मध्य प्रदेश ने वार्षिक गेहूं खरीद के मामले में पंजाब को पीछे छोड़ दिया है। MSP पर सरकारी खरीद के मामले में मध्य प्रदेश भारत में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला प्रदेश बन गया है। हालांकि, प्रति हेक्टेयर उत्पादन के मामले में पंजाब अब भी प्रथम स्थान पर बना हुआ है लेकिन मध्य प्रदेश का प्रदर्शन शानदार है क्योंकि 15 साल पूर्व तक राज्य बीमारू राज्य की श्रेणी में आता था। मध्य प्रदेश का एग्रीकल्चर मॉडल बिल्कुल वैसा ही है जैसा नए कृषि क़ानूनों में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित किया गया है। जबकि, साल दर साल खराब प्रदर्शन कर रहे पंजाब का कृषि मॉडल पारंपरिक समाजवादी कृषि मॉडल ही है और अपने इसी पारंपरिक कृषि मॉडल को बनाए रखने के लिए पंजाब के किसान केंद्र के नए फार्म लॉ का विरोध कर रहे हैं।
दरअसल, 2020-21 में मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों से 129.28 लाख मीट्रिक टन गेहूं की सरकारी खरीद की। सरकार ने अपने लिए 1 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा था और उससे लगभग 30% अधिक खरीद की। इस वर्ष सरकार ने 1.25 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा है। 2020-2021 में मध्य प्रदेश द्वारा की गई सरकारी खरीद पूरे देश में हुई गेहूं की सरकारी खरीद का 33.83% है। पंजाब 33.21% के साथ दूसरे स्थान पर है। किंतु, पंजाब और हरियाणा पारंपरिक रूप से भारतीय कृषि की रीढ़ रहे हैं, 1960-70 के दशक से ही केंद्र सरकार द्वारा मदद मिलती रही है, जबकि मध्यप्रदेश में यह उपलब्धि अपने दम पर हासिल की है। यानी इस वर्ष पंजाब के किसान कृषि क़ानूनों का विरोध करते रह गए और मध्य प्रदेश के किसानों ने बम्पर उत्पादन किया।
GDP में कृषि का योगदान
मध्य प्रदेश की जीडीपी में कृषि का योगदान 2004-05 से 2011-12 की अवधि के दौरान 8.1% बढ़ा है। 2016-17 में मध्य प्रदेश की कुल जीडीपी में 45% हिस्सेदारी कृषि क्षेत्र से थी। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मध्य प्रदेश की 60% श्रमशक्ति अभी भी इसी क्षेत्र में लगी हुई है। ऐसे में कृषि ही लोगों की आय का साधन है।
मध्य प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के कारण राज्य का औद्योगिकरण कठिन कार्य रहा है। महाराष्ट्र या गुजरात की तरह मध्य प्रदेश के पास कोई समुद्री सीमा भी नहीं है। ऐसे में कृषि का जीडीपी में मुख्य अवयव बन जाना स्वाभाविक है।
ऐसे में मध्य प्रदेश सरकार ने कृषि के जरिए एक बड़ी आबादी को गरीबी रेखा के बाहर निकाला है। 2004-05 में 53.6% लोग गरीबी रेखा के नीचे थे जिनकी संख्या 2011-12 में घटकर 35.7% रह गई है।
कृषि मॉडल ही बदल दिया
मध्य प्रदेश सरकार ने सिंचाई व्यवस्था का विस्तार तथा सिंचाई के महीनों में बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करके, बढ़िया रोड इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करके और सरकारी खरीदी के सिस्टम को सुधार करके किसानों की आय में वृद्धि की है। हालांकि, किसानों की आय में वृद्धि का एक बड़ा कारण कृषि क्षेत्र में प्राइवेट प्लेयर्स का प्रवेश भी है। पिछले वर्ष गेहूं का उत्पादन करने वाले किसानों में 48% किसानों ने अपनी फसल सरकार को और 52% ने अपनी फसल प्राइवेट कंपनियों को भेजी थी। प्राइवेट कंपनियों के कारण किसानों की आय में भी वृद्धि हुई है और इसका प्रयोग करके किसानों ने कृषि तकनीकों में भी सुधार लाया है जिसके कारण वर्तमान समय में भारत में सबसे अच्छी क्वालिटी का गेहूं और चावल मध्य प्रदेश में उगाया जा रहा है।
किसानों के हित में कृषि उपज मंडी अधिनियम में संशोधन करते हुए ई-ट्रेडिंग का प्रावधान किया गया और किसानों को खरीद केंद्र के साथ-साथ अधिकृत निजी खरीद केंद्र और बाजार की व्यवस्था के माध्यम से फसल बेचने की सुविधा प्रदान की गई। गेहूं, धान और अन्य फसलों की खरीद के लिए किसानों के खातों में 33,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि हस्तांतरित की गई।
किसानों को किसान सम्मान निधि
मध्य प्रदेश के किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का लाभ मिल रहा है, जिसके तहत किसानों को हर साल 6 हजार रुपये दिए जाते हैं। इसी कड़ी में मुख्यमंत्री किसान कल्याण सम्मान निधि योजना की शुरुआत की गई है और मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों को दो समान किश्तों में प्रति वर्ष 4,000 रुपये देना शुरू किया। इस तरह किसानों को अब कुल 10,000 रुपये प्रति वर्ष की किसान सम्मान निधि मिल रही है। राज्य सरकार ने प्राकृतिक आपदा या अन्य किसी भी परिस्थिति में किसानों की फसल को हुए नुकसान की राहत के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लम्बित प्रीमियम जमा कर किसानों को राहत प्रदान की है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता में आते ही बीमा योजना का लंबित प्रीमियम भर दिया और प्रभावित किसानों को फसल बीमा की राशि उपलब्ध करायी गयी। लॉकडाउन की विकट स्थिति के दौरान 16 लाख किसानों से 1.29 करोड़ टन गेहूं खरीदा गया और 27,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि उनके खातों में ट्रांसफर की गई।
मध्य प्रदेश का कृषि मॉडल केंद्रीय कृषि मॉडल की तरह ही कार्य करता है जहां सरकार किसानों को इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करके सहायता देती है और निजी कंपनियां तथा सरकार मिलकर फसल की खरीद करते हैं।
मध्य प्रदेश का कृषि मॉडल किसानों को सरकारी और प्राइवेट दोनों प्रकार के विकल्प उपलब्ध कराता है। इस वर्ष जब लॉकडाउन के कारण प्राइवेट सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ तो 81% किसानों ने अपनी फसल सरकार को बेची है। सामान्य दिनों में यही किसान प्राइवेट कंपनियों को अपनी फसल भेजते हैं किंतु विपरीत परिस्थितियों में सरकार उनकी मदद के लिए आगे आई।
सिंचाई व्यवस्था में सुधार
राज्य में कृषि के विकास और विकास में सिंचाई ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सकल सिंचित क्षेत्र 2000-01 में 4.3 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 2014-15 में 10.3 मिलियन हेक्टेयर हो गया है। शुरुआत (2000-01) में, मध्य प्रदेश में सिंचाई अनुपात 24% था, जो भारतीय औसत से लगभग 17.1% कम था। 2014-15 तक, अनुपात 43.3% तक बढ़ गया था, तथा भारतीय औसत के साथ अंतर को घटाकर 4.7% कर दिया जो राज्य के लिए एक सराहनीय उपलब्धि है।
सिंचाई के आंकड़ों से पता चलता है कि सिंचाई के विभिन्न स्रोतों में खोदे गए कुओं और नलकूपों में 67 प्रतिशत की हिस्सेदारी सबसे अधिक है, इसके बाद सरकारी नहरों का 17%, इसके बाद अन्य स्रोतों में 13% और टैंकों/तालाबों का 3% हिस्सा है।
वहीं दूसरी ओर देखा जाए तो पंजाब के किसानों ने नए कृषि कानूनों के लाभ को समझे बिना ही उनका विरोध शुरू कर दिया। कई विशेषज्ञ बता चुके हैं कि वर्तमान समय में पंजाब और हरियाणा को अपने कृषि उत्पादन को गेहूं और चावल से हटाकर अन्य उत्पादों की ओर मोड़ना चाहिए। यह तब तक संभव नहीं है जब तक प्राइवेट और सरकारी, दोनों प्रकार की खरीदी का एक संयुक्त मॉडल न बनाया जाए। यह बदलाव बिना नए कृषि कानूनों को लागू किए सम्भव नहीं है।