मुगल आक्रांता औरंगज़ेब इन दिनों देश में राजनीतिक चर्चा के केंद्र में है। विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने औरंगज़ेब की कब्र हटाने की मांग को लेकर नागपुर में एक रैली निकाली, जिसके बाद वहां तनाव बढ़ गया और दंगे भड़क उठे। एक वर्ग विशेष के लोग मजहब के नाम पर उन्माद फैलाने वाले विदेशी आक्रांता में अपना मसीहा ढूंढ रहे हैं और भारत के कुछ राजनीति दल भी उनकी बातों का समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस के कई नेताओं ने भी औरंगज़ेब की ‘तारीफ’ में कसीदे पढ़े हैं। औरंगज़ेब ने हिंदुओं पर अत्याचार से लेकर मंदिरों तोड़ने तक जो किया वो तथ्य किसी से छिपे नहीं हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री और कांग्रेस के अध्यक्ष रहे जवाहरलाल नेहरू ने औरंगज़ेब को लेकर क्या कहा था, यह ना केवल कांग्रेस बल्कि औरंगज़ेब के समर्थक अन्य राजनीतिक दलों को जानना बेहद ज़रूरी है।
औरंगज़ेब पर क्या बोले नेहरू?
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘भारत की खोज’ (Discovery of India) में औरंगज़ेब के काल का ज़िक्र किया है। नेहरू ने इस किताब को मूल रूप से अंग्रेज़ी में स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में 1944 में अहमदनगर के किले में अपने 5 महीने के कारावास के दिनों में लिखा था जो 1946 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में नेहरू ने सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर भारत की आज़ादी से पहले तक की भारत की संस्कृति, धर्म और उसके जटिल अतीत का वर्णन किया है।
नेहरू ने इस किताब में मुगल काल को लेकर विस्तार से लिखा है और उनके कई कृत्यों की तारीफ भी की है। हालांकि, इस पुस्तक में उन्होंने औरंगज़ेब की जमकर आलोचना करते हुए उसे धर्मांध और मंदिर तोड़ने वाला बताया है। नेहरू ने लिखा, “औरंगज़ेब अपने वर्तमान समय को तो ठीक तरह समझ ही नहीं पाया, वह अपने से तत्काल-पूर्व के समय को भी नहीं समझ सका। वह समय के विपरीत चलने वाला था और अपनी सारी योग्यता और उत्साह के बावजूद उसने अपने पूर्वजों के द्वारा किए गए कामों पर पानी फेरने का प्रयास किया था।”
‘भारत की खोज’ में नेहरू आगे लिखते हैं, “वह (औरंगज़ेब) धर्मांध और कठोर नैतिकतावादी था। उसे कला या साहित्य से कोई प्रेम नहीं था। हिंदुओं पर पुराना, घृणित जजिया कर लगाकर और उनके बहुत से मंदिरों को तुड़वाकर उसने अपनी प्रजा के बहुत बड़े हिस्से को नाराज़ कर दिया था।” नेहरू लिखते हैं, “औरंगज़ेब ने उन अभिमानी राजपूतों को भी नाराज़ कर दिया जो मुगल साम्राज्य के अवलंब और स्तंभ थे। उत्तर में सिख उठ खड़े हुए। वे हिंदू और मुस्लिम विचारों का किसी हद तक समन्वय करने वाले शांतिप्रिय समुदाय के प्रतिनिधि थे जो दमन और अत्याचार के विरुद्ध एक सैनिक बिरादरी के रूप में संगठित हो गए। भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर उसने प्राचीन राष्ट्रकूटों के वंशज लड़ाकू मराठों को क्रुद्ध कर दिया, ठीक ऐसे समय जब उनके बीच एक अद्भुत सेनानायक उठ खड़ा हुआ था।”