नई दिल्ली: बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन के लिए अच्छी खबर है। भारत में निवास के लिए जरूरी रेजिडेंस परमिट की उनकी गुजारिश पर केंद्र की मोदी सरकार ने एक्शन लिया है। तसलीमा नसरीन का रेजिडेंस परमिट रिन्यू कर दिया गया है। इसके साथ ही अब तसलीमा को भारत में रहने में कोई मुश्किल नहीं आएगी। इससे पहले तसलीमा ने एक्स पोस्ट के जरिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से रेजिडेंस परमिट को बढ़ाने की मांग की थी।
‘आपका धन्यवाद अमित शाह’
तसलीमा नसरीन ने रेजिडेंस परमिट को रिन्यू करने के लिए अमित शाह का आभार जताया है। उन्होंने अपने आधिकारिक एक्स अकाउंट से पोस्ट करते हुए कहा, ‘आपका धन्यवाद अमित शाह।‘ एक दिन पहले ही तसलीमा ने एक्स पोस्ट के जरिए अमित शाह से रेजिडेंस परमिट बढ़ाने की अपील की थी।
. @AmitShah 🙏🙏🙏🙏🙏A world of thanks. 🙏🙏🙏🙏🙏
— taslima nasreen (@taslimanasreen) October 22, 2024
शाह से तसलीमा ने की थी यह अपील
नसरीन ने लिखा, ‘प्रिय अमित शाहजी नमस्कार। मैं भारत में रहती हूं, क्योंकि मुझे इस महान देश से प्यार है। पिछले 20 साल से यह मेरा दूसरा घर है। लेकिन गृह मंत्रालय ने जुलाई 2022 से मेरा रेजिडेंस परमिट नहीं बढ़ाया है। मैं इससे बहुत चिंतित हूं। अगर आप मुझे रहने की इजाजत देंगे, तो मैं आपकी अत्यंत आभारी रहूंगी।‘
.@AmitShah Dear AmitShahji 🙏Namaskar. I live in India because I love this great country. It has been my 2nd home for the last 20yrs. But MHA has not been extending my residence permit since July22. I'm so worried.I would be so grateful to you if you let me stay. Warm regards.🙏
— taslima nasreen (@taslimanasreen) October 21, 2024
‘पूर्वजों का देश, लेखिका हैं कोई कट्टरपंथी नहीं’
तसलीमा नसरीन का रेजिडेंस परमिट बढ़ाए जाने के बाद तमाम लोगों ने उनको भारत की नागरिकता दिए जाने की मांग की है। एक्स पर एक यूजर संतोष कुमार राज विश्वकर्मा ने लिखा, ‘तसलीमा नसरीन जी को भारत में स्थायी नागरिकता दे देना चाहिए। इनके पूर्वजों का देश है और बेहतर लेखिका हैं कोई कट्टरपंथी नहीं।’
तस्लीमा नसरीन जी को भारत में स्थायी नागरिकता दे देना चाहिए. इनके पूर्वजों का देश है और बेहतर लेखिका हैं कोई कट्टरपंथी नहीं.
— Santosh Kr. Raj Vishwkarma (@ActivistSantosh) October 22, 2024
अभी स्वीडन की नागरिक हैं तसलीमा
तसलीमा नसरीन के पास अभी स्वीडन की नागरिकता है। 1994 में उनको कट्टरपंथियों के विरोध की वजह से अपना देश छोड़ना पड़ा था। एक्स पर एक यूजर प्रभंजन ने लिखा, ‘हमारे भारत की तरह हमारे गृह मंत्री का दिल बहुत बड़ा है।‘
हमारे भारत की तरह हमारे गृह मंत्री का दिल बहुत बड़ा है
— प्रभंजन 🇮🇳 (@prabhanjan30) October 22, 2024
कौन हैं तसलीमा नसरीन?
तसलीमा नसरीन एक मशहूर लेखिका हैं। उनका जन्म 25 अगस्त 1962 को बांग्लादेश के मयमन सिंह इलाके में हुआ था। बतौर प्रोफेशन उन्होंने डॉक्टरी की डिग्री ली थी। उन्होंने कई किताबें और उपन्यास लिखे हैं। उनके उपन्यास लज्जा पर बांग्लादेश में काफी विवाद हुआ था। इस पर भारत में एक फिल्म भी बन चुकी है। इस्लामिक कट्टरता और धर्मांधता के खिलाफ लिखने की वजह से वह बांग्लादेश में मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर रहीं। पाकिस्तानी मूल के तारिक फतेह की तरह ही नसरीन भी कई मौकों पर इस्लाम की आलोचना और सवाल उठाती रही हैं। यही वजह रही कि 1994 में उन्हें बांग्लादेश छोड़कर दूसरे देशों में शरण मांगनी पड़ी। उनके खिलाफ फतवा भी जारी किया गया था।
तसलीमा इस्लाम धर्म को लेकर आलोचनात्मक रही हैं। मुस्लिम कट्टरवाद पर वह लगातार सवाल खड़े करती रहती हैं। सोशल मीडिया पर उन्होंने एक बार लिखा, ‘इस्लाम धर्म में सुधार की जरूरत है, नहीं तो आधुनिक सभ्यता में इस धर्म के लिए कोई जगह नहीं है।‘ ट्विटर (अब एक्स) पर एक बार वह बायकॉट इस्लाम भी लिख चुकी हैं। एक इंटरव्यू में तसलीमा ने कहा था कि महिलाएं और प्रगतिशील लोग मेरी लेखनी को पसंद कर रहे थे। मैंने अपने लेखन में इस्लाम के नियमों की आलोचना की थी। कुरान और हदीस को पढ़ने के बाद मुझे कई बातें महिलाओं के संबंध में बुरी लगीं। मैंने इस्लाम की आलोचना की, इसलिए नब्बे के दशक की शुरुआत में मेरा विरोध शुरू हो गया। तस्लीमा कहती हैं कि पहले उनके खिलाफ 50 हजार, फिर एक लाख और उसके बाद कई लाख का फतवा जारी हो गया। 1993 में एक बांग्लादेशी मौलाना ने भी फतवा जारी किया और मेरे सिर की कीमत 50 हजार रखी थी।
आज का बांग्लादेश बहुत ही खराब: तसलीमा
तसलीमा ने आज तक को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, ‘आज के बांग्लादेश की स्थिति 1994 के बांग्लादेश से भी बहुत ही खराब है। शेख हसीन ने कट्टरपंथियों को प्रोत्साहित किया। वह जीवन भर सत्ता में रहना चाहती थीं। बीएनपी को खत्म कर दिया था। उनके अंदर घमंड आ गया था। कहती थीं कि यह मेरे पिता का देश है। बाकी जिन्होंने आजादी की जंग लड़ी, उन्हें भी सम्मान देना चाहिए था। जनता से कटकर उन्होंने धर्म और कट्टरपंथियों को बढ़ावा दिया। यहां तक कि मदरसा की डिग्री को सामान्य कॉलेज के बराबर कर दिया। उन्हें लगता था कि कट्टरपंथी उन्हें बचाएंगे। उन्होंने अवामी उलमा लीग बना ली थी। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बदले गांव-गांव में इस्लामी तकरीर हो रही थी। उन्होंने युवा समाज को बुर्का आदि के लिए ब्रेनवॉश किया। इस्लामी जिहादी बना दिया। आज हसीना का जो पतन हुआ, उसके पीछे हसीना का ही हाथ है।’
‘बांग्लादेश में छात्रों का नहीं इस्लामिक आंदोलन था’
नसरीन ने इंटरव्यू में बांग्लादेश में कट्टरपंथ का बोलबाला होने की बात करते हुए कहा था, ‘हसीना ने जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाया था। यूनुस की सरकार ने वह बैन हटा दिया। मतलब साफ है कि वहां छात्रों का नहीं इस्लामिक आंदोलन था। पूरा देश इस्लामी स्टेट की ओर बढ़ रहा है। अल-कायदा पंथी ग्रुप भी इसके पीछे हैं। सूफियों के मजार गिराए जा रहे हैं। वहाबी विचार फैलाना उनका उद्देश्य है।’ आपको (मोहम्मद यूनुस) शांति के लिए नोबल मिला और आप अशांति पर चुप्पी साधे हैं। हम सोचते थे कि यूनुस प्रगतिशील हैं लेकिन जो तोड़फोड़ और हिंदुओं पर अत्याचार हो रहा है, उसके खिलाफ आप क्यों नहीं बोल रहे हैं? मुझे लगता है कि यूनुस भी जमात के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। रवींद्रनाथ टैगोर मुस्लिम नहीं थे, इसलिए उनका लिखा हुआ राष्ट्रगान वो लोग चेंज करना चाहते हैं। मुझे लगता है कि छात्रों के पीछे इस्लामी हाथ था।’