हाल ही में नोबेल प्राइज़ कमेटी ने घोषणा की कि अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार के लिए एस्थर डफलो, माइकल क्रेमर और भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी को चुना गया। अभिजीत को ये पुरस्कार वैश्विक स्तर पर गरीबी को कम करने को लेकर किए गए कार्यो के लिए दिया गया है। जिस पर पीएम मोदी ने बेहद शानदार तरीके से बधाई दिया है।
BREAKING NEWS:
The 2019 Sveriges Riksbank Prize in Economic Sciences in Memory of Alfred Nobel has been awarded to Abhijit Banerjee, Esther Duflo and Michael Kremer “for their experimental approach to alleviating global poverty.”#NobelPrize pic.twitter.com/SuJfPoRe2N— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 14, 2019
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अभिजीत बनर्जी को बधाई देते हुए ट्वीट किया और कहा, अभिजीत बनर्जी को अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में आर्थिक विज्ञान में 2019 का ‘सिवर्जेस रिक्सबैंक पुरस्कार’ से सम्मानित किए जाने पर बधाई। उन्होंने गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है।’
Congratulations to Abhijit Banerjee on being conferred the 2019 Sveriges Riksbank Prize in Economic Sciences in Memory of Alfred Nobel. He has made notable contributions in the field of poverty alleviation.
— Narendra Modi (@narendramodi) October 14, 2019
प्रधानमंत्री के ट्वीट पर गौर किया जाए तो ऐसा लगता है कि इस ट्वीट के जरिये अभिजीत बनर्जी के लिए तैयार किया गया प्रोपगैंडा न केवल ध्वस्त हुआ बल्कि इस ओर भी इशारा किया कि उन्हें ‘सिवर्जेस रिक्सबैंक पुरस्कार’ मिला है जिसे हम अर्थशास्त्र के नोबेल के नाम से जानते हैं, वे अल्फ्रेड नोबेल स्मारक पुरस्कार है, मूल नोबेल पुरस्कार नहीं। पीएम मोदी ने नोबेल पुरस्कार की अन्य श्रेणियों और नोबेल अर्थशास्त्र पुरस्कार के बीच अंतर को स्पष्ट रूप से सामने रखा है।
बता दें कि नोबेल पुरस्कारों की स्थापना रसायनशात्री अल्फ्रेड नोबेल के वसीयतनामे के अनुसार 1895 में हुई थी। अल्फ्रेड ने अपनी सारी संपत्ति नोबेल फाउंडेशन (Nobel Foundation) के नाम कर दिया था और यही फाउंडेशन नोबेल पुरस्कारों का प्रशासकीय कार्य करता है। नोबेल फाउंडेशन की स्थापना 1900 में हुई थी। 1901 में जब नोबेल पुरस्कार देना शुरू किया गया था, तब मूल पुरस्कार केवल 5 क्षेत्रों में दिया जाता था, जिनमें भौतिकशास्त्र यानि Physics, रसायनशास्त्र यानि Chemistry, चिकित्सा यानि Physiology or Medicine, शांति यानि Peace और साहित्य यानि Literature में ही दिया जाता है। अर्थशास्त्र का नोबेल माने जाना वाला पुरस्कार अल्फ्रेड नोबेल की याद में स्थापित ‘सिवर्जेस रिक्सबैंक पुरस्कार इन इकॉनमी का पुरस्कार है, जिसे सर्वप्रथम 1968 में स्वीडन के केन्द्रीय बैंक यानि सिवर्जेस रिक्सबैंक के 300वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में शुरू किया गया था। इसीलिए अर्थशास्त्र के लिए मिलने वाले सिवर्जेस रिक्सबैंक पुरस्कार नोबेल पुरस्कार कमेटी द्वारा स्वीकृत मिलने के बाद भी मूल नोबेल पुरस्कार नहीं माना जा सकता, ठीक वैसे ही, जैसे किसी फिल्म के लिए गोल्डेन ग्लोब जीतने पर वो ऑस्कर पुरस्कार नहीं माना जाता।
नोबेल पुरस्कार के ट्विटर हैंडल ने भी वही लिखा जिसका उल्लेख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट में किया है।
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The 2019 Sveriges Riksbank Prize in Economic Sciences in Memory of Alfred Nobel has been awarded to Abhijit Banerjee, Esther Duflo and Michael Kremer “for their experimental approach to alleviating global poverty.”#NobelPrize pic.twitter.com/SuJfPoRe2N— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 14, 2019
उदाहरण के लिए इस वर्ष के अर्थशास्त्र के सिवर्जेस रिक्स्बैंक पुरस्कार के विजेताओं के बारे में ट्वीट करते हुए अल्फ्रेड नोबेल पुरस्कार कमेटी ने ट्वीट किया है –
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The 2019 Sveriges Riksbank Prize in Economic Sciences in Memory of Alfred Nobel has been awarded to Abhijit Banerjee, Esther Duflo and Michael Kremer “for their experimental approach to alleviating global poverty.”#NobelPrize pic.twitter.com/SuJfPoRe2N— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 14, 2019
“इस वर्ष [2019] के सिवर्जेस रिक्सबैंक प्राइज़ इन इकोनॉमिक साइन्सेज अभिजीत बनर्जी, एस्थर डफलो, माइकल क्रेमर इत्यादि को गरीबी हटाने के लिए इनके नायाब विचारों हेतु पुरुस्कृत किया जा रहा है”।
इस तरह पीएम नरेंद्र मोदी के ट्वीट को देखकर ऐसा लगता है कि उन्होंने न सिर्फ अर्थशास्त्र के नोबेल की वास्तविकता सबके साथ साझा की है, बल्कि लेफ्ट लिबरल गैंग और बनर्जी की खराब आर्थिक नीतियों पर भी करार प्रहार किया है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि लेफ्ट लिबरल्स और उनकी नीतियों ने मूल रूप से पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया। इसके अलावा पीएम मोदी ने बनर्जी के “गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में योगदान” का उल्लेख करके भारतीय अमेरिकी अर्थशास्त्री पर एक तरह से तंज कसा जिसने लेफ्ट लिबरल गैंग के जश्न पर पानी फेरने का काम किया
वास्तविकता तो यह है कि अभिजीत बनर्जी को नोबेल पुरस्कार मिलने की खबर सामने आने के बाद से ही हमारे देश के स्वयंभू ठेकेदार लगे अभिजीत का गुणगान करने लगे। कुछ ही देर में अभिजीत बनर्जी का नाम ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा, और लेफ्ट लिबरल पत्रकारों एवं नेताओं ने भी अभिजीत की बढ़ चढ़कर प्रशंसा करनी शुरू कर दी। कई लेफ्ट लिबरल्स ने अभिजीत बनर्जी के उस बयान का भी अनुमोदन किया था, जहां उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान व्यवस्था को आड़े हाथों लिया था।
अभिजीत बनर्जी वही व्यक्ति हैं जिन्होंने न केवल पीएम मोदी द्वारा लागू की गयी नोटबंदी एवं जीएसटी का विरोध किया था। 2019 लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के घोषणापत्र में शामिल NYAY कार्यक्रम के पीछे बनर्जी का ही दिमाग था, वही योजना जिसके अंतर्गत देश के कई बेरोजगार लोगों को 72000 रुपये प्रतिवर्ष देने की बात कही गयी थी।
इसके लिए अभिजीत बनर्जी ने ऊंचे टैक्स दर और संभावित महंगाई की भी वकालत की थी, जिसका सैम पित्रोदा और राहुल गांधी ने बढ़चढ़कर प्रचार भी किया। यदि ये स्कीम गलती से भी अमल में लायी जाती, तो देश के राजकोष को पूरे 3.6 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता। शायद इसीलिए पीएम मोदी ने अभिजीत बनर्जी को बधाई देते हुए उनके गरीबी हटाने के लिए किए गए ‘कार्यों’ पर प्रकाश डाला।
सच पूछें तो पीएम नरेंद्र मोदी राजनीति में जितने निपुण है, उतने ही डार्क ह्यूमर में भी। बिना किसी को ठेस पहुंचाए वे जिस तरह से अपने व्यंग्यबाण चलाते हैं, उससे वे अपनी बात भी कह देते हैं, और विपक्ष चाहकर भी पलटवार नहीं कर सकता। इस ट्वीट बाण को देखकर तो हम यही कह सकते हैं, पीएम मोदी, आपका कोई जवाब नहीं!