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हम देश के लिए नमक से लेकर ट्रक तक बनाते हैं… यूं ही नहीं कोई रतन टाटा बन जाता है

रतन टाटा का 9 अक्टूबर को ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया। 28 दिसंबर 1937 को एक पारसी परिवार में जन्मे रतन टाटा का जीवन प्रेरणा का स्रोत है।

Sudhakar Singh द्वारा Sudhakar Singh
10 October 2024
in चर्चित
हम देश के लिए नमक से लेकर ट्रक तक बनाते हैं… यूं ही नहीं कोई रतन टाटा बन जाता है

रतन टाटा 1981 में टाटा इंडस्ट्रीज के प्रमुख बने थे

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किसी खतरे को मोल न लेना ही सबसे बड़ा खतरा है, तेजी से बदलती इस दुनिया में फेल होने के लिए एकमात्र रणनीति किसी खतरे को न उठाना है। अगर आप लाइफ में तेज चलना चाहते हैं, तो अकेले चलिए लेकिन आप जीवन में दूर तक चलना चाहते हैं, तो साथ चलिए। ये प्रेरणादायक पंक्तियां उस शख्सियत की हैं, जिन्हें हम रतन टाटा के नाम से जानते हैं। ‘हम देश का नमक खाते हैं।‘ टाटा का यह ऐड तो आपको याद ही होगा। 1983 में शुरू हुए टाटा नमक ने अपनी गुणवत्ता से इसे पूरे देश में एक भरोसेमंद ब्रांड बनाया। 1986 में टाटा ने अपने दम पर पहला कमर्शियल वाहन टाटा 407 लॉन्च किया था। नमक से लेकर ट्रक तक रतन टाटा ने देश को बहुत कुछ दिया है। टीसीएस यानी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, दुनिया की बड़ी आईटी-सॉफ्टवेयर कंपनियों में से एक। यह भी उन्हीं के विजन का नतीजा था। आज रतन टाटा हम सभी को छोड़कर जा चुके हैं, लेकिन उनकी सोच पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी। ऐसी ही पांच कहानियों से रूबरू होते हैं।

मजदूर की तरह काम की शुरुआत

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रतन टाटा ने अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। माता-पिता के तलाक के बाद रतन टाटा को उनकी दादी लेडी नवाजबाई टाटा ने पाला था। लॉस एंजिलिस में रतन नौकरी कर रहे थे। इसी बीच दादी और जेआरडी टाटा के कहने पर वह भारत लौट आए।। इसके बाद 1962 में जमशेदपुर टाटा स्टील में काम करने पहुंचे। टाटा ग्रुप पर चर्चित किताब द टाटाज हाउ ए फैमिली बिल्ट ए बिजनेस एंड ए नेशन में गिरीश कुबेर ने लिखा है, ‘जमशेदपुर में रतन टाटा छह साल रहे। यहां पर टाटा स्टील में एक शॉपफ्लोर मजदूर की तरह ड्रेस पहनकर उन्होंने अप्रेंटिसशिप की। बाद में उनको प्रोजेक्ट मैनेजर बनाया गया। उनके कठिन परिश्रम की चर्चा बंबई तक पहुंची और इसके बाद जेआरडी ने उन्हें बंबई बुला लिया।‘ जेआरडी ने रतन टाटा को सेंट्रल इंडिया मिल और नेल्को की जिम्मेदारी सौंपी, जो घाटे में चल रही थी। रतन टाटा ने तीन साल में ही नेल्को यानी नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स को फायदे में ला दिया। इसके बाद 1981 में जेआरडी ने उनको टाटा इंडस्ट्रीज की कमान सौंप दी।

फोर्ड पर टाटा का ‘उपकार’

साल था 1998 और टाटा मोटर्स ने पहली स्वदेशी कार टाटा इंडिका को लॉन्च किया। हालांकि इस कार को मार्केट में कामयाबी नहीं मिल सकी। कंपनी घाटे में थी और ऐसे में रतन टाटा ने अमेरिका की बड़ी कार निर्माता कंपनी फोर्ड से बात करने का निर्णय लिया। 1999 में रतन टाटा अपनी टीम के साथ बिल फोर्ड के पास पहुंचे। बिल फोर्ड उस समय फोर्ड कंपनी के चेयरमैन थे। दोनों कंपनियों की मीटिंग में बिल फोर्ड ने रतन टाटा से कई कड़वी बातें कहीं। जैसे- तुमने पैसेंजर कार डिविजन क्यों शुरू किया? बिल ने रतन टाटा से कहा कि उनको कभी कार बिजनेस में उतरना ही नहीं चाहिए था, क्योंकि तुम्हें इसके बारे में कुछ नहीं पता। बिल ने यह भी तंज किया कि अगर यह डील मैंने की तो तुम पर अहसान करूंगा। बात रतन टाटा को लग गई और वह मीटिंग बीच में ही छोड़कर चले गए। टाटा ने इंडिका की प्रोडक्शन यूनिट को नहीं बेचने का फैसला किया। वक्त का पहिया पलटा और 9 साल बाद मार्केट में मंदी के बीच फोर्ड दिवालिया होने वाली थी। रतन टाटा ने फोर्ड के सामने उसके दो लोकप्रिय ब्रांड को खरीदने की पेशकश की। जून 2008 में जगुआर और लैंडरोवर को टाटा ने 2.3 बिलियन डॉलर में खरीद लिया। इस पर फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड ने टाटा से कहा कि आप इन्हें खरीदकर हमारे ऊपर उपकार कर रहे हैं।

सादगी और दिखावे से दूर

रतन टाटा की जीवनशैली सादगी भरी थी। रतन टाटा को दफ्तर और घर में घालमेल पसंद नहीं था। शाम साढ़े छह बजे वह दफ्तर छोड़ देते थे। ऑफिस के काम के लिए घर पर किसी का संपर्क करना उन्हें पसंद नहीं था। अपना वीकेंड वो अलीबाग के फॉर्म हाउस में बिताते थे। रतन टाटा को उनके मित्र एक बिना दिखावे वाले शख्स के रूप में याद करते हैं। यहां तक कि इतना बड़ा उद्योगपति होने के बावजूद वह अपना फोन खुद ही उठाते थे। कूमी कपूर ने एन इंटिमेट हिस्ट्री ऑफ पारसीज किताब लिखी है। कूमी कपूर रतन टाटा के बारे में लिखती हैं, ‘रतन टाटा की जीवनशैली ज्यादातर भारतीय अरबपतियों के मुकाबले बहुत सादगी भरी थी। रतन टाटा के एक कारोबारी सलाहकार ने बताया था कि उनके यहां सचिवों की भीड़ नहीं थी, ये जानकर मैं हैरान था।‘

कुत्तों से बेइंतहा प्यार

रतन टाटा को कुत्तों से बेइंतहा लगाव था। उनके दो जर्मन शेफर्ड कुत्ते टीटो और टैंगो, रतन टाटा के बहुत करीब थे। चर्चित कारोबारी और लेखक सुहेल सेठ ने इसी से जुड़ा एक किस्सा सुनाते हुए कहा था, ‘ब्रिटेन के राजकुमार चार्ल्स को बकिंघम पैलेस में 6 फरवरी 2018 को रतन टाटा को एक अवॉर्ड देना था। इस सेरेमनी से चंद घंटों पहले रतन टाटा ने आयोजकों को बताया कि उनका कुत्ता टीटो बीमार हो गया है, इसलिए वह समारोह में नहीं आ सकते।‘ सचिन तेंदुलकर ने भी रतन टाटा को श्रद्धांजलि देते हुए एक्स पर पोस्ट में लिखा, ‘जानवरों के प्रति अपने प्रेम से लेकर परोपकार तक, रतन टाटा ने दिखाया कि असली तरक्की तभी हासिल की जा सकती है, जब हम उन लोगों की देखभाल करते हैं जिनके पास अपनी देखभाल करने के साधन नहीं हैं। आपकी आत्मा को शांति मिले मिस्टर रतन टाटा। आपके बनाए गए संस्थानों और आपके अपनाए गए मूल्यों के माध्यम से आपकी विरासत जिंदा रहेगी।‘

In his life, and demise, Mr Ratan Tata has moved the nation.

I was fortunate to spend time with him, but millions, who have never met him, feel the same grief that I feel today. Such is his impact.

From his love for animals to philanthropy, he showed that true progress can… pic.twitter.com/SBc7cdWbGe

— Sachin Tendulkar (@sachin_rt) October 10, 2024

कोविड में देश को 1500 करोड़ की मदद   

टाटा को देश के सबसे भरोसेमंद ब्रांड में से एक बनाने में उनकी लगन, विजन और समर्पण को हमेशा याद रखा जाएगा। कोरोना महामारी में रतन टाटा का योगदान भला देश कैसे भूल सकता है। कोविड महामारी फैली तो रतन टाटा ने फौरन देश के लिए खजाना खोलते हुए 1500 करोड़ रुपये की मदद की थी। महामारी से जंग और लॉकडाउन के बुरे असर से निपटने के लिए रतन टाटा ने 500 करोड़ टाटा ट्रस्ट से और 1000 करोड़ रुपये टाटा कंपनियों के जरिए डोनेट किए। जब कोरोना में देश के डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी जोखिम के बीच दायित्व निभा रहे थे, उस समय उनके रहने के लिए अपने लग्जरी होटलों की पेशकश सबसे पहले रतन टाटा ने की थी। जब भी आजाद भारत का इतिहास लिखा जाएगा, तो उसे एक राष्ट्र के रूप में बनाने वाले लोगों की लिस्ट में रतन टाटा का नाम जरूर लिया जाएगा।

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