30 जनवरी 1948 को दिल्ली में महात्मा गांधी की हत्या किए जाने के पहले भी उनकी हत्या के कई प्रयास किए गए थे। बताया जाता है कि कम-से-कम 6 बार गांधी की हत्या का प्रयास किया गया था और इनमें से एक से अधिक में नाथूराम गोडसे शामिल था। 30 जनवरी को गांधी की हत्या की गई और उसी वर्ष उनकी हत्या के दोषी नाथूराम गोडसे को 15 नवंबर 1949 को अंबाला सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी।
गांधी की हत्या की पहली कोशिश
महात्मा गांधी की हत्या की पहली कोशिश 1934 में पुणे में की गई थी। पुणे नगरपालिका ने गांधी को सम्मानित करने के लिए एक समारोह का आयोजन किया था। गांधी इसमें शामिल होने के लिए कुछ साथियों के साथ जा रहे थे और दो गाड़ियों में से वे पिछली गाड़ी में सवार थे। अगली गाड़ी में गांधी को लेने आए नगरपालिका के अधिकारी और पुलिसकर्मी मौजूद थे। गांधी की हत्या के इरादे से गाड़ी पर बम फेंका गया लेकिन वो बम अगली गाड़ी पर जाकर गिरा और उसके परखच्चे उड़ गए। इस घटना में नगरपालिका के मुख्य अधिकारी तथा दो पुलिसकर्मी सहित कुल सात लोग गम्भीर रूप से घायल हुए थे और गांधी सुरक्षित थे।
गांधी की हत्या की दूसरी कोशिश
गांधी की हत्या की दूसरी कोशिश जुलाई 1944 में पंचगनी में हुई थी। गांधी आगा खां पैलेस से रिहाई के बाद पंचगनी जाकर रुके थे, जहां लोग उनके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। इस दौरान एक शख्स चाकू लेकर उन्हें मारने दौड़ा था। चुन्नीभाई वैद्य ने ‘गांधी की हत्या क्या सच, क्या झूठ’ पुस्तक में लिखा है, “छुरा लेकर गांधीजी के सामने आया शख्स नाथूराम गोडसे था, ऐसी गवाही पुणे के सुरती लॉज के मालिक मणिशंकर पुरोहित ने दी थी।” उन्होंने लिखा, “महाबलेश्वर के कांग्रेस के पूर्व सांसद एवं सतारा जिला मध्यवर्ती बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष भिसारे गुरुजी ने नाथूराम के हाथ से छुरा छीन लिया था। गांधीजी ने उसके बाद तुरन्त ही नाथूराम गोडसे को मिलने के लिए बुलाया। परन्तु वह नहीं आया था।”
तीसरी कोशिश: चाकू के साथ गिरफ्तार शख्स
सितंबर 1944 में तीसरी बार गांधी पर हमले कि कोशिश की गई थी। मुहम्मद अली जिन्ना से वार्ता के लिए गांधी बंबई जाने वाले थे और इससे मुस्लिम लीग व हिंदू महासभा के लोग नाराज़ थे। इस दौरान पुलिस ने एक शख्स को चाकू के साथ गिरफ्तार किया था। गिरफ्तार किए गए शख्स ने कहा था कि उसने यह चाकू उस गाड़ी का टायर फाड़ने के लिए रखा था जिसमें गांधी जाने वाले थे। गांधी के निजी सचिव प्यारेलाल ने बताया था कि उन्हें पुलिस ने सूचित कर दिया था कि प्रदर्शनकारी ‘अमंगलकारी घटना’ की तैयारी करके आये थे। हालांकि, उस दौरान पुलिस ने प्रदर्शन से पहले ही प्रदर्शनकारियों को पकड़ लिया था।
गांधी की हत्या के लिए ट्रेन पलटाने की साज़िश
गांधी एक विशेष रेल द्वारा बंबई से पुणे जा रहे थे और इस दौरान पटरी पर पत्थर रखकर उसे पलटने की कोशिश की गई थी। ये पत्थर नेरल व कर्जत स्टेशन के बीच रखे गए थे लेकिन चालक की सावधानी के कारण इस दुर्घटना को टाल दिया गया था लेकिन रेल के इंजन को कुछ क्षति ज़रूर पहुंची थी। गांधी भारत के बंटवारे संबंधी वार्ता के लिए पुणे जा रहे थे। चुन्नीभाई वैद्य ने लिखा, “इस घटना के बाद प्रार्थना-सभा में इसका उल्लेख करते हुए गांधी ने कहा, “मैं सात बार इस प्रकार के प्रयासों से बच गया हूं। मैं इस प्रकार मरने वाला भी नहीं हूं, मैं तो १२५ वर्ष जीने वाला हूं’।” इस बात का उल्लेख नाथूराम गोडसे ने अपने मराठी सामयिक ‘अग्रणी’ में करते हुए लिखा- ‘परन्तु जीने कौन देगा?”
गांधी की हत्या का एक और प्रयास
20 जनवरी 1948 को बिरला हाउस में शाम की प्रार्थना सभा में मदनलाल पाहवा ने बम फेंका था। मदनलाल अपने साथियों के साथ वहां पहुंचा और तय किया गया था कि बम फेंकने के बाद जो भगदड़ होगी उसमें दिगंबर बड़गे, गांधी को गोली मार देगा। हालांकि, गांधी ने लोगों को समझाकर शांत कर दिया और प्रार्थना सभा में भगदड़ नहीं हो पाई जिससे उनकी हत्या की योजना पूरी नहीं हो सकी। इस घटना के बाद मदनलाल को गिरफ्तार कर लिया गया था और उसके पास से एक हैंड ग्रेनेड भी बरामद हुआ था। इस घटना के बाद बॉम्बे क्रॉनिकल की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि पाहवा ने बम फेंकने का गुनाह कबूल कर कहा है कि वो महात्मा गांधी के शांति अभियान से खफा हैं इसलिए हमला किया था।
वो दिन जब गांधी की हत्या कर दी गई
पाहवा की गिरफ्तारी के बाद गांधी की हत्या की साज़िश की जानकारी पुलिस को मिल चुकी थी लेकिन उनकी जान बचाई नहीं जा सकी। कई असफल प्रयासों के बाद आखिरकार 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे बिरला भवन में गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। गांधी के मुंह से आखिरी बार ‘राम’ शब्द निकाल और उनका जीवनहीन शरीर ज़मीन पर लुढ़के लगा। दुनिया भर को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाली गांधी की हिंसक तरीके से हत्या कर दी गई थी। नाथूराम गोडसे ने गांधी तो सेमी-ऑटोमैटिक पिस्टल से तीन गोलियां मारी थीं।
गांधी की हत्या को लेकर भी कई तरह के दावे किए जाते हैं जिनमें एक दावा उनकी मौत गोडसे की ‘गोलियां से ना होकर किसी अन्य गोली से हुई थी’ ऐसा माना जाता है। आम धारणा है कि गांधी को 3 गोलियां लगी थी लेकिन 31 जनवरी 1948 को कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि गांधी को 4 गोलियां लगी थीं। रॉयटर्स, लोकसत्ता, डॉन और टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे अखबारों की रिपोर्ट में लिखा गया था कि गांधी को 4 गोलियां मारी गई थीं।
रिसर्चर पंकज फडणीस का कहना है कि बिड़ला हाउस में गांधी के बेडरूम के बाहर का बोर्ड जिस पर उनकी मृत्यु के गवाहों का विवरण है वहां भी चार गोलियां चलने की बात कही गई है व हिंदू अखबार में प्रकाशित फोटो में गांधी के शरीर पर 4 घाव दिखाई दिए थे। फडणीस का कहना है कि गांधी को लगी दो गोलियां घटनास्थल पर ही मिल गई थीं, एक उनकी अस्थियों में मिली और मनु बेन को एक गोली गांधी की शॉल से मिली थी
हालांकि, कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अखबारों में गांधी को 3 गोली मारे जाने की ही खबर दी गई थी और पुलिस का रुख भी ऐसा ही रहा है। ‘द गार्जियन’ की 31 जनवरी की 1948 की रिपोर्ट में दावा किया गया था वहां चार गोली चली थीं और चौथी गोली गोडसे ने खुद को मारने के लिए चलाई थी।
गांधी की हत्या को लेकर ‘Make Sure Gandhi Is Dead’ किताब लिखने वाले रंजीत सावरकर दावा करते हैं कि गांधी की मौत गोडसे की गोली से नहीं हुई थी। साथ ही उन्होंने गांधी की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को लेकर भी आपत्ति जताई थी। रंजीत सावरकर का दावा है कि उनके पास यह साबित करने के लिए सबूत हैं कि गांधी के शरीर में मिली गोलियां गोडसे की पिस्तौल से नहीं बल्कि एक अलग दिशा और एक अलग बंदूक से आई थीं। गांधी को 4 गोली लगने के दावे की सरकारी तौर पर पुष्टि नहीं हो सकी है इसकी जांच की मांग की गई है और इसे लेकर अभी और स्पष्टता मिलनी बाकी है।