ऐसा लग रहा है कि मध्य प्रदेश में फिर से 1970 के दशक का खौफ आने वाला है। कमलनाथ की मध्यप्रदेश सरकार ने सभी पुरुष multi-purpose health workers (MPHWs) के लिए नया आदेश जारी किया है। इस आदेश में कहा गया है कि जो भी मेल वर्कर 2019-20 में एक भी पुरुष की नसबंदी नहीं करवा पाया है उसका वेतन वापस लिया जाएगा। इतना ही नहीं, मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो ऐसे वर्कर्स जो भविष्य में दिए गए टारगेट को पूरा नहीं करेंगे, उन्हें नौकरी से निकाल भी दिया जाएगा।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट का हवाला देते हुए इस राज्य के National Health Mission (NHM) ने जिलाधिकारियों, चीफ मेडिकल ऐंड हेल्थ ऑफिसरों से ‘zero work output’ देने वाले कर्मचारियों की पहचान करने को कहा है। अधिकारियों से कहा गया है कि ‘नो वर्क नो पे’ के सिद्धांत पर काम किया जाए। साथ ही आगे के लिए कहा गया है कि विभाग के पुरुष कर्मियों को परिवार नियोजन प्रोग्राम के तहत नसबंदी का टारगेट दिया जाए।
नसबंदी का लक्ष्य पूरा नहीं होने पर MP सरकार का अजब-गजब फरमान, कम से कम एक नसबंदी कराओ वरना.@ndtvindia #MahaShivaratri #Delhi #BJP #CAA #MahaShivRatri2020 #Mahadev pic.twitter.com/U1a3g4Mq2Y
— Anurag Dwary (@Anurag_Dwary) February 21, 2020
आपको बता दें कि वर्तमान में मध्यप्रदेश की आबादी 7 करोड़ से अधिक है। प्रदेश में 25 जिले ऐसे हैं, जहां का टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) तीन से अधिक है, जबकि MP में 2.1 टीएफआर का लक्ष्य है। ऐसे में हर साल 6 से 7 लाख नसबंदी ऑपरेशन के टारेगट होते हैं, लेकिन वर्ष 2019 से 20 फरवरी 2020 तक में सिर्फ 3,397 पुरुषों की नसबंदी हुई है। ऐसे मध्य प्रदेश सरकार ने कर्मचारियों के लिए हर महीने 5 से 10 पुरुषों का नसंबदी ऑपरेशन करवाना अनिवार्य कर दिया है।
यह पहली बार नहीं है जब कमनाथ ने ऐसा काम किया हो। आपातकाल के दौरान संजय गांधी ने जोर-शोर से नसबंदी अभियान चलाया था। इस पर जोर इतना ज्यादा था कि कई जगह पुलिस द्वारा गांवों को घेरने और फिर पुरुषों को जबरन खींचकर उनकी नसबंदी करने की भी खबरें आईं थी। जानकारों के मुताबिक संजय गांधी के इस अभियान में करीब 62 लाख लोगों की नसबंदी हुई थी। बताया जाता है कि इस दौरान गलत ऑपरेशनों से करीब दो हजार लोगों की मौत भी हुई थी।
उस दौरान उत्तर प्रदेश के अधिकारियों ने टेलीग्राफ से अपने मातहतों से एक संदेश भेजा था जिसे पढ़कर आज भी लोग डर जाते हैं। इस संदेश में लिखा था कि-
‘सबको सूचित कर दीजिए कि अगर मासिक लक्ष्य पूरे नहीं हुए तो न सिर्फ वेतन रुक जाएगा बल्कि निलंबन और कड़ा जुर्माना भी होगा। सारी प्रशासनिक मशीनरी को इस काम में लगा दें और प्रगति की रिपोर्ट रोज वायरलेस से मुझे और मुख्यमंत्री के सचिव को भेजें।’
बता दें कि उस दौरान कमलनाथ और संजय गांधी बेहद खास दोस्त हुआ करते थे। दोनों में इतनी घनिष्ठता थी कि इंदिरा गांधी कमलनाथ को अपना तीसरा बेटा मानती थीं। इन दोनों की दोस्ती दून स्कूल में हुई थी। आपातकाल का नारा भी इन दोनों के नाम के ऊपर ही था। वह नारा था “इंदिरा गांधी के दो हाथ, संजय गांधी और ‘कमलनाथ”।
अब इसी तरह से मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने भी पुरुषों की नसबंदी को लेकर कर्मचारियों को टारगेट दिया है और उस टारगेट को पूरा न कर पाने पर अनिवार्य सेवानिवृति और वेतन रोकने को लेकर सर्कुलर जारी किया गया है। इससे तो यही स्पष्ट होता है कि कांग्रेस सरकार कैसे अभी आपातकाल की ही कांग्रेस है। इस पार्टी के सोच में आज भी कोई बदलाव नहीं आया है। आपातकाल के दौरान नसबंदी की वजह से जनता के बीच काफी आक्रोश पैदा हुआ था और इस नाराजगी ने इंदिरा गांधी को 1977 में सत्ता से बेदखल कर दिया था। अब जब फिर से कमलनाथ ने आपातकाल की याद दिला दी है तो यह देखना है कि जनता कमलनाथ को क्या सबक सिखाती है।