भारत में गैर-सरकारी संगठनों की भरमार है। वैसे तो इन संगठनों का मकसद लोगों के दुख-दर्द को दूर करना, पर्यावरण की रक्षा करना और बुनियादी सामाजिक सेवाएं प्रदान करना होता है, लेकिन जब इन गई-सरकारी संगठनों की आड़ में कुछ देश-विरोधी विदेशी ताक़तें भारत में अस्थिरता उत्पन्न करने के उद्देश्य से अपना प्रोपेगैंडा फैलाना शुरू कर दें, तो ऐसे संगठनों पर सरकार की कड़ी कार्रवाई समय की जरूरत बन जाता है। वर्ष 2014 से पहले ये एनजीओ भारतीय क़ानूनों को ताक पर रखते हुए अपनी भारत विरोधी कार्रवाईयों को जारी रखते थे , लेकिन वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने आते ही ऐसे प्रोपेगैंडावादी गैर-सरकारी संगठनों पर कार्रवाई करना शुरू किया। वर्ष 2016 में मोदी सरकार ने विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) कानून के तहत लगभग 20 हज़ार गैर-सरकारी संगठनों के विदेशी चंदा प्राप्त करने पर पूरी तरह रोक लगा दी थी। अब 2019 में जब मोदी सरकार पहले से ज़्यादा बड़े जनादेश के साथ सत्ता में आई है तो इन विदेशी संगठनों पर प्रहार भी पहले के मुक़ाबले काफी अधिक तीव्रता से किया जा रहा है।
नई सरकार में गृह मंत्री बने अमित शाह ने अपना पदभार संभालते ही यह स्पष्ट कर दिया है कि वे भारतीय कानूनों की अवहेलना करने वाले इन संगठनों को अब किसी सूरत भी बर्दाश्त नहीं करने वाले हैं। शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर यह जानकारी दी कि बिना मंत्रालय की जानकारी के जिन गैर-सरकारी संगठनों के बड़े अधिकारियों के पदभारों में कोई बदलाव हुआ है तो उन एनजीओ के खिलाफ सरकार बड़ी कार्रवाई कर सकती है। नियमों के मुताबिक, विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) कानून के तहत पंजीकृत एनजीओ को अपने शीर्ष अधिकारियों के पदभार में बदलाव करने से पहले ना सिर्फ गृह मंत्रालय से इसकी इजाजत लेनी होगी, बल्कि रियल टाइम डाटा को अपडेट रखने के लिए ऑनलाइन एप्लिकेशन के जरिये इस बात की जानकारी भी मंत्रालय को देनी होगी। हालांकि, कई गैर-सरकारी संगठनों ने इन नियमों की पालना नहीं की, जिनके खिलाफ़ अब गृह मंत्रालय एक्शन के मूड में है।
बता दें कि इन विदेशी एनजीओ पर समय-समय पर जबरन धर्म परिवर्तन करवाने और सरकार के खिलाफ काम करने के आरोप लगते रहते हैं। इंटेलिजेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि गैर सरकारी संगठन ऐसी गतिविधियों में शामिल हैं, जो राष्ट्रीय हितों के लिये नुकसानदेह हैं, सार्वजनिक हितों को प्रभावित कर सकते हैं या देश की सुरक्षा, वैज्ञानिक, सामरिक या आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। इसी रिपोर्ट में कुछ गैर-अधिकारी संगठनों पर देश में अलगाववाद और माओवाद का बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया गया। उन पर यह आरोप भी लगाया जाता है कि विदेशी शक्तियां उनका उपयोग एक प्रॉक्सी के रूप में भारत के विकास को अस्थिर करने के लिए करती हैं।
हालांकि, जब सरकार इन एजेंडावादी संगठनों पर कोई कार्रवाई करती है तो तभी देश की बुद्धिजीवी गैंग एक्टिव होकर सरकार पर लोकतन्त्र की हत्या करने का आरोप लगाने लगता है। सामाजिक कार्यकर्ता के भेष में ऐसे विदेशी एजेन्टों को पहचान कर सरकार को ऐसे बुद्धिजीवियों के खिलाफ भी एक्शन लेने की सख्त ज़रूरत है। भारत सरकार का यह कदम प्रशंसा के योग्य है और हमें उम्मीद है कि भारत सरकार भविष्य में भी देशहित में ऐसे ही जरूरी कदम उठाती रहेगी।