जैसे ही आर्मी हेडक्वार्टर को कोर्ट का आर्डर की कॉपी मिलेगी,कर्नल पुरोहित वापस से अपनी ड्यूटी जॉइन कर लेंगे, 9 वर्ष के कारावास के बाद उनको सुप्रीम कोर्ट से बेल मिल गई है । उनको सन 2008 में हुए मालेगांव बम धमाकों में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के साथ सह अभियुक्त बनाया गया था,जिसमे 7 लोगों की मौत हुई थी । इनके गिरफ्तारी के एक महीने के अंदर महाराष्ट्र ATS के चीफ हेमन्त करकरे ( जो कि खुद मालेगांव धमाकों की जांच कर रहे थे ) को 26/11 के मुम्बई हमलों में पाकिस्तानी आतंकियों ने मार गिराया । कई दक्षिण पंथी संगठनों पर इसका आरोप लगा जिससे राजनैतिक भूचाल आ गया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोधी दस्ते तथा NIA द्वारा दायर आरोप पत्र में “भौतिक विरोधाभास” थे, जिन्हें ट्रायल के दौरान जांचा परखा जाएगा।
न्यायमूर्ति आर के अग्रवाल और अभय मोहन सपरे की पीठ ने एटीएस मुंबई और एनआईए द्वारा दायर चार्ज पत्रों में बदलावों के बारे में नोटिस करते हुए, ले. कर्नल पुरोहित की जमानत याचिका पर विचार करते हुए कहा कि “प्रत्येक विशेष मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के कारण, अनुदान या अस्वीकार को विनियमित किया जाता है”, लेकिन यह कहा गया है कि अभियुक्त के “जमानत का अधिकार सिर्फ इसलिए नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ये किसी समुदाय विशेष की भावनाओं के खिलाफ है”
लेकिन सबसे चौंकाने वाला समाचार लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित का न्यूज़ एक्स के साथ साक्षात्कार था। सम्मान और गौरव से भरे एक व्यक्ति पर इस स्तर का अत्याचार किया गया था ताकि वह स्वीकार कर सके कि वह “2008 मालेगांव बमबारी मामले” में शामिल था।
लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित ने चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन किया है जिसमे पाकिस्तान, दाऊद इब्राहिम, आतंकवादी नेटवर्क और नकली मुद्रा सिंडिकेट सब सम्मिलित हैं:
- दाऊद इब्राहम 2005 में मुंबई में था
- वो यहाँ ISI तथा नक्सलियों के बीच समन्वय बैठा रहा था
- आतंकियों को लाल बत्ती लगी गाड़ियों में लाया ले जाया जा रहा था
- नकली नोट सिंडिकेट
चलिए थोडा पीछे चलते है
- 22 दिसंबर, 2000 लाल किले पर आतंकवादी हमले – 3 मृत 14 घायल
- 1 अक्टूबर 2001 – जम्मू और कश्मीर विधानसभा बमबारी – 38 मृत
- 13 दिसंबर, 2001 – भारतीय संसद पर हमला – 7 मृत 18 घायल
- 2002: जौनपुर ट्रेन दुर्घटना, रघुनाथ मंदिर (दो बार – 27 मार्च और 22 नवंबर), रफीगंज ट्रेन हादसा , मुंबई बस बमबारी, कुरनूल ट्रेन दुर्घटना और अक्षरधाम
- 2003: तक आते आते ये और भी घातक हो जाता है क्योंकि निशाने पर होती है मुंबई
2004-2008: भारत में दिल्ली बम विस्फोट सहित कई आतंकवादी हमलों में 70 मृत और 250 से अधिक घायल हो गए, जयपुर में 63 मृत और 200 घायल, बैंगलोर, अहमदाबाद, अगरतला, इम्फाल और फिर उन्होंने धार्मिक स्थानों जैसे मार्च 7, 2006 में वाराणसी और मक्का मस्जिद 18, 2007 मई जिससे आपसी भाईचारे में विभाजन हो
फिल्म “A Wednesday” 2008 को याद रखें। हां ! देश में कमोबेश यही मनःस्थिति थी, और हम ट्रेन, बस में और यहां तक कि मंदिरों और मस्जिद में भी जाने से डर गए थे। इस घटनाक्रम ने सरकार पर कार्रवाई करने के लिए भारी दबाव बनाया और हम सभी जानते थे कि यह कहां से आ रहा था ? पाकिस्तान
जैसा की जनरल जिया उल हक ने कहा था की हम भारत को हज़ार घाव देंगे, और हम वास्तव में खून से लथपथ थे। इन सब के बीच अमेरिका पाकिस्तान की मदद से अफगानिस्तान में तालिबान से लड़ रहा था और पाकिस्तान उसका एक महत्वपूर्ण सहयोगी था इस प्रकार भारत पाकिस्तान पर आतंकवाद का आरोप लगाने में असमर्थ था। इसके अलावा उस समय का नेतृत्व एकतरफा रूप से अपेक्षित संकल्पकता और निर्णय लेने में कमजोर था।
मैं उचित विचार के साथ “कमजोर” शब्द का उपयोग कर रहा हूं,क्यूंकि एक दुष्ट देश को शिक्षित करने के लिए और एकतरफा निर्णय करने के लिए इंदिरा गांधी (1971), अटल बिहारी वाजपेयी (पोखरन 2 और कारगिल) और नरेंद्र मोदी ( ऑपरेशन जिंजर ) जैसा कलेजा चाहिए ।
ताबूत में अंतिम कील “मुंबई आतंकवादी हमला” था। ऐसे समझिये कि 10 आतंकवादी आपके वित्तीय राजधानी में ए के 47, आरडीएक्स, आईडीई और ग्रेनेड के साथ घुस आते हैं और 166 निर्दोष लोगों को मारते हैं और 600 से ज्यादा घायल होते हैं। यह क्या था? क्या यह युद्ध नहीं था?
- आतंकियों का प्रशिक्षण पाकिस्तान में हुआ था
- आतंकवादी पाकिस्तानी थे ।
- योजना पाकिस्तान में बनी थी
- लखवी और लश्कर ऐ तैयबा पाकिस्तानी हैं।
अगर ऐसा संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ होता तो इस्लामाबाद के ऊपर बी 1 लार्सर्स और एफ 22 रैप्टर्स उड़ रहे होते और कराची में यूएसएस निमित्ज दिखाई दे रहा होता पर यहाँ तो तो यूपीए सरकार के हाथ में सरकार थी और उनके पास इसके निपटने के दो ही तरीके थे।
- या तो वे इसे स्वीकार करते कि पाकिस्तान इस गुप्त युद्ध को जीत रहा है
- या फिर वे पाकिस्तान को सबक सीखाते
लेकिन अनोखेलाल पी चिदंबरम के पास अलग योजनाएं थीं, जिसे तीन चरणों में अंजाम दिया गया था
- “भगवा आतंकवाद” शब्द का इस्तेमाल करते हुए, धर्म को आतंकवाद से जोड़ा अर्थात अब आतंकवाद का धर्म था।
- कर्नल पुरोहित को टारगेट कर जनता के मन में सेना के प्रति संदेह पैदा किया, ताकि जनता सेना के दिग्गजों (जो अक्सर देश की चिंता में डूबे रहते हैं) को शंका की दृष्टि से देखे ।
- आतंकवादी हमलों से “भगवा आतंक” को फोकस करना
चलिए कुछ बिन्दुंओं को जोड़ कर देखते हैं
सरकार अपने कमज़ोर नेतृत्व के कारण भारी दबाव में थी, वामपंथी दल UPA I में सत्ता में भागीदार थे, हज़ार घाव वाले जंग में नक्सली, पाकिस्तान के एक प्रमुख हथियार के रूप में काम कर रहे थे और वामपंथी नक्सलियों के शुभचिंतक हैं और नकसलियों को अपने उद्देश्य के लिए भारी धन-राशि की आवश्यकता थी । लेकिन न तो नक्सली हथियार बनाते हैं और न ही वे उद्योग चलाते हैं, इसलिए धन बाहर से आता हैं और इस मामले में पाकिस्तान से पैसा आ रहा था लेकिन पाकिस्तान तो खुद कर्जा में डूबा हुआ देश है और वे उनको सीधा पैसा मुहैया नहीं करा सकते थे , इसीलिए उन्हें दाऊद के नेटवर्क की आवश्यकता पड़ी , चूँकि नकली नोट के धंधे में मुनाफा ज्यादा है इसीलिए नेताओं में मुंह में पानी आ गया। नोटों का मुद्रण पाकिस्तान में किया गया था और “De La Reu” कनेक्शन के कारण गुणवत्ता लगभग समान थी। नकली मुद्रा को भारत में लाने का रास्ता कश्मीर, बंगाल और नेपाल से है। इस प्रकार अलगाववादी नेता और आतंकवादी दोनों इस उद्योग का हिस्सा हैं और इसे “लाल बत्ती कारों में आतंकवादियों के घूमने के खेल ” से समझा जा सकता है।
नक्सलवादियों का आमतौर पर राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया जाता है और अमर बेल की तरह जब जरूरत होती है उन्हें काट दिया जाता है लेकिन पूरी तरह से उखाड़ फेंका नहीं जाता । काटने का एक उदाहरण “ऑपरेशन ग्रीन हंट” था इस ऑपरेशन में ड्रोन और एमआई 17 वी 5 शामिल थे और 2010 में 285 नक्सलियों की मौत हो गई थी, क्योंकि भारत-अमेरिकी नागरिक परमाणु समझौते के कारण वामपंथी दल गठबंधन से बाहर थे ।
“मुंबई आतंकवादी हमला 2008” तक हालात ठीक रहे थे लेकिन उसके बाद पाकिस्तानियों को जवाब देने का दबाव सरकार पर था, और तत्कालीन सरकार ने “भगवा आतंक” के साथ आए गुस्से को पाकिस्तान से ध्यान हटाने के लिए इस्तेमाल किया। और सेना के एक कर्मठ अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित इस जाल में फांस लिए गए थे।
With this newly invented term Saffron Terror not only helped them in diverting the anger from Pakistan to likes of Pragya Thakur, RSS, and VHP but also victory in 2009 general election.
इस नए शब्द यानी भगवा आतंक ने ना सिर्फ पाकिस्तान से ध्यान मोड़ने का काम किया बल्कि जनता के गुस्से को प्रज्ञा ठाकुर, आरएसएस और वीएचपी पर भी केन्द्रित किया, 2009 में कांग्रेस की अप्रत्याशित विजय के कारणों में से एक यह भी था.
कृपया नोट करे: 2000 से लेकर 2008 तक जो भी भारत में घटित हुआ और ले. कर्नल पुरोहित के हालिया बयानों पर आधारित ये मेरी निजी राय है, इसलिए इसे “समाचार स्रोत” नहीं समझा जाये