हरियाणा के चुनाव में बहुत जोर-शोर से तीन मुद्दों की बात हो रही थी- किसान, जवान और पहलवान। किसान से तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर हुए आंदोलन का नैरेटिव चल रहा था। जवान से केंद्र सरकार की अग्निवीर योजना पर सवाल उठाते हुए नैरेटिव गढ़ा जा रहा था। पहलवान से महिला पहलवानों के प्रदर्शन को बीजेपी के खिलाफ बताते हुए नैरेटिव चलाया गया। कांग्रेस लगभग मान चुकी थी कि किसान, जवान, पहलवान नैरेटिव के सहारे वह हरियाणा का चुनाव जीतने जा रही है। जबकि जमीन पर कांग्रेस का नैरेटिव चारों खाने चित हो गया। यही नहीं भूपिंदर सिंह हुड्डा का शंभू बॉर्डर खोलने का ऐलान भी चुनावी स्टंट बनकर रह गया। ऐसा नहीं होता, तो क्यों भूपिंदर सिंह हुड्डा के गढ़ सोनीपत जिले की छह में से पांच सीटें कांग्रेस हार जाती है?
हुड्डा के गढ़ सोनीपत में सिर्फ 1 सीट
पहले बात किसान की कर लेते हैं। कांग्रेस ने इस चुनाव में भूपिंदर सिंह हुड्डा को एक तरह से फ्रीहैंड दिया हुआ था। 90 विधानसभा सीटों में से 72 कैंडिडेट उनके कहने पर तय हुए थे। हुड्डा ने हरियाणा की चुनावी रैलियों में मंच से कहा, ‘तानाशाह सरकार ने पहले तीन किसान विरोधी कानून थोपे। जब किसानों ने इन कानूनों का विरोध किया, तो उन पर लाठियां और गोलियां चलाईं। सड़कें खोदकर हरियाणा सरकार ने किसानों को शंभू बॉर्डर पर रोक दिया। जब हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनेगी, तो शंभू बॉर्डर खोल दिया जाएगा।‘ रोहतक और सोनीपत दो ऐसे जिले हैं, जिन्हें भूपिंदर सिंह हुड्डा का गढ़ माना जाता है। चुनावी नतीजों में यहां से भी कांग्रेस को कोई खास बढ़त नहीं मिली। रोहतक जिले में जरूर कांग्रेस को सभी चारों सीटों पर जीत मिली लेकिन सोनीपत में कांग्रेस के हिस्से में छह में से सिर्फ एक सीट आई। रोहतक सीट से कांग्रेस के भारत भूषण बत्रा सिर्फ 1341 वोटों से जीत सके।
‘जलेबी’ वाली सीट भी हारी कांग्रेस
सोनीपत के जिस गोहाना की जलेबी की तारीफ करते हुए फैक्ट्री लगवाने का जिक्र राहुल गांधी ने किया था, वहां भी पार्टी को बुरी तरह हार मिली है। इस सीट पर बीजेपी के अरविंद कुमार शर्मा 10 हजार से ज्यादा वोटों से जीते हैं। राहुल गांधी का जलेबी को फैक्ट्री से जोड़ने वाला बयान कांग्रेस के मजाक की वजह अलग से बना, जो आज चुनाव नतीजों के दिन भी सोशल मीडिया पर वायरल होता रहा। किसानों को एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का वादा किसानों के बड़े हिस्से के पल्ले नहीं पड़ा, क्योंकि बीजेपी राज्य में 24 फसलों पर पहले से एमएसपी दे रही है। वहीं, कांग्रेस शासन के दस साल और बीजेपी के पिछले दस साल की तुलना ने एक नया नैरेटिव भी गढ़ा। किसानों के बड़े तबके में किसान सम्मान निधि जैसे कदम को सीधे पीएम मोदी से जोड़कर देखा जाता है। बीजेपी को इसका लाभ भी मिला।
अग्निवीर पर बीजेपी की गारंटी ने तोड़ दिया नैरेटिव
किसानों के साथ ही जवान का नैरेटिव भी कांग्रेस की तरफ से हरियाणा में खूब चलाया जा रहा था। हुड्डा ने कहा था कि पहले हर साल हरियाणा के पांच हजार युवा सशस्त्र बलों में शामिल होते थे। अग्निवीर योजना आई तो 250 युवा इसमें शामिल हुए और उनका भविष्य अंधकार में डूब गया। बीजेपी ने अग्निवीर पर कांग्रेस के इस भ्रामक नैरेटिव को तोड़ने में देर नहीं लगाई। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और सीएम नायब सिंह सैनी ने रैलियों में बार-बार ऐलान किया कि हरियाणा का कोई अग्निवीर पक्की पेंशन वाली नौकरी के बिना नहीं रहेगा। हरियाणा के एक भी अग्निवीर को अगर वापस आना पड़ता है, तो वो नौकरी के बगैर नहीं रहेगा इसकी जिम्मेदारी भाजपा की है। रैलियों में हर हरियाणवी अग्निवीर को सरकारी नौकरी की गारंटी के ऐलान से बीजेपी ने कांग्रेस का झूठा नैरेटिव तोड़ दिया।
पहलवानों का नैरेटिव ऐसे टूटता गया
अब पहलवानों के प्रदर्शन के मुद्दे पर कांग्रेस का गढ़ा नैरेटिव क्यों नहीं जीत दिला सका? यह बात सही है कि कांग्रेस ने पहलवानों के प्रदर्शन की आड़ में नैरेटिव गढ़ने की भरपूर कोशिश की। साथ में किसान-जवान का सेंटीमेंट भी जोड़ा गया। लेकिन कांग्रेस के लिए मुश्किल यह हो गई कि हरियाणा जैसे राज्य में किसान और पहलवान की कथित जुगलबंदी को जाट समुदाय से जोड़कर ही देखा जाता है। दीपेंद्र हुड्डा ही लगातार कांग्रेस की तरफ से विनेश फोगाट के मसले पर प्रतिक्रिया देते रहे। इससे जनता के एक हिस्से में मैसेज गया कि पहलवानों का आंदोलन गैर राजनीतिक नहीं था। ऐसे में इस मुद्दे का भावनात्मक लाभ कांग्रेस को नहीं मिल पाया, जिसकी वो उम्मीद लगाए बैठी थी। बीजेपी ने भी रणनीतिक रूप से पहलवानों के आंदोलन पर ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं दी। इससे मैसेज गया कि कांग्रेस इस मुद्दे का पूरी तरह राजनीतिकरण कर रही है।
जुलाना में जाटों के सारे वोट नहीं जुटा पाईं विनेश
जब तक विनेश आंदोलन कर रही थीं, तब तक जनता की संवेदनाएं उनके साथ थीं। लेकिन कांग्रेस ज्वाइन करना और सीधे पीएम मोदी पर हमला जनता को रास नहीं आया। इसका अंदाजा उनकी जुलाना सीट के नतीजे से लगाया जा सकता है। तकरीबन 70 प्रतिशत जाट वोटरों वाली इस सीट पर पांच पार्टियों में से 4 के उम्मीदवार जाट थे। विनेश फोगाट के अलावा सुरेंद्र लाठर (आईएनएलडी), अमरजीत ढांडा (जेजेपी) और कवितारानी (आम आदमी पार्टी)। लाठर को 10 हजार से ऊपर वोट मिले, बाकी दो जाट कैंडिडेट एक से दो हजार में सिमट गए। इसका सीधा मतलब है कि विनेश को जाटों के भी पूरे वोट नहीं मिले। उन्हें 65080 वोट मिले, जबकि बीजेपी के गैर जाट कैंडिडेट योगेश बैरागी को 59065 मत हासिल हुए। यानी जो विनेश अपनी सीट पर जाटों के पूरे वोट नहीं दिला सकीं, उनसे पूरे राज्य में कांग्रेस को क्या फायदा हुआ होगा?
जाटों के गढ़ में बीजेपी ने लगाई सेंध
हरियाणा में बीजेपी जाट बनाम गैर जाट के मुद्दे पर चुनाव लड़ती रही है। हालांकि पार्टी ने अपने माइक्रो मैनेजमेंट से जाट बहुल सीटों में भी सेंध लगाई है। बीजेपी ने इस बार जो 22 नई सीटें जीती हैं, उनमें से जाट बहुल बागड़ और देशवाल बेल्ट में 7 सीटें हैं। बागड़ बेल्ट में हिसार, सिरसा, भिवानी, चरखी-दादरी और फतेहाबाद जिले आते हैं। यहां 22 विधानसभा सीटें हैं। इस बार बीजेपी ने बागड़ बेल्ट में पिछली बार ती तरह 8 सीटें जीती हैं। देशवाल बेल्ट में सोनीपत, रोहतक और झज्जर जिले हैं। इन तीन जिलों में 14 विधानसभा सीटें हैं। 2019 में बीजेपी को यहां 2 सीटें मिली थीं लेकिन इस बार वह 4 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही। वहीं पंजाब से लगे बांगर बेल्ट के जींद और कैथल जिले की 9 में से 5 सीटें बीजेपी ने जीती हैं। 2014 में बीजेपी यहां 2 और 2019 में 3 सीटों पर कामयाब हुई थी।
करीबी मुकाबलों में गैर जाट वोटों की गोलबंदी से हार
बार-बार विनेश फोगाट और पहलवानों की चर्चा ने गैर जाटों के बीच यह संदेश दिया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो उनके लिए मुश्किल हो सकती है। हरियाणा में तकरीबन 22 प्रतिशत जाट हैं, जिनकी पहचान मुखर रूप से बात करने की है। इसका काउंटर नैरेटिव यह बना कि गैर जाटों को लगने लगा कि कांग्रेस जीतती है तो हुड्डा ही सीएम बनेंगे। ऐसे में बाकी जातियों की गोलबंदी ने बीजेपी का काम आसान कर दिया। बीजेपी वैसे भी हरियाणा में गैर जाट पॉलिटिक्स के लिए जानी जाती रही है। जाट और गैर जाट वोटों के बंटवारे ने कई करीबी मुकाबले में कांग्रेस को उलझा दिया। यही वजह रही कि पार्टी सफीदों, आसंध, समलखा, फतेहाबाद, तोशाम, महेंद्रगढ़ और बरवाला जैसी सीटें कम अंतर से हार गई।