भारत की आज़ादी के कुछ ही महीनों बाद 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की दिल्ली के बिड़ला भवन (अब गांधी स्मृति) में नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। गांधी 1901 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन के दौरान पार्टी के मंच पर पहली बार नज़र आए थे। उन दिनों गांधी दक्षिण अफ्रीका में वकालत कर रहे थे और उन्होंने कांग्रेस से देश में नस्लीय भेदभाव और शोषण के खिलाफ संघर्ष का समर्थन करने का आग्रह किया था। इसके बाद 9 जनवरी 1915 में गांधी वापस भारत लौट आए और गोपाल कृष्ण गोखले के आग्रह पर इसी साल कांग्रेस में शामिल हो गए। 1924 में कांग्रेस के बेलगांव अधिवेशन में वे पार्टी के अध्यक्ष चुने गए थे।
आज़ादी के आंदोलन के लंबा समय गांधी ने कांग्रेस में रहते हुए बिताया था लेकिन कांग्रेस के साथ उनके रिश्ते हमेशा मधुर ही नहीं रहे थे। कई बार तो उनके और अन्य कांग्रेस के बीच मतभेद बहुत बढ़ गए थे। 1934 आते-आते तक गांधी के कांग्रेस के साथ मतभेद इस हद तक बढ़ गए थे कि उन्होंने 26 अक्टूबर 1934 के कांग्रेस अधिवेशन से तीन दिन बाद ही 29 अक्टूबर 1934 को कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। 1947 में देश को आज़ादी मिली और कांग्रेस सत्ता में आ गई। माना जाता है कि 1885 में एक अंग्रेज़ अधिकारी एलन ऑक्टेवियन ह्यूम द्वारा बनाई गई कांग्रेस को महात्मा गांधी देश की आज़ादी के बाद खत्म करना चाहते थे।
गांधी ने अपनी हत्या से एक दिन पहले 29 जनवरी को कांग्रेस के लिए एक संविधान तैयार किया था जिसे बाद में ‘उनकी अंतिम इच्छा और वसीयतनामा’ शीर्षक से हरिजन में प्रकाशित किया गया था। गांधी का इरादा था कि कांग्रेस जो अब तक मुख्य रूप से राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए काम कर रही थी वो अब खुद को लोगों की सेवा के लिए एक लोक सेवक संघ में बदल जाए। इसमें गांधी ने लिखा था कि भारत ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा तैयार किए गए तरीकों के माध्यम से राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है। उन्होंने लिखा, “अपने वर्तमान आकार और रूप में कांग्रेस का उपयोग समाप्त हो गया है।” गांधी स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस के मौजूदा स्वरूप को खत्म करना चाहते थे।
गांधी ने लिखा था, “भारत को अभी भी अपने शहरों और कस्बों से अलग अपने सात लाख गांवों के संदर्भ में सामाजिक, नैतिक और आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करनी है। भारत की लोकतांत्रिक प्रगति की दिशा में ‘सैन्य शक्ति पर नागरिक शक्ति’ के प्रभुत्व के लिए संघर्ष होना तय है। इसे राजनीतिक दलों और सांप्रदायिक निकायों के साथ अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा से दूर रखा जाना चाहिए। इसी तरह के अन्य कारणों से AICC मौजूदा कांग्रेस संगठन को भंग करने और निम्नलिखित नियमों के तहत एक लोक सेवक संघ बनाने का संकल्प लेती है।” इसके लेकर गांधी ने कई नियम बनाए थे।
गांधी ने इस नए संघ में कई स्वायत्त निकाय बनाने का सुझाव दिया था-
- ए.आई.एस.ए. (अखिल भारतीय स्पिनर्स एसोसिएशन)
- ए.आई.वी.आई.ए. (अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ)
- हिंदुस्तानी तालीमी संघ (बुनियादी शिक्षा सोसाइटी)
- हरिजन सेवक संघ (अछूतों की सेवा के लिए समाज)
- गोसेवा संघ (गोरक्षा एवं सुधार समिति)
भारत को आज़ादी मिलना तय होने के बाद पार्टी की ऐतिहासिक भूमिका खत्म होने के साथ ही इसके नए स्वरूप को लेकर बहस शुरू हो गई थी। 1946 में पार्टी नेतृत्व ने कांग्रेस कमेटियों को इस संबंध में एक सर्कुलर भेजकर उनकी राय मांगी थी हालांकि, उस दौरान अधिकतर नेता कांग्रेस को भंग करने के खिलाफ थे। लेकिन आज़ादी मिलते-मिलते गांधी ने ज़रूर कांग्रेस को भंग करने का मन बना लिया था और नया संविधान तक तैयार कर लिया था।
गांधी का नए संगठन के पार्टी संविधान का मसौदा लिखने के कुछ समय बाद ही निधन हो गया और इस पर कोई विस्तृत चर्चा या बहस उस दौरान नहीं हो सकी था। हालांकि, इसे लेकर अब तक भी राजनीतिक चर्चाएं और बयानबाज़ी चलती रहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बीजेपी के कई दिग्गज नेता तक बार-बार गांधी की यह बात कांग्रेस को याद दिलाते रहते हैं।
पीएम मोदी ने ऐतिहासिक दांडी मार्च की शुरुआत के दिन 12 मार्च को 2019 में एक लेख लिखा था। पीएम मोदी ने इसमें लिखा था, “कांग्रेस ने हमेशा वंशवादी संस्कृति को बढ़ावा दिया। लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उनकी कभी कोई आस्था नहीं रही है। गांधी जी कांग्रेस कल्चर को अच्छी तरह से समझ चुके थे। इसीलिए वे चाहते थे कि कांग्रेस को भंग कर दिया जाए, विशेषकर 1947 के बाद।”