एकनाथ शिंदे की सरकार: परिणाम जो भी हो, अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ने वाले की कहीं पूछ नहीं होती। ये सीख उद्धव ठाकरे को अलग रूप में मिली। आए तो थे महोदय सुप्रीम कोर्ट ‘न्याय’ की आस में, परंतु मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ का रुख स्पष्ट था : “मेरी तरफ मत देखिए, मैं आपकी कोई सहायता नहीं कर सकता!”
एकनाथ शिंदे की सरकार विद्यमान रहेगी!
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट की विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते सुप्रीम कोर्ट ने मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मामले को 7 जजों की बेंच के पास भेज दिया है। इस पीठ में जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल रहे। मामला बड़ी बेंच को भेजे जाने के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सहित बगावत करने वाले 16 विधायकों पर फैसला फिलहाल टल गया है। सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच इन विधायकों की अयोग्यता के मामले में फैसला सुनाएगी।
तो इसका अर्थ क्या है? पहला ये कि उद्धव ने त्यागपत्र देकर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारी, और दूसरा, एकनाथ शिंदे की सरकार विद्यमान रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह उद्धव सरकार की बहाली का आदेश नहीं दे सकता, क्योंकि उन्होंने फ्लोर टेस्ट का सामना किए बिना इस्तीफा दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा नहीं दिया होता तो यथास्थिति बहाल हो सकती थी। दरअसल, उद्धव ठाकरे के वकीलों ने राज्य में पुरानी सरकार बहाल करने की माँग सुप्रीम कोर्ट से की। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि पार्टी के आंतरिक विवाद में फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
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फ्लोर टेस्ट का निर्णय गलत था, पर
उद्धव ठाकरे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, देवदत्त कामत और अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी पेश हुए। वहीं, एकनाथ शिंदे गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल, हरीश साल्वे, महेश जेठमलानी और अभिकल्प प्रताप सिंह शामिल हुए। 17 फरवरी 2023 को शुरू हुई इस मामले की सुनवाई में राज्यपाल कार्यालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए।
सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि फ्लोर टेस्ट के लिए राज्यपाल का फैसला गलत था और एकनाथ शिंदे समूह के व्हिप की नियुक्ति में भी स्पीकर गलत थे। राज्यपाल को बगावत करने वाले गुट के पत्र पर भरोसा नहीं करना चाहिए था। पत्र में यह संकेत नहीं था कि उद्धव ठाकरे ने समर्थन खो दिया है। परंतु चूंकि फ्लोर टेस्ट के पूर्व ही उद्धव ठाकरे ने त्यागपत्र सौंप दिया, और तत्कालीन स्पीकर ने भी अविश्वास प्रस्ताव पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया, इसलिए वह उद्धव सरकार की बहाली का आदेश नहीं दे सकते।
दरअसल, महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सरकार के 16 विधायकों ने बगावत कर दिया था। उस दौरान एकनाथ शिंदे ने एक पत्र जारी कर कहा था कि उनके पास 35 विधायकों का समर्थन है। इसके बाद डिप्टी स्पीकर ने सभी 16 बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करने का नोटिस दिया, लेकिन बागियों ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया और उन्हें वहाँ से राहत मिल गई।
इसके बाद 28 जून 2022 को राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे को बहुमत साबित करने के लिए कहा। उद्धव ठाकरे गुट ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रूख किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इसके बाद उद्धव ठाकरे ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 30 जून को भाजपा के सहयोग से एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री बने।
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अब आगे क्या?
अब आगे जो भी हो, परंतु एक बात तो स्पष्ट हो गई : उद्धव अब चाहकर भी सत्ता में पुनः वापसी नहीं कर पाएंगे। ऐसे मामले झारखंड और उत्तराखंड में भी देखे गए थे, परंतु वहाँ पर तत्कालीन प्रशासकों ने संयम से काम लेते हुए परिणाम तक प्रतीक्षा की। ऐसे में यदि CJI चंद्रचूड़ चाहते भी, तो भी वे उद्धव ठाकरे के पक्ष में निर्णय नहीं सुना सकते थे, क्योंकि उन्होंने पहले ही त्यागपत्र सौंप दिया।
अब एकनाथ शिंदे सहित 16 सदस्यों की योग्यता पर क्या निर्णय होगा, ये तो भविष्य के गर्भ में है, परंतु इतना तो स्पष्ट है कि उद्धव न घर के रहे, और न ही घाट के।
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