जबसे नरेंद्र मोदी जी ने काँग्रेस को लोक सभा में महज 44 सीटों में सिमटा दिया है, और सम्पूर्ण भारत में लगभग एक भी मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं बक्शी है, तबसे अपनी काँग्रेस बड़ी क्रिएटिव हो गयी है। केंद्र में मोदी सरकार ने तीन साल पूरे कर लिए हैं, और किसी बड़े घोटाले की आंच तक न लगी। मंत्री उत्तरदायित्व संभालने में कुशल भी है और उत्तरदायी भी हैं ।नौकरशाही पहले से ज़्यादा असरदार हो गयी है। सशस्त्र सेनाओं का मनोबल सातवें आसमान पर हैं। आमतौर पर लड़ाई को तत्पर हमारे पड़ोसी देश अपने घावों को सहलाने में व्यस्त है। इसका सार सिर्फ इतना है, की विपक्ष के लिए हालिया परिस्थिति काफी भयानक है, क्योंकि अमूमन कोई भी विपक्ष सरकार की असफलताओं पर ही फलता फूलता है।
पर सरकार ही लगभग उत्तम निकले तो? ऐसे में विपक्ष के पास सिर्फ एक चारा है, अपनी कल्पना शक्ति से राई के पहाड़ बनाना, गैर मुद्दों से मुद्दे बनाना, छिटपुट लड़ाइयों से दंगे करवाना और समाचार से अपनी विचारधारा फैलाना। संक्षेप में कहे, तो एजेंडा ऊंचा रहे हमारा।
विपक्ष ने अपनी आडंबर पूर्ण किरांति [क्रांति का अपमान होगा इन रचनात्मक विभूतियों से जोड़कर] का आरंभ दादरी के ढोंग से शुरू किया, फिर विद्यार्थी आंदोलन से थोड़े और रचनात्मक हुये। जेएनयू से लेकर हैदराबाद विश्वविद्यालय तक, कन्हैय्या से लेकर गुरमहर तक, उमर खालिद से रोहित वेमुला तक, सरकार को बदनाम करने में ही सारी ताकत ज़ाया कर दी! पर, झूठ चाहे जैसा हो, देर सवेर सामने आ ही जाता है, और हुआ भी वही।
काँग्रेस और बाकी विपक्ष यहाँ तक भी नहीं रुके, उन्होने तो दंगे और जातिगत हिंसा करने की भी पुरजोर कोशिश की, अब ज़रा आप सहारनपुर में भीम सेना बनाम उच्च जाती हिंसा को ही देख लीजिये, या अभी चल रहे महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में व्याप्त किसान आंदोलन के नाम पर हो रहे दंगे फसाद, पर अंत क्या हुआ? वही, जो राम रची राखा, सोश्ल मीडिया ने इनके कुकृत्यों का नंगा सच सबके सामने खोल दिया, और इन्हे सिर झुकाकर समर्पण करना पड़ा।
अब भई जब किसान आंदोलन ही ठप पड़ गया, तो इनकी नई युक्ति देखिये, दूसरे मुद्दे में राई का पहाड़ निकालने लगे। और इस बार मुद्दा है बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का कथित अपमान।
अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष की रायपुर में हुयी सभा में जुबानी:-
“महात्मा गांधी, बहुत चतुर बनिया था वो, उसको मालूम था आगे क्या होने वाला है, उसने आज़ादी के बाद तुरंत कहा था, कॉंग्रेस को बिखेर देना चाहिए।”
साभार – फ़ाइनेंष्यल एक्सप्रेस
काँग्रेस कहती है की गांधी को चतुर बनिया कहने से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने गांधीजी का अपमान किया। पाठकों से ईमानदारी से कहूँ, तो हमारा भोला मन ये नहीं समझ पा रहा है की चतुर बनिया कहने से किसी की बेइज्जती कैसे हो गयी?
चतुर माने कुशल, बुद्धिमान, विद्वान। अगर किसी मनुष्य को कूप मंडूक प्रवृत्ति से ऊपर सोचने की खूबी ईश्वर ने दी है, तो वो चतुर है। चतुर लोगों के अंदर अपने अस्तित्व को बल देने का सौभाग्य मिलता है। चतुर लोग दबाव में बिखरते नहीं, निखरते है, सबसे अप्रत्याशित समस्याओं का अद्वितीय समाधान भी निकालते हैं। चतुर लोग समस्या का समाधान करने वाले, कुशल सलाहकार और उच्च कोटी के खेल बदलने वाले वीर योद्धा भी होते हैं।
बनिया वाणिज्य शब्द से निकला है। आम शब्दों में बनिया का अर्थ सनातनी लोगों में सामान्य व्यापारियों के लिए उपाधि समान है। सबसे समृद्ध और उद्यमी संप्रदायों में बनिया समुदाय को गिना जाता है। एक बनिया को उसके व्यापार संबंधित चतुर सोच, बातचीत में कुशलता, गणित के लिए आसक्ति और उसके अलौकिक दूरदर्शिता के लिए जाना जाता है।
अब डालते हैं दृष्टि भारत के कुछ सफल उद्यमियों पर:-
फ्लिपकार्ट के सचिन और बिन्नी बंसल से लेकर भारती समूह के संचालक सुनील भारती मित्तल तक, वेदांता रिसौर्सेस के अनिल अगरवाल से लेकर ओला कैब्स के भविष अगरवाल तक, स्नैपडील के रोहित बंसल से लेके भारत के सबसे उद्यमी राजनैतिक अरविंद केजरीवाल तक, सभी में एक बात समान है। सब बनिया समुदाय से आते हैं। उनके दूरगामी सोच ने उनके स्टार्ट अप्स को भारत के उद्यमी क्षेत्र में मिसालों के तौर पर साबित किया है।
अब गांधी पे आते हैं। एक आम गूगल खोज से ही पता चल जाएगा की राष्ट्रपिता और भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के प्रणेता मोहनदास करमचंद गांधी जाती से मोढ़ बनिया थे। तो जब अमित शाह ने गांधीजी को बनिया कहा, तो विशेषण के तौर पर नहीं, बल्कि महज तथ्य के तौर पर इसका इस्तेमाल किया। अमित शाह ने गांधीजी को एक कुशल उद्यमी की उपाधि से सुशोभित किया। कुशल बातचीत के उपहार से अभिभूत एक दूरदृष्टि का आदमी ही तो कहा। और जब उसमें चतुर की उपाधि डाली, तो सिर्फ उसको दुगना ही तो बढ़ाया।
क्या महात्मा गांधी एक चतुर बनिया नहीं थे ?
- वो एक कुशल उद्यमी थे, सारे उनके विरोध और आंदोलन इस बात के गवाह है।
- गांधी की सोच रचनात्मक थी, जब सारी दुनिया सशस्त्र क्रांति की तरफ मुड़ रही थी, तो उन्होने अहिंसा को अपना हथियार बनाया।
- गांधीजी की दूरदृष्टि का कोई सानी नहीं, कोई भी व्रत एक नियत से लिया जाता था, जो सिर्फ वही देख पाते थे और अन्य नेता नहीं
- जीने की इच्छा गांधीजी से बेहतर कोई नहीं जानता था, एक ट्रेन के डिब्बे से फेंके जाने से लेकर करोड़ों के आदर्श बनना, इस बात की जीती जागती मिसाल हैं।
ऐसे में चतुर बनिया कहना कोई गलत बात नहीं है। ये तो प्रशंसनीय है, ये किसी के अद्वितीय क्षमताओं और उसके दूरगामी विचारों की प्रशंसा समान है। अगर किसी को इस बात से चिढ़ मचती है, तो या तो वो पूरा पागल है, या उसे इस समुदाय से घनघोर घृणा है।
और इस प्रकरण से सिर्फ एक बात निकल कर सामने आती है, काँग्रेस को दरअसल बनियों से काफी चिढ़ मचती है। किसी बिरादरी का नाम उन्हे क्यूँ इतना तंग करेगा, अगर उन्हे उस समुदाय से घृणा न हो तो? हमारे देश के सबसे उद्यमी संप्रदायों में से एक का काँग्रेस ने बेशर्मी से अपमान किया है, और उन्हे बेशर्त माफी मांगनी चाहिए इस समुदाय से, और साथ ही साथ महात्मा गांधी से भी क्षमा मांगनी चाहिए, की उनका अपनी राजनीति रोटियाँ सेंकने के लिए इतना ओछा इस्तेमाल किया।