग्रीक रुढ़िवादी होगा। लंबे समय तक इसी समझौता के हिसाब से सरकार चलती रही। मिडिल ईस्ट के तमाम देशों से आने वाले प्रवासियों, जिनमें बड़ी संख्या फिलिस्तीनी शामिल थे, उन्हें लेबनान में ही शरण मिलती थी। क्योंकि इन फिलिस्तीनी प्रवासियों को किसी अन्य मुस्लिम देशों ने अपने यहां जगह देने से इनकार कर दिया था और 1958 में लेबनान के मुस्लिमों ने देश को यूनाइटेड अरब रिपब्लिक का हिस्सा बनाने के लिए विद्रोह कर दिया।
फिर क्या था उसके बाद लेबनान में 1975 में गृहयुद्ध की शुरुआत हुई और दो दशकों तक लेबनान जलता रहा। कई आतंकी संगठन, इजराइल और सीरिया ने लेबनान को अपने झगड़े सुलझाने के लिए लड़ाई के मैदान के रूप में उपयोग किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि लेबनान बर्बाद हो गया। स्थिति ऐसी है कि एक समय का ‘धर्मनिरपेक्ष’ राष्ट्र लेबनान आज पूर्ण रूप से एक इस्लामिक मुल्क बन चुका है। ऐसे में अगर कनाडा सरकार पर्दे के पीछे से खालिस्तानियों को यूं ही समर्थन देती रही, तो वह दिन दूर नहीं जब खालिस्तानी कनाडा को ही खालिस्तान बना दे।
और पढ़ें: कनाडा खालिस्तानियों का अड्डा कैसे बन गया? भिंडरावाले से लेकर जगमीत सिंह तक की कहानी
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें.