लोग सरसों का तेल, रुपया, पैसा, लैपटॉप सब कुछ लेकर देश की मीडिया के कथित इकलौते स्तंभ रवीश कुमार के पास पहुंच रहे हैं। सरसों का तेल? हां सही सुना आपने सरसों का तेल और घी भी। पुलिस वाले सड़कों पर रवीश कुमार को सलामी दे रहे हैं। देश को टीवी नहीं देखने की सलाह देने वाले रवीश कुमार के सपनों में भी टीवी ही आ रहा है, स्टूडियो की लाइट आ रही है। ये हम नहीं कह रहे हैं ये तो निष्पक्ष और सबसे ईमानदार पत्रकार रवीश कुमार की स्क्रिप्ट का ही हिस्सा है, जो उन्होंने बीबीसी को दिए ताजा साक्षात्कार (Ravish Kumar Interview) में साझा किया है।
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दर-दर जाकर साक्षात्कार दे रहे हैं रवीश कुमार
ज्ञात हो कि निष्पक्ष पत्रकार और कांग्रेस नेता के भाई रवीश कुमार ने जब से NDTV से इस्तीफा दिया है, तब से रवीश कुमार दर-दर जाकर साक्षात्कार (Ravish Kumar Interview) दे रहे हैं। पहले उन्होंने अजित अंजुम को इंटरव्यू दिया, उसके बाद करन थापर को एक इंटरव्यू दिया। अब हाल ही में रवीश कुमार ने बीबीसी को एक साक्षात्कार दिया है।
अब यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि उन्होंने जितने भी इंटरव्यू दिए हैं सभी में उनके द्वारा खुद को दीन हीन बेचारा के रूप में दिखाने का बहुत प्रयास किया गया। एक व्यापारिक सौदे को ऐसे दिखाने का प्रयास किया गया जैसे अडानी ने अपनी मोटी रकम का निवेश रवीश कुमार को बेरोजगार करने के लिए ही किया है। हालांकि बाद में उनके पूर्व मालिक रॉय दंपति ने ही उनके इस भ्रम को दूर कर दिया। NDTV में उनकी पूर्व सहयोगी बर्खा दत्त ने भी रवीश का ये भ्रम दूर किया था जब बर्खा दत्त ने कहा था कि ये NDTV अडानी सौदा पारस्परिक, मित्रवत था। ये सौदा बैरपूर्ण नहीं था। जिसके बाद अब निष्पक्ष पत्रकार रवीश कुमार ने बर्खा दत्त को लेकर कहा है कि बर्खा दत्ता की एक दिन जब तबीयत बिगड़ी तो उन्होंने देखा कि डॉ प्रणय रॉय खुद बर्खा दत्त के तलवे रगड़ रहे थे।
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आत्ममुग्ध रवीश कुमार
इन साक्षात्कारों (Ravish Kumar Interview) में एक बात समान रूप से देखा जा सकता है, वो ये कि रवीश कुमार अलग-अलग जगहों पर जाकर अपनी लोकप्रियता का व्याख्यान कर रहे हैं, उन्हें लगता है कि भारतीय पत्रकारिता का मैं ही एक मात्र चिराग हूं। कभी NDTV में चिट्ठियां छांटने की नौकरी करने वाले पत्रकार रवीश कुमार आत्ममुग्ध हुए जा रहे हैं, अपनी लोकप्रियता का व्याख्यान करते थक नहीं रहे हैं।
वहीं बीबीसी को दिए साक्षात्कार (Ravish Kumar Interview) में रवीश कुमार से राजनीति में आने को लेकर जब प्रश्न पूछा गया तो पहले तो बड़ी ही गंभीरता से रवीश कुमार कहते हैं कि उनके दोस्त और शुभचिंतक कहते रहते हैं कि आपको राजनीति में आना चाहिए। इसके बाद रवीश आगे हल्का सा मुस्कराते हुए कहते हैं कि आप कल्पना कीजिए कि मैं राजनीति में हूं और लोकसभा में हूं उनके सामने बोलते हूए। इस दौरान रवीश का इशारा सीधे तौर पर पीएम मोदी और भाजपा की ओर था। जैसे वो अवसर पाते ही पीएम मोदी और भाजपा सबको निरुत्तर ही कर देंगे।
ये आत्ममुग्धता क्या न बुलवादे, लेकिन यदि देश के सबसे ईमानदार और निष्पक्ष पत्रकार रवीश कुमार को अपनी लोकप्रियता पर इतना ही गुमान है तो क्यों न वो इसकी एक बार जोर आजमाइश ही कर लें? क्योंकि लोकप्रियता का असली पैमाना तो जनता ही है और अब 2024 के लोकसभा चुनाव भी आ ही रहे हैं। ऐसे में रवीश कुमार को अपनी लोकप्रियता को साबित करने का अच्छा मौका भी है। ऐसा भी नहीं है कि रवीश कुमार राजनीति से अछूते हैं या कोई गैर राजनीतिक परिवार से आते हैं। रवीश कुमार के भाई खुद कांग्रेस में हैं। वो एक अलग बात है कि उनके भाई पर और कांग्रेस नेता बृजेश पांडे पर महिला के साथ छेड़खानी के आरोप तक लग चुके हैं।
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धरातल की सच्चाई
यदि रवीश कुमार चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें ज्ञात हो जाएगा कि धरातल की सच्चाई क्या है, जिन ‘उनके’ का वो अपने साक्षात्कार में उल्लेख कर रहे हैं उनके सामने धरातल पर कितना टिक पाते हैं। जिस खोखली लोकप्रियता का वो ढोल पीटते फिरते हैं उसकी मजबूती का भी पता लग जाएगा। कुछ नहीं तो इतना तो हो ही जाएगा कि खुद रवीश कुमार को पीएम मोदी की लोकप्रियता का अंदाजा हो जाए और हो सकता है कि लोकप्रियता वाली ढोल ही फट जाए।
रवीश कुमार को यह ज्ञात होना चाहिए कि वो अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं है जिन्हें अपने ट्वीट पर चार लाइक मिलने से अपनी लोकप्रियता पर गुमान हो जाए और आत्ममुग्धता में शर्माते रहें। ऐसे लोग और भी है, एक उत्कृष्ट उदाहरण तो कन्हैया कुमार ही है जिन्हें सोशल मीडिया की अपनी भक्त मंडली पर बहूत गुमान था। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में जब वो बीजेपी के गिरिराज सिंह के विरुद्ध अपने पैतृक जिले बेगूसराय से लोकसभा चुनाव लड़ने पहुंच गए तो गिरिराज सिंह के हाथों बुरी तरह हार गए और लोकप्रियता की हवा निकल गयी। ऐसे ही अब रवीश कुमार को सोशल मीडिया की भक्त मंडली वाली लोकप्रियता पर बहूत गुमान हो रहा है तो उन्हें भी चुनाव लड़ने जैसा कदम उठाकर खुद की लोकप्रियता की गहराई को आजमा ही लेना चाहिए।
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