शिवाजी सावंत ने अपने ऐतिहासिक उपन्यास 'छावा' में वर्णित किया है कि कैसे प्रयागराज में संन्यासी की वेशभूषा में पहुँचे शिवाजी को एक पारधी ने गरुड़-पंख दिया था और कहा था कि ये हर कामना को पूर्ण करने वाली है।
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जिस प्रयागराज ने शिवाजी को दिखाई थी राह, उसी ने योगी आदित्यनाथ को एक सफल प्रशासक के रूप में कर दिया स्थापित: संस्कृति को पुनर्जागृत कर के जा रहा महाकुंभ

शिवाजी सावंत ने अपने ऐतिहासिक उपन्यास 'छावा' में वर्णित किया है कि कैसे प्रयागराज में संन्यासी की वेशभूषा में पहुँचे शिवाजी को एक पारधी ने गरुड़-पंख दिया था और कहा था कि ये हर कामना को पूर्ण करने वाली है।

Anupam K Singh द्वारा Anupam K Singh
27 February 2025
in चर्चित
संस्कृति को पुनर्जागृत कर के जा रहा महाकुंभ

संस्कृति को पुनर्जागृत कर के जा रहा महाकुंभ

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महाशिवरात्रि के साथ ही प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 संपन्न हुआ। मकर संक्रांति से लेकर महाशिवरात्रि तक, इस महाकुंभ में आस्था का जो जनप्रवाह देखने को मिला वो अप्रत्याशित था। यूपी सरकार ने अनुमान लगाया था कि 45 करोड़ श्रद्धालु आस्था के इस संगम में डुबकी लगाएँगे, लेकिन गंगा-यमुना-सरस्वती के महासंगम ने 65 करोड़ के आँकड़े को छू दिया। पिछली बार मेला क्षेत्र 3200 हेक्टेयर का था, इस बार ये 4000 हेक्टेयर का रहा। यानी, 4000 हेक्टेयर में अमेरिका की दोगुनी जनसंख्या आई और स्नान कर के चली गई। ये जापान की जनसंख्या का 5 गुना और जर्मनी की जनसंख्या का 8 गुना है।

इस बार के आयोजन में बड़े-बड़े नेताओं से लेकर सेलेब्रिटियों तक ने संगम में डुबकी लगाई। सफाईकर्मियों से लेकर पुलिसकर्मियों तक, इस आयोजन को सफल बनाने के लिए ग्राउंड पर 24 घंटे लगे रहे सरकारी कर्मचारियों को भी धन्यवाद दिया जाना चाहिए। इसे संयोग ही कहेंगे कि भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण को लेकर 2 घटनाएँ इसी अवधि में हुईं। पहला, महाकुंभ का सफल आयोजन। और दूसरा, छत्रपति संभाजी महाराज पर आधारित फिल्म ‘छावा’ की रिलीज और बॉक्स ऑफिस पर सफलता। ‘छावा’ का भारत में नेट कलेक्शन 300 करोड़ रुपए के पार जा चुका है।

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इन वजहों से याद किया जाएगा महाकुंभ 2025

प्रयागराज में आयोजित इस कुम्भ मेले को उत्तम व्यवस्थाओं के लिए भी याद किया जाएगा। भविष्य में नासिक, उज्जैन और हरिद्वार में होने वाले कुंभ आयोजनों के प्रबंधनकर्ता अवश्य ही इसका अध्ययन करना चाहेंगे। जैसे, 15 से अधिक विभागों ने मिल कर 500 से अधिक परियोजनाओं पर कार्य किया। 2019 के मुकाबले 5 गुना अधिक श्रद्धालु इस बार आए। स्वच्छ जल की आपूर्ति के लिए 1250 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछाई गई। 200 वाटर ATM और 85 पंप लगाए गए। 7000 बसों और 550 शटल बसों को चलाया गया। श्रद्धालुओं और कल्पवासियों को 5 रुपए प्रति किलो की दर से आटा, 6 रुपए प्रति किलो चावल और 18 रुपए प्रति किलो चीनी दी गई।

लगभग 1 लाख राशन कार्ड बनाए गए, वो भी मात्र 5 रुपए के मामूली शुल्क पर। ‘नेत्र कुंभ’ में 2 लाख से अधिक मरीजों का इलाज हुआ। ये विश्व का सबसे बड़ा अस्थायी अस्पताल था। देश भर के 1300 मेडिकल कर्मियों को रोज़गार मिला। महाकुंभ के सेंट्रल हॉस्पिटल में इलाज करा चुके विदेशी यात्रियों ने भी इसकी प्रशंसा की। साढ़े 7 लाख लोगों को चिकित्सा सुविधाएँ दी गईं। सवा 2 लाख ने आयुर्वेदिक अस्पतालों में भी इलाज कराया। डिजिटल अनुभूति केंद्र आकर्षण का केंद्र रहा। 4 लाख से अधिक श्रद्धालु डिजिटल अनुभूति केंद्र के साक्षी बने, वर्चुअल रियलिटी के माध्यम से उन्होंने सनातन के महात्म्य को जाना।

प्रयागराज में आयोजित इस मेले में तकनीक का भी इस बार इतना उत्तम इस्तेमाल किया गया, जो ‘डिजिटल इंडिया’ की सफलता को चरितार्थ करता है। AI युक्त ड्रोन कैमरों का इस्तेमाल हुआ। डूबने वालों को बचने के लिए रोबोटिक तकनीक का इस्तेमाल हुआ। जल पुलिस कंट्रोल रूम स्थापित हुए। जब-जब आग लगी, तुरंत काबू पा लिया गया। बुलेट बाइकों को फायर हाइड्रेंट्स से लैस किया गया। श्रद्धालुओं को बहुभाषी चैटबॉट की सुविधा मिली। सरकार ने महाकुंभ मेले में खोए हुए लोगों को ढूँढने के लिए एक दर्जन से अधिक डिजिटल खोया-पाया केंद्र बनाए।

उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को भी इस बार का महाकुंभ बहुत कुछ देकर जा रहा है। 7000 करोड़ रुपए जो इसमें खर्च हुए, उनसे प्रयागराज वासियों और संगम स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को आगे भी सुविधाएँ मिलती रहेंगी। वहीं 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार हुआ। ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ के तहत जो ग्रामीण शिल्पकार आते हैं, उनकी बनाई वस्तुएँ लेकर लोग विदेशों तक भी गए।

प्रयागराज ने शिवाजी को दिखाई थी राह

इस दौरान एक और ऐतिहासिक संयोग याद करना होगा। ‘हिंदवी साम्राज्य’ के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज जब सन् 1666 में अपने बेटे संभाजी समेत आगरा में औरंगज़ेब के क़ैद से फरार हुए थे, तब वो तीर्थ राज प्रयाग भी पहुँचे थे। ये प्रयागराज  की धरती ही थी, जिसने मराठा साम्राज्य के प्रथम अधिपति की न केवल बाँहें थामी बल्कि भवितव्य में उनके महान योगदान की तरफ इंगित करते हुए उन्हें आशीर्वाद दिया। शिवाजी ने अपने बेटे की सुरक्षा के लिए न केवल संभाजी को स्वयं से अलग रखवा दिया था, बल्कि उनकी मृत्यु की अफवाह भी उड़वा दी थी।

शिवाजी सावंत ने अपने ऐतिहासिक उपन्यास ‘छावा’ में वर्णित किया है कि कैसे प्रयागराज में संन्यासी की वेशभूषा में पहुँचे शिवाजी को एक पारधी ने गरुड़-पंख दिया था और कहा था कि ये हर कामना को पूर्ण करने वाली है। एक राजा को जनजातीय समाज का एक व्यक्ति आशीर्वाद देता है, यही तो प्रयागराज है, यही भारत है। प्रयागराज स्थित श्रीराम जानकी सेवाश्रम में शिवाजी कई दिनों तक रुके थे। पंचभइया पुरोहितों ने उनकी सहायता की थी। ये वो समय था जब शिवाजी अपने पुत्र के विरह को लेकर अवश्य ही व्यथित रहे होंगे, लेकिन ‘स्वराज्य’ त्याग माँगता था। त्याग के उन क्षणों में इसी प्रयागराज ने उन्हें ढाँढस बँधाया। ये तो थी इतिहास की बात।

वर्तमान की बात करें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आगरा में निर्माणाधीन ‘मुग़ल म्यूजियम’ का नाम बदल कर छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर रखने की घोषणा की। रायगढ़ और राजगढ़ के किलों से साम्राज्य चलाने वाले शिवाजी के नाम पर आगरा में संग्रहालय होगा, ये अपने-आप में भारत की विविधता में एकता का परिचायक है। भारत की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक एकता को अलग कर के नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि ये वही धरती है जहाँ वेदों की रचना की गई है। अब आप वेदों को सांस्कृतिक चश्मे से देखें या फिर धार्मिक चश्मे से, ये आपके ऊपर है। दोनों ही सही हैं।

सफल प्रशासक के रूप में खुद को किया स्थापित

इस महाकुंभ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार एवं प्रशासन को फ़र्ज़ी ख़बरें फ़ैलाने वालों से भी लड़ना था। सैकड़ों ऐसे हैंडल थे जो सोशल मीडिया पर महाकुंभ के नाम पर भय व घृणा फैलाने में लगे हुए थे। कई ऐसे तत्व थे जो हर रोज किसी न किसी प्रकार की अनहोनी की प्रतीक्षा में रहते थे। उन सबके मंसूबे नाकाम हुए। ये विश्व का सबसे बड़ा आयोजन था, जो सफल हुआ। ब्राजीलियन कार्निवल हो या जर्मनी का अक्टूबर फेस्ट, इनमें अधिकतम 70 लाख लोग हिस्सा लेते हैं। सोचिए, 65 करोड़ का आँकड़ा इनसे लगभग 100 गुना बड़ा है।

कई लोगों ने ऐसा प्रसार किया कि मौनी अमावस्या के दिन हुई त्रासदी के बाद श्रद्धालुओं की संख्या घट गई है, तो कइयों ने ये दिखाने की कोशिश की कि माघी पूर्णिमा के बाद श्रद्धालुओं में उस तरह का उत्साह नहीं रहा। फिर अफवाह फैलाई गई कि गंगा का जल दूषित हो गया है। हालाँकि, उनके सारे अनुमानों को आस्था के जनप्रवाह ने धता बताया। अंतिम चरण में हमने कटरीना कैफ, अभिषेक बनर्जी, रवीना टंडन और अक्षय कुमार जैसे अभिनेता-अभिनेत्रियों को डुबकी लगाते हुए देखा। कइयों ने ये अफवाह भी फैलाई थी कि दुर्घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना कार्यक्रम स्थगित कर दिया है, लेकिन वो भी 6 फरवरी को तय कार्यक्रम के हिसाब से पहुँचे।

महाकुंभ 2025 हमें बहुत कुछ सिखा कर भी जा रहा है। पहला, सत्ता के पास अगर इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। दूसरा, अगर हम सिविक सेन्स का पालन करें तो भीड़ कितनी भी बड़ी हो – फ़र्क़ नहीं पड़ता। तीसरा, पीएम मोदी ने जो स्वच्छता अभियान शुरू किया था उसका प्रभाव अब दिख रहा है। उस राह पर चलते हुए योगी सरकार ने 1.50 लाख शौचालय और 25,000 डस्टबिन लगाए गए। सफाईकर्मियों को रोज़गार मिला। चौथी और सबसे बड़ी बात – इस महाकुंभ ने जाति-पाति और क्षेत्र के सारे भेद मिटा दिए। पाँचवाँ, एक प्रशासक के रूप में योगी आदित्यनाथ का क़द और बड़ा हुआ है।

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