World Press Freedom Index: इन वामपंथियों का अलग ही मॉडेल है। प्रतिदिन प्रात: काल को उठें, एजेंडा पर मंथन करे, अपने अनुसार कुछ भी अंट संट छापें, और ये दिखाएँ कि भारत नर्क का दूसरा नाम है, विशेषकर प्रेस के स्वतंत्रता की। पता है, ये सब बकवास है, परंतु अब जो ये किये है, उससे एक बात तो बोलनी बनती है : इतना ओवरएक्टिंग नहीं पछता।
इस लेख में जानिये TFI के एक विशेष World Press Freedom Index का सृजन किया है।
पर क्यों? कुछ ही समय पूर्व एक स्वघोषित मीडिया रक्षक ने अपना World Press Freedom Index निकाल के पटक दिया है। इसमें भारत को 180 देशों में 161वां स्थान दिया गया है, अर्थात यहाँ प्रेस की स्वतंत्रता लगभग नगण्य है। ये तो फिर भी स्वाभाविक था, क्योंकि वामपंथी है तो हमारा गुणगान तो करेंगे नहीं, परंतु हद तो तब हो गई जब इन्होंने अफगानिस्तान को हमसे बेहतर पद पर रखा। वह देश, जहां प्रेस का कोई अस्तित्व नहीं, वह हमसे प्रेस फ़्रीडम में बेहतर है? तालियाँ बजाइए, अरे बजाइए, ऐसा लॉजिक तो युगों युगों में एक बार आता है।
भई पता है कि आप कभी भारत के पक्ष में नहीं बोल सकते, परंतु इतना छीछालेदर क्या करना कि सबको पता चल जाए कि आप पाखंडी है? नहीं हो रहा है आपसे तो हमें बोलिए, हम तैयार करते हैं एक प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स। अब प्रेस प्रेमी देश कौन ज्यादा है, इसका आँकलन तो तनिक मुश्किल है, परंतु इतना तो पता है कि कौन सा देश प्रेस स्वतंत्रता को रोल करके डस्टबिन में फेंकता है। हमारे मापदंड भी सरल और स्पष्ट है, आप बस दृष्टि डालिए:
5) कनाडा:
इनके बारे में जितना कहें, कम पड़ेगा। इस देश को इसलिए नहीं भाव देते कि यहाँ प्रशासन अच्छा है, पर इसलिए सर आँखों पर लेते हैं, क्योंकि यहाँ का परधानमंत्री एक अच्छे फ्रंटबेंचर की भांति लिबरलों की हर बात मानता है।
परंतु मीडिया पे इनका क्या प्रभाव है, ये कम ही लोगों को पता है। कल्पना कीजिए कि आपने लिखा कि खालिस्तानी उग्रवाद कनाडा और भारत के संबंधों के लिए ठीक नहीं। आपको न सिर्फ अपमानित किया जाएगा, अपितु आपको “कैंसल” भी किया जाएगा। अभी तो फॉक्स न्यूज के लिए इनके प्रेम को जगज़ाहिर भी नहीं किया है।
4) यूके:
अगर चर्चिल जीवित होता, तो अपने देश, विशेषकर अपने मीडिया का हाल देखके वह हृदयाघात से पुनः मृत्युलोक पहुँच जाते।
यहाँ समस्या ये नहीं कि कोई सरकारी संस्था मीडिया पर प्रभाव डाल रही है, समस्या ये है कि यहाँ मीडिया को आवश्यकता से अधिक स्वतंत्रता मिली है, जिसके कारण यूके प्रशासन और जनता, दोनों की भद्द पिटती है। यहाँ इन्हे निर्लज्जता और निर्भीकता के बीच का अंतर बताने वाला कोई नहीं है, जो बीबीसी के विवादास्पद कवरेज में स्पष्ट झलकता है।
3) यूक्रेन:
अब ये केस स्टडी अपने आप में अनोखी है। आप जानते ही हो कि कैसे यूक्रेन कई शक्तिशाली देशों की आँखों का दुलारा बना हुआ है।
परंतु कम ही लोगों को पता है कि जेलेन्सकी द्वारा प्रशासित इस राष्ट्र का वास्तविक हाल क्या है। ये कहने को लोकतंत्र समर्थक है, परंतु यहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर नाजी समर्थक तत्वों को भी बढ़ावा दिया जाता है, और इतना ही नहीं, एक विशेष अधिनियम भी निकाला जा रहा है, जिसके अंतर्गत कुछ भी कॉन्टेन्ट, जो जेलेन्सकी विरोधी होगा, उसे “रूसी भ्रम” यानि Russian disinformation के अंतर्गत अवैध और आपराधिक घोषित किया जाएगा।
कसम से, ऐसा प्रोपगैंडा देख गोएब्बल्स भी यही सोचेगा, “कमाल है, ये सब कब किया?”
2) आयरलैंड:
अगर ज़ुबैर मियां और सिन्हा दादा को इस देश के बारे में पता चला होता, विशेषकर यहाँ के नए नियमों के बारे में, उनका सबसे प्रथम रिएक्शन होता, “ए गाड़ी स्टार्ट कर!”
ऐसा इसलिए क्योंकि इस देश में हेट स्पीच रोधी अधिनियम के अनुसार, अगर आपने कुछ ऐसा पोस्ट किया, जो आयरिश प्रशासन के अनुसार अशोभनीय है, और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देता है, तो वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर आपको कभी भी, कैसे भी हिरासत में ले सकते हैं।
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1) USA:
कल्पना कीजिए एक ऐसे स्थान की, जहां वैकल्पिक मत छोड़िए, एक स्वस्थ वाद विवाद के लिए कोई स्थान नहीं है। कुछ “1984” नॉवेल जैसा नहीं लग रहा?
परंतु ये सत्य है, और इस स्थान का नाम है अमेरिका। यहाँ wokeism का राज है, कानून व्यवस्था का कोई अता पता नहीं, और कोई अगर इसका कवरेज करने का साहस भी कर दे, तो उसके अस्तित्व को ही मिटाने पर बात आ जाती है, जैसा कि बाइडन प्रशासन का विरोध करने पर टकर कार्लसन के साथ हाल ही में हो रहा है। गलत नहीं कहते कुछ लोग, “जहां अमेरिका, वहाँ मुसीबत!”
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