लंबे समय से UNSC की स्थायी सदस्यता की मांग कर रहे भारत को संयुक्त राष्ट्र लगातार नजरअंदाज कर रहा है। इतनी कोशिशों के बाद भी संयुक्त राष्ट्र के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है। ऐसे में भय का साक्षात्कार कराते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्र को दी जाने वाली फंडिंग में भारी कटौती कर दी है। कहा जा रहा है कि अब जल्द ही भारत सरकार यूएन की पीस कीपिंग फोर्स से भारतीय सैनिकों को वापस बुला सकती है।
भारत ने 1 फरवरी को घोषित अपने अंतरिम बजट में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) को दी जाने वाली धनराशि को 50 प्रतिशत से अधिक घटा दिया है। पिछले वर्ष (2023-24) भारत ने संयुक्त राष्ट्र के बजट में 382.54 करोड़ रुपये ($47 मिलियन) का योगदान दिया था, जबकि इस वर्ष (2024-25) यह योगदान 54.25 प्रतिशत की कमी के साथ मात्र 175 करोड़ रुपये ($21 मिलियन) रह गया है।
यूएनएससी में है अभी पांच स्थायी सदस्य
यूएनएससी, संयुक्त राष्ट्र के छह समूहों में से एक है, जिसमें पांच स्थायी सदस्य शामिल हैं – संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, चीन, रूस और फ्रांस और दस अन्य गैर-स्थायी सदस्यों को बारी-बारी से दो साल के कार्यकाल के लिए चुना जाता है। यूएनएससी दुनिया में शांति और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है और प्रतिबंधों और सैन्य कार्रवाइयों को अधिकृत कर सकता है।
भारत की नाराजगी
भारत इस बात से नाराज है कि उसके तमाम प्रयासों के बावजूद, यूएनएससी सुधार के लिए तैयार नहीं है, यहां तक कि दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश और दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (जो तीसरी सबसे बड़ी बनने की राह पर है) का इसमें स्थायी प्रतिनिधित्व नहीं है। संयुक्त राष्ट्र में सुधार को लेकर भारत का रुख कोई अलग-थलग नहीं है। जापान, जर्मनी और ब्राज़ील सहित कई देश संयुक्त राष्ट्र की वर्तमान संरचना के खिलाफ हैं।
हालांकि, भारत द्वारा बजट में 20 मिलियन डॉलर की कटौती से संयुक्त राष्ट्र के कामकाज पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है इसका बजट $3.4 बिलियन के करीब है। भारत का यह कदम एक प्रतीकात्मक इशारा अधिक है।
वहीं, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कल 22 फरवरी को रायसीना डायलॉग में कई गणमान्य लोगों की मौजूदगी में इस पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “जब संयुक्त राष्ट्र अस्तित्व में आया, तो इसमें लगभग 50 सदस्य थे, और आज चार गुना सदस्य हैं। इसलिए, यह एक सामान्य ज्ञान का प्रस्ताव है कि जब आपके पास चार गुना सदस्य हों तो आप उसी तरह जारी नहीं रह सकते।”
यूएनएससी मौजूदा संकटों से निपटने में हुआ विफल
विदेश मंत्री ने कहा कि दुनिया के मौजूदा संकटों से निपटने में संयुक्त राष्ट्र पहले से ही निष्क्रिय हो गया है। यह कई मौजूदा संकटों – रूस-यूक्रेन युद्ध या पश्चिम एशिया में इजराइल और हमास के बीच संघर्ष, या यहां तक कि जलवायु परिवर्तन के बारे में आम सहमति या ठोस कार्रवाई बनाने में भी काफी हद तक विफल रहा है।
कोविड के दौरान यूएनएससी ने नहीं भारत ने की दुनिया की मदद
इसके अलावा, जब दुनिया को कोविड-19 के कठिन समय में यूएनएससी की सबसे ज़्यादा जरूरत थी तब संयुक्त राष्ट्र कहीं नजर नहीं आया। संकट के उस समय में भारत ही था जो छोटे देशों की मदद के लिए बांहें फैलाकर आगे आया। इससे पता चला कि संयुक्त राष्ट्र कितना नपुंसक हो गया है।
वहीं दूसरी ओर भारत ने संयुक्त राष्ट्र के बिना काम चलाने की अपनी क्षमता के बढ़ा लिया है। भारत जो पश्चिमी मानकों के अनुसार निम्न से मध्यम आय वाला देश है उसने अपने वैक्सीन मैत्री कार्यक्रम के तहत छोटे देशों को लाखों टीके दान किए, जबकि संयुक्त राष्ट्र प्रणाली ने इसकी प्रभावशीलता या इसकी कमी को प्रदर्शित किया।
विदेश मंत्री ने कहा संयुक्त राष्ट्र में कुछ बड़े देश भी बदलाव के प्रति अनिच्छुक हैं। वे सुधारों की आवश्यकता के बारे में दिखावा करते हैं लेकिन सच्चाई सामने आने पर पीछे हट जाते हैं।
जयशंकर का चीन पर हमला
विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने भाषण में चीन की ओर सूक्ष्म इशारा करते हुए कहा कि कुछ बड़ी शक्तियों ने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के साथ खिलवाड़ किया है और इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है।
विशेष रूप से चीनी राजनयिक संयुक्त राष्ट्र के 15 बहुपक्षीय निकायों में से चार के प्रमुख हैं और कई अन्य निकायों पर उनका प्रभाव है। यह अपने प्रॉक्सी का उपयोग करके इस पर नियंत्रण भी रखता है, उदाहरण के लिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के निदेशक टेड्रोस एडनोम घेबियस, जिन्हें 2017 में चीनी प्रभाव का उपयोग करके चुना गया था।
चीन अक्सर अपने लाभ के लिए इन संगठनों की नीतियों को बदलने के लिए इस प्रभाव का उपयोग करता है। जयशंकर ने कहा, “आज दुनिया की बहुत सारी समस्याएं पश्चिम की देन हैं, लेकिन यह भी सच है कि आज संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का सबसे बड़ा विरोधी कोई पश्चिमी देश नहीं है। लिहाजा अब भारत ने सख्त रूख अपनान शुरू किया है।