भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में चुनाव एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और चुनावी प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) एक आवश्यक उपकरण बन गई है। लेकिन जैसे ही चुनाव परिणाम आते हैं और विपक्षी दल हार का सामना करते हैं, ईवीएम पर सवाल उठाना एक सामान्य प्रवृत्ति बन गई है। इस प्रवृत्ति पर गंभीरता से चर्चा की जानी चाहिए क्योंकि यह न केवल ईवीएम की विश्वसनीयता को प्रभावित करती है, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं पर भी सवाल उठाती है।
विपक्ष का रवैया और सीईसी की प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों के इस रवैये पर हाल ही में देश के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार ने तंज कसा है। उन्होंने कहा, “अब अगले चुनाव तक ईवीएम को आराम करने दीजिए। फिर वह बाहर आएगी और गाली खाएगी।” सीईसी ने यह भी कहा कि “ईवीएम का जन्म ही ऐसे मुहूर्त में हुआ है कि इसे गालियां खानी पड़ती हैं, बावजूद इसके वह बहुत ही भरोसेमंद चीज है।”
उनके अनुसार, पिछले 20-22 चुनावों से ईवीएम ने अच्छा परिणाम दिखाया है और तटस्थ होकर अपना काम किया है। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि ईवीएम पर सवाल उठाना न केवल अनुचित है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने का प्रयास भी है।
पीएम मोदी ने भी कसा तंज
वहीं, दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक बार फिर EVM पर सवाल उठाने को लेकर विपक्ष के INDIA गुट पर तंज कसा है। पुराने संसद भवन के सेंट्रल हॉल में शुक्रवार को NDA को सभी नए सांसदों और राज्यों के मुख्यमंत्रियों और दूसरे नेताओं की बैठक हुई।
इस बैठक को संबोधित करते हुए मोदी ने विपक्ष पर तंज कसते हुए पूछा, EVM जिंदा है कि मर गया? इसी बैठक में नरेंद्र मोदी लोकसभा के नेता, भारतीय जनता पार्टी के नेता और NDA संसदीय दल के नेता चुने गए।
PM मोदी ने लोकसभा चुनाव के नतीजों वाले दिन का एक किस्सा याद करते हुए कहा, “जब 4 जून को नतीजे आ रहे थे, तो मैं काम में बिजी था। बाद में फोन आने लगे। मैंने किसी से पूछा, नंबर तो ठीक हैं, ये बताओ EVM जिंदा है कि मर गया?”
उन्होंने ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा, “इन लोगों (विपक्ष) ने यह सुनिश्चित करने का निर्णय लिया कि लोग भारत के लोकतंत्र और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास करना बंद कर दें। उन्होंने ने लगातार EVM का दुरुपयोग किया। मुझे लगा था कि वे EVM की शवयात्रा निकालेंगे, लेकिन 4 जून की शाम तक उनके मुंह पर ताले लग गए। EVM ने उनको चुप करा दिया।”
मोदी ने आगे कहा,”यह भारत के लोकतंत्र की ताकत है, इसकी निष्पक्षता है, मुझे उम्मीद है कि मुझे 5 साल तक EVM के बारे में सुनने को नहीं मिलेगा, लेकिन जब हम 2029 में जाएंगे, तो शायद वे फिर से EVM के बारे में राग अलापेंगे देश उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।”
ईवीएम का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
ईवीएम का प्रयोग पहली बार 1982 के केरल के नॉर्थ परावूर विधानसभा सीट के उपचुनाव में हुआ था। इसके बाद इसे व्यापक रूप से 2004 के लोकसभा चुनाव में अपनाया गया। तब से लेकर अब तक, ईवीएम ने भारतीय चुनाव प्रणाली में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। इसके माध्यम से चुनाव प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और तेज हो गई है, जिससे चुनाव परिणाम जल्दी और सटीक रूप से आ सकते हैं।
विपक्ष का आरोप और हकीकत
2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में विपक्षी दलों ने भारी हार का सामना किया। इसके बाद उन्होंने ईवीएम पर सवाल उठाए और बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की। हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में भी यही स्थिति देखने को मिली। विपक्ष ने एक बार फिर ईवीएम को घेरा और उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए।
यह एक परंपरा सी बन गई है कि जब कोई पार्टी चुनाव जीतती है तो ईवीएम निष्पक्ष होती है, लेकिन हारने पर उसमें गड़बड़ी की बात की जाती है। इसके बावजूद, हर चुनाव के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम की सुरक्षा और उसकी कार्यक्षमता की पुष्टि की है।
ईवीएम की सुरक्षा और पारदर्शिता
ईवीएम को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि यह किसी भी प्रकार की हेराफेरी से बच सकती है। इसके सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर में कई स्तर की सुरक्षा होती है। इसके अलावा, प्रत्येक ईवीएम को एक विशिष्ट पहचान संख्या दी जाती है और उसे चुनाव आयोग के निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही संचालित किया जाता है।
वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) के माध्यम से भी ईवीएम की पारदर्शिता और विश्वसनीयता बढ़ाई गई है। वीवीपैट की मदद से मतदाता अपने वोट की पुष्टि कर सकते हैं और चुनाव परिणाम के समय इसका मिलान भी किया जा सकता है।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया और ईवीएम
भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मजबूती ईवीएम पर आधारित है। चुनाव प्रक्रिया की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और समावेशिता को बनाए रखना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। सीईसी राजीव कुमार ने स्पष्ट किया है कि चुनाव आयोग नैतिक और कानूनी रूप से स्वतंत्र, निष्पक्ष और समावेशी चुनाव कराने के लिए प्रतिबद्ध है।
ईवीएम ने पिछले दो दशकों में अपनी विश्वसनीयता साबित की है और सरकारों के बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह दर्शाता है कि भारतीय मतदाता का विश्वास ईवीएम पर कायम है और इसे संदेहास्पद बनाने का कोई ठोस आधार नहीं है।
निष्कर्ष
विपक्षी दलों द्वारा ईवीएम पर सवाल उठाना और उसे गाली देना एक निराधार परंपरा बन गई है। चुनाव में हार-जीत का फैसला जनता करती है और ईवीएम केवल एक माध्यम है जिससे इस प्रक्रिया को तेज, सुरक्षित और पारदर्शी बनाया गया है। सीईसी के अनुसार, ईवीएम एक भरोसेमंद और तटस्थ उपकरण है जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मजबूती का प्रतीक है।
अतः, विपक्ष को चाहिए कि वह ईवीएम को कोसने की बजाय अपनी चुनावी रणनीतियों और नीतियों पर ध्यान केंद्रित करे, जिससे वह जनता का विश्वास जीत सके। ईवीएम की विश्वसनीयता को बनाए रखना और उसे राजनीति का शिकार न बनने देना हम सभी की जिम्मेदारी है।
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