15 जून की रात को चीन ने लद्दाख में भारत की पीठ में छुरा घोंपा था। चीन (China) के सैनिकों ने लोहे की कील लगे डंडों के साथ भारतीय सैनिकों पर धावा बोला था, जिसमें भारत के 17 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे। उस हमले के जवाब में भारत ने भी चीन के 43 सैनिकों को निपटाया था, हालांकि तब से भारत शांत नहीं बैठा है और चीन (China) के खिलाफ लगातार आर्थिक प्रहार कर रहा है। Economic Strike बालाकोट स्ट्राइक जैसी किसी सर्जिकल स्ट्राइक से भी भयंकर साबित हो है।
पिछले सप्ताह सरकार ने देश की सामान्य आर्थिक नियमावली- 2017 में भी बदलाव किया था, जिसके बाद अब किसी भी सरकारी टेंडर में भाग लेना चीन की कंपनियों के लिए मुश्किल हो गया है। सरकार की ओर से जारी किए गए आदेश में कहा गया था कि भारत की सीमाओं से सटे देशों की कंपनियों के सभी टेंडर रद्द कर दिये जाए। इस आदेश के अनुसार उन्हीं कपनियों को टेंडर भरने का मौका मिलेगा जिन्होंने खुद को सक्षम अथॉरिटी में पंजीकृत करवा लिया हो। वहीं सरकार ने चीन (China) की कंपनियों पर किए प्रहार को थोड़ा और दर्दनाक बनाते हुए कहा है कि पहले से दिये जा चुके टेंडर में अगर किसी चीनी कंपनी ने qualify कर लिया है, तथा वह सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी है तो उस कंपनी के टेंडर रद्द हो जाएंगे। यह आदेश सभी मंत्रालय और PSUs के लिए हैं।
इससे पहले भारत ने कई ऐसे फैसले लिए जो सीधे तौर पर चीन (China) को आर्थिक नुकसान पहुंचाने के लिए थे। Business Standard की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार चीन से आने वाले बच्चों के खिलौनों से लेकर स्पोर्ट्स के सामान तक, अथवा फ़र्निचर से लेकर प्लास्टिक के अन्य सामानों तक, कुल 371 चीजों के आयात पर अधिक इम्पोर्ट ड्यूटि और कड़े नियम लागू कर चुकी है।
अगर चीन (China) की बात करें तो भारत हर साल China से लगभग 51 बिलयन डॉलर का सामान आयात करता है। ऐसे में अगर भारत आने वाले कुछ सालों में इस आयात का बड़ा हिस्सा रोक पाने में सक्षम हो पाता है तो China को 40 से 50 बिलियन डॉलर का तगड़ा झटका लगना तय है।
चीन को सबक सिखाने के लिए अब केंद्र सरकार ने परोक्ष रूप से बन्दरगाहों पर निगरानी बढ़ा दी है जिसके कारण चीनी सामानों की खरीद-बिक्री में देर हो रही है। भारतीय कस्टम ने बंदरगाहों पर चीन से आयातित 100 फीसदी सामानों की जांच करने का निर्देश दिया है। इससे न सिर्फ चीन में बने सामानों को देश भर में फैलने से रोका जाएगा बल्कि इससे चीनी सामान खरीदने वाले भारतीय व्यापारी भी हतोत्साहित होंगे।
इसके बाद भारत सरकार ने 23 जून को चीन (China) से आने वाले स्टील पर anti-dumping duty लगा दिया था। यही नहीं जल्द ही चीन से आयात होने वाले करीब एक दर्जन सामानों पर सरकार anti-dumping duty लगा सकती है। भारत सरकार ने यह भी संकेत दिया है कि वह आने वाले दिनों में चीन पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगा सकती है। दरअसल, हाल ही में चीनी सरकार ने भारत सरकार से चीन को मार्केट इकॉनमी घोषित करने की विनती की थी। मार्केट इकोनमी से आयात होने वाले सामान पर आयात कर बढ़ाया नहीं जा सकता है। हालांकि, भारत सरकार ने 18 जून को चीन के इस अनुरोध को ठुकरा दिया था। यह बड़ा संकेत है जिसके बाद माना जा रहा है कि भारत चीन के खिलाफ आर्थिक कदम उठा सकता है।
इससे पहले देश की आम जनता और CAIT जैसे कई स्वतंत्र व्यापार संगठन चीनी सामान का बहिष्कार करने की मुहिम छेड़ चुके हैं। व्यापारियों के शीर्ष संगठनों में शामिल कॉन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) द्वारा चीनी सामान के बहिष्कार और भारतीय सामान के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए चीन (China) के 500 से ज्यादा सामानों की सूची भी जारी की है जिनके आयात पर रोक लगाई जाएगी।
CAIT ने करीब 3,000 ऐसी वस्तुओं की लिस्ट बनाई है जिनका बड़ा हिस्सा चीन से आयात किया जाता है, लेकिन जिनका विकल्प भारत में मौजूद है या तैयार किया जा सकता है। कैट ने ‘भारतीय सामान – हमारा अभिमान’ नाम से शुरू किए गए इस राष्ट्रीय अभियान के तहत दिसंबर 2021 तक चीन (China) से आयात में एक लाख करोड़ रुपये की कमी लाने का लक्ष्य रखा है। यही नहीं CAIT यानि Confederation of All India Traders (CAIT) ने निर्णय लिया है कि अब वे किसी भी स्थिति में चीन में बनी राखियों को हाथ नहीं लगाएंगे, जिससे चीन को करीब 4000 करोड़ के नुकसान होने का अंदेशा है।
इससे पहले कैट सहित कई कारोबारी संगठनों ने वाणिज्य मंत्री से मांग की थी कि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर बिकने वाले उत्पादों के सामने मूल देश का नाम लिखा जाए। इसके बाद भारत में कंज्यूमर प्रोटक्शन एक्ट 2019 लागू कर दिया गया। अब ग्राहक सुरक्षा कानून 2019 में इलेक्ट्रॉनिक रिटेलर के लिए कंट्री ऑफ ओरिजिन या सामान बनने की जगह के बारे में लिखना जरूरी होगा। चीन विरोधी माहौल में इस कदम का बेहद गहरा असर पड़ने वाला है। जनता के बीच पहले से ही चीन (China) के खिलाफ रोष है और इस कदम से उन्हें यह पता होगा कि जो भी प्रोडक्ट वो ऑनलाइन मांगा रहे हैं वो चीन में बना है या नहीं।
यही नहीं, भारत सरकार ने भी चीन कंपनियों की कई परियोजनाओं को रोक दिया है। मोदी सरकार ने विभिन्न उद्योगों से जुड़े हुए विदेशों से आने वाले सामान की जानकारी मांगी है। सरकार का उद्देश्य चीन (China) से आयातित सामानों का आयात रोकना है और समानांतर रूप से घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना भी है।
चीन (China) के खिलाफ इस कार्रवाई में ऊर्जा मंत्रालय भी शामिल हुआ और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देने के लिए ऊर्जा के क्षेत्र में चीनी सामानो के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर चुका है। सड़क-परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी साफ़ कर दिया है कि भविष्य में किसी भी सड़क-पुल निर्माण में कसी चीनी कम्पनी की भागीदारी नहीं होगी।
सरकार ने सभी सरकारी टेलिकॉम कंपनियों के साथ-साथ सभी प्राइवेट कंपनियों को निर्देश देकर कहा है कि वे अपनी 4G या 5G सेवाओं को प्रदान करने के लिए किसी भी चीनी कंपनी से कोई उपकरण नहीं खरीदेंगे। इसके साथ ही सरकारी कंपनी BSNL ने मौजूदा टेंडर को रद्द कर नए टेंडर जारी करने की तैयारी कर ली है, जिसमें किसी भी चीनी कंपनी को शामिल होने की इजाज़त नहीं दी जाएगी। माना जा रहा है कि इससे हुवावे और ZTE जैसी चीनी कंपनियों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
वहीं, भारतीय रेलवे भी चीनी ठेकेदारों से काम छीनना शुरू कर चुकी है। वर्ष 2016 में भारतीय रेलवे ने चीन की कंपनी China Railway Signal and Communication को 400 किमी लंबे Eastern Dedicated Freight Corridor पर सिग्नल सिस्टम को इन्स्टाल करने का ठेका दिया था, अब रेलवे ने इस ठेके को रद्द कर दिया है। चीन (China) को फिर भी समझ नहीं आया कि उसने कितनी बड़ी गलती की है और उसने बॉर्डर पर तनाव को जारी रखा।
इसके बाद 29 जून को सरकार ने सबसे भयंकर एक्शन लेते हुए 59 चीनी ऐप्प को भारत में बैन कर दिया। इन एप्स में टिक-टॉक जैसी कंपनियाँ भी शामिल थीं, जिसके भारत में 22 करोड़ यूजर्स थे। चीनी मीडिया के अनुसार भारत के इस कदम से टिकटॉक को 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान पहुंचा है। इसके बाद अब सरकार ने एक और कार्रवाई करते हुए 47 ऐप्स पर फिर प्रतिंबध लगाया गया है। पहले से हटाए गए ऐप्स के क्लोन पर भी कार्रवाई की गई है। इसके अलावा 275 अन्य ऐप्प भी सरकार की रडार पर हैं।
हालांकि, 15 जून से पहले ही भारत सरकार ने चीन को आर्थिक झटके देना शुरू कर दिया था। जब चीन के सरकारी बैंक “Peoples Banks of China” यानि PBC ने भारत के HDFC बैंक में 1.01% तक शेयर खरीद लिए, तब सरकार अलर्ट हुई और तेजी से अपने FDI नियमों में बदलाव किया था जिसके बाद चीनी कंपनियों द्वारा भारत की कंपनियों पर अधिग्रहण को रोका गया था। इतना ही नहीं, इसके बाद भारत के Securities exchange board of India यानि SEBI ने भी ना सिर्फ भारत के शेयर बाज़ार में सभी चीनी निवेश का ब्यौरा मांगा, बल्कि भविष्य में चीन द्वारा किए जाने वाले सभी लेनदेन की गंभीरता से जांच करने की बात भी कही।
चीन की किसी भी कंपनी की अगर तह तक पड़ताल की जाए तो यह बात सामने आएगी की उसका कहीं ना कहीं CCP या PLA के साथ लिंक अवश्य होगा। सरकार अब इस दिशा में भी जांच कर रही है ताकि चीन का कनेक्शन सामने आ सके। सरकार ने अलीबाबा टेंसेंट सहित सात कंपनियों का नाम भी लिया है जिसके PLA के साथ संबंध है। किसी भी सरकार का इस तरह से चीनी कंपनियों के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोलना दिखाता है कि भारत की सरकार चीन के खिलाफ एक्शन लेने के प्रति कितनी प्रतिबद्ध है। अब चीन पूरी तरह से भारत के रडार पर आ चुका है और उसके बच कर जाने की कोई संभावना नहीं है। चीन ने सोचा था कि वह भारत को बार्डर पर कायरों की तरह हमला कर डरा देगा, लेकिन उसकी यही गलती अब उस पर भारी पड़ने वाली है।