भारत, एक ऐसा नाम जो अपने-आप में ही अद्भुत, अतुलनीय और अकल्पनीय रहस्यों को समेटे हुए है। परन्तु जब इसके इतिहास की बात आती है तो हमें अरबी लुटेरों के आक्रमण से लेकर अंग्रजी लुटोरों के शासन करने तक कई ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं जोकि भारत के लोगों के ऊपर हुए अत्याचारों को बयां करती हैं। यही नहीं, ये अत्याचार आज भी लोगों के मन में एक घाव की तरह बैठे हुए हैं। अंग्रेजों ने भारत को पूर्ण रूप से बर्बाद कर दिया, यह सर्वविदित है लेकिन आज भी कई बुद्धिजीवी ये कहते हैं कि अंग्रेजों ने भारत को संवारने का प्रयास किया था, जो सरासर गलत है। आज के इस लेख में हम भारतीय कपड़ा उद्योग को अंग्रेजों ने किस प्रकार सुनियोजित तरीके से बर्बाद किया था, उसके बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
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अंग्रेजों ने भारतीय बाजार को बर्बाद कर दिया
दरअसल, भारतीय उपमहाद्वीप अपने सूती वस्त्रों के लिए दुनियाभर में जाना जाता था और यूरोप में औद्योगिक युग के पहले से ही पुर्तगाल, फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों में भारत से सूती कपड़ा आयात किया जाता था। शुरूआती दौर में भारत और यूरोप के साथ वस्त्रों का व्यापार सीमित मात्रा में हुआ करता था। परन्तु 15वीं शताब्दी में वास्को डी गामा द्वारा केप ऑफ़ गुड होप के रास्ते समुद्री मार्ग की खोज ने इंग्लैंड के साथ भारत के व्यापार को और बढ़ा दिया या यूं कहें कि भारत की मुश्किलों को बढ़ा दिया। इसके बाद अंग्रेजों ने धीरे-धीरे अपने बाजार में भारतीय सूती वस्त्रों का व्यापार करना चालू कर दिया। परन्तु इन सूती कपड़ों का व्यापार अंग्रजी अर्थव्यवस्था के लिए घातक सिद्ध होने लगा।
यही नहीं, इंग्लैंड के लोगों के बीच में भारतीय सूती कपड़े इतने प्रसिद्धि प्राप्त करने लगे कि वहां के बुनकरों द्वारा बनाए गए कपड़ों को लोगों ने लगभग खरीदना ही बंद कर दिया। जिसके कारण अंग्रजों के लिए यह चिंता का विषय बन गया और अंत में वहां की सरकार ने वर्ष 1700 में आयात पर बैन लगा दिया। परन्तु फिर भी लोगों के बीच में कपड़ो की प्रसिद्ध कम नहीं हुई क्योंकि मध्ययुगीन इंग्लैंड में भारतीय वस्त्रों के आने से पहले वहां के लोगों के पास पहनने के लिए सिर्फ चमड़े या मोटे वस्त्र ही हुआ करते थे। इसलिए जब इंग्लैंड के लोग आरामदायक सूती वस्त्रों से परिचित हुए तो उन्होंने सूती वस्त्रों को हाथों-हाथ लिया, जिसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे इंग्लैंड का वस्त्र उद्योग घाटे में जाने लगा। जब लोग भारत से आए कपड़ों को खरीदना बंद नहीं कर रहे थे तो अंग्रजों ने पुनः वर्ष 1721 में एक और कानून बनया, जिसके अंतर्गत भारतीय कपड़े पहनने पर पेनल्टी लगाना चालू किया गया।
अंग्रेज यहीं पर नहीं रूके, उन्हें आभास हो चुका था कि वे जबतक भारतीय कपड़े के स्रोत पर आक्रमण नहीं करेंगे और अपने यहां पर मशीनीकरण नहीं करेंगे, तब तक इस समस्या का समाधान नहीं होगा। इसलिए हमें इतिहास में वर्ष 1735 से 1765 के बीच इंग्लैंड में कपड़ा उद्योग में कई प्रकार के प्रयोग देखने को मिलते हैं। जैसे पहले वहां पर कपड़ा बुनने के लिए काठ की कंघी का उपयोग किया जाता था परन्तु इस दौर में उन्होंने उत्पादन बढ़ाने के लिए स्टील की कंघी, स्पिनिंग जेनी नामक सूत कातने की मशीन, क्रॉम्पटन कताई खच्चर (क्रॉम्पटन म्यूल स्पिंडल) नामक कताई मशीन का आविष्कार किया और उससे कपड़ा बुना जाने लगा। इससे भारतीय कपड़ा उद्योग को एक बड़ा झटका लगा था।
प्लासी युद्ध के बाद भारतीय कपड़ा उद्योग की स्थिति
इधर अंग्रजों को भारत की समृद्धि के बारे में पता चल चुका था कि यह एक ऐसा देश है, जहां से बहुत कुछ लूटा जा सकता है। इसीलिए लूट हेतु बनाई गई ईस्ट इंडिया कंपनी को अंग्रजी सरकार धीरे-धीरे भारत में अपने पैर पसारने के लिए प्रोत्साहित करने लगी। उसके बाद भारतीय कपड़ा उद्योग के विस्तार में प्लासी का युद्ध रोड़ा बनकर आया। 1757 में इसे बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के बीच लड़ा गया था और इसी युद्ध के बाद भारतीय कपड़ा उद्योग के ऊपर भारी मात्रा में टैक्स लगने की कहानी शुरू हो गई।
असल में बंगाल का मुर्शीदाबाद बलचूरी कपड़े और मलमल के कपड़े के लिए जाना जाता था, इसलिए अंग्रेजों ने इसे समाप्त करने लिए बुनकरों पर भारी मात्रा में टैक्स लगाना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि धीरे-धीरे भारतीय कपड़ा उद्योग पूरी तरह बर्बादी की कगार पर जाकर खड़ा हो गया और बुनकरों ने कपड़ा बुनना बंद कर दिया। इसके बाद भारत में धीरे-धीरे उत्तर से लेकर दक्षिण तक कपड़ा उद्योग को सुनियोजित तरह से बर्बाद कर दिया गया और अंत में भारत के लोग कपड़ो के लिए इंग्लैंड के ऊपर निर्भर होते चले गए। इसी कड़ी में एक और बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि अंग्रजों ने भारत के कच्चे माल का उपयोग कर कपड़ों का निर्माण किया और भारत में ही उन्हें बेचा या यूं कहें कि लोगों को खरीदने पर मजबूर किया।
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अंग्रजों ने भारत को सिर्फ ‘लूटा’ था
आपको बताते चलें कि आज के समय में अंग्रजी मानसिकता से ग्रसित लोग बेवजह की एक बहस खड़ी करते हैं कि भारत में अगर अंग्रेज नहीं आए होते तो भारत में औद्योगीकरण नहीं हुआ होता। इसके लिए हमें यहां पर कुछ आंकड़े रखना आवश्यक है, जिससे पता चलता है कि भारत में अगर अंग्रेज नहीं आए होते तो भारत की स्थिति तो छोड़िए परन्तु इंग्लैंड में इतना विकास कतई नहीं हुआ होता, जितना हुआ है। उदाहरण के लिए आप मध्ययुगीन इंग्लैंड और वर्तमान समय में इंग्लैंड के संग्रहालयों को देख सकते हैं किस प्रकार वहां पर दुनियाभर से चोरी किया गया समान रखा गया है।
खैर, वापस आंकड़ो पर आते हैं। ब्रिटिश इतिहासकार “एंगस मैडीसन” के अनुसार 18वीं शताब्दी की शुरुआत में दुनिया की अर्थव्यवस्था में अकेले भारत की 23 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जबकि पूरे यूरोप की अर्थव्यवस्था मिलाकर भी इतनी नहीं थी। इसके आलावा शोषण की बात की जाए तो आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि 1947 में अंग्रेज जब भारत छोड़कर गए तो भारतीय अर्थव्यवस्था 23 प्रतिशत से घटकर 3 प्रतिशत पर आ पहुंची थी। ऐसे में यदि भारत में अंग्रजों के समय का ठीक तरह से विश्लेषण किया जाए तो हमें एक बात सामान्य रूप से देखने को मिलती है कि उनका एक ही काम था- विकास करने के नाम पर आर्थिक लूट-खसोट और भारत के लोगों पर अत्याचार करना।
Source- An Era of Darkness: The British Empire in India by Shashi Tharoor
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